बिस्मिल्लाहिर्रमानिर्रहीम:- शुरू खुदा का नाम लेकर जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।
{जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा। हिन्दु मुस्लिम सिक्ख ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।।}
(रामपाल दास)
अर्थात् हम सब जीव हैं। मानव शरीर मिला है। हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख तथा ईसाई सब मानव हैं। इसलिए हम सबका एक मानव धर्म है। मानवता (इंसानियत) कर्म है। इस कारण से कोई भिन्न धर्म नहीं है। पूरी पृथ्वी के मानव (स्त्री-पुरूष) एक खुदा (प्रभु) के बच्चे हैं।}
गरीब, नबी मुहम्मद नमस्कार है, राम रसूल कहाया।
एक लाख अस्सी कूं सौगंध, जिन नहीं करद चलाया।।1।।
गरीब, अर्श कुर्श पर अलह तख्त है, खालिक बिन नहीं खाली।
वे पैगम्बर पाक पुरूष थे, साहिब के अबदाली।।2।।
{नोट:- यहाँ पर यह स्पष्ट करना अनिवार्य समझता हूँ कि कुछ मुसलमान प्रवक्ता कुल एक लाख चैबीस हजार पैगम्बर मानते हैं। परमेश्वर कबीर जी ने, उनके शिष्य गरीबदास जी ने तथा बिश्नोई धर्म के प्रवर्तक बाबा जम्बेश्वर जी ने एक लाख अस्सी हजार कुल पैगंबर बताए हैं। पूर्ण परमात्मा ने जो बताया है, वह गलत नहीं हो सकता। फिर भी हमने यह जानना है कि जीव हिंसा माँस भक्षण महापाप बताया है जो उन एक लाख अस्सी हजार या एक लाख चैबीस हजार ने भी वह पाप नहीं किया। हमें भी नहीं करना चाहिए।}
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