{नोट:- ’’पाक कुरआन‘‘ की जो आयतें इस पुस्तक में प्रमाण के लिए लिखी गई हैं, उनकी पाक कुरआन से ली गई फोटोकापियां इसी पुस्तक के पृष्ठ 322 पर लगी हैं। कृपया मिलान के लिए वहाँ पर पढ़ें।}
जिस अल्लाह ने ’’कुरआन‘‘ का पवित्र ज्ञान हजरत मुहम्मद पर उतारा। उसी ने पाक ’’जबूर‘‘ का ज्ञान हजरत दाऊद पर, पाक ’’तौरेत‘‘ का ज्ञान हजरत मूसा पर तथा पाक ’’इंजिल‘‘ का ज्ञान हजरत ईसा पर उतारा था। इन सबका एक ही अल्लाह है।
आयत नं. 49:- और मूसा को हमने किताब प्रदान की ताकि लोग उससे मार्गदर्शन प्राप्त करें। आयत नं. 50:- और मरयम के बेटे और उसकी माँ को हमने एक निशानी बनाया और उनको एक उच्च धरातल पर रखा जो इत्मीनान की जगह थी और स्रोत उसमें प्रवाहित थे।
आयत नं. 26:- हमने नूह और इब्राहिम को भेजा और उन दोनों की नस्ल में नुबूवत (पैगम्बरी) और किताब रख दी। फिर उनकी औलाद में से किसी ने सन्मार्ग अपनाया और बहुत से अवज्ञाकारी हो गए।
आयत नं. 27:- उनके बाद हमने एक के बाद एक अपने रसूल भेजे और उनके बाद मरयम के बेटे ईसा को भेजा और उसे इंजील प्रदान की और जिन लोगों ने उनका अनुसरण किया। उनके दिलों में हमने तरस और दयालुता डाल दी और रहबानियत (सन्यास) की प्रथा उन्होंने खुद आविष्कृत की। हमने उनके लिए अनिवार्य नहीं किया। मगर अल्लाह की खुशी की तलब में उन्होंने खुद ही यह नई चीज निकाली और फिर इसकी पाबंदी करने का जो हक था, उसे अदा न किया। उनमें से जो लोग ईमान लाए हुए थे, उनका प्रतिफल हमने उनको प्रदान किया। मगर उनमें से ज्यादा लोग अवज्ञाकारी हैं। {सन्यास यानि घर त्यागकर पहाड़ों व जंगलों में परमात्मा की तलाश में चले जाना। जैसे शेख फरीद, बाजीद आदि-आदि। उनके विषय में कहा है। आप जी विस्तृत उल्लेख ’’अल-खिज्र (अल-कबीर) की जानकारी‘‘ इसी पुस्तक में पढ़ेंगे।}
अन्य प्रमाण:- कुरआन मजीद की सूरः अल बकरा-2 आयत नं. 35-38 तक कुरआन का ज्ञान देने वाला अल्लाह कह रहा है कि:-
आयत नं. 35:- फिर हमने आदम से कहा ‘‘तुम और तुम्हारी पत्नी दोनों जन्नत (स्वर्ग) में रहो और यहाँ जी भरकर जो चाहो खाओ, किन्तु इस पेड़ के निकट न जाना नहीं तो जालिमों में गिने जाओगे।’’
आयत नं. 36:- अन्ततः शैतान ने उन दोनों को उस पेड़ की ओर प्रेरित करके हमारे आदेश की अवहेलना करवा दी। हमने हुकम दिया कि अब तुम सब यहाँ से उतर जाओ। एक-दूसरे के दुश्मन बन जाओ। (साँप और इंसान एक-दूसरे के शत्रु हो गए) और तुम्हें एक समय तक धरती पर ठहरना है। वहीं गुजर-बसर करना है।
आयत नं. 37:- उस समय आदम ने अपने रब से कुछ शब्द सीखकर तौबा (क्षमा याचना) की जिसको उसके रब ने स्वीकार कर लिया क्योंकि वह बड़ा क्षमा करने वाला और दया करने वाला है।
आयत नं. 38:- हमने कहा कि ‘‘तुम अब यहाँ से उतर जाओ।’’ फिर मेरी ओर से जो मार्गदर्शन तुम्हारे पास पहुँचे, उस अनुसार (चलना)। जो मेरे मार्गदर्शन के अनुसार चलेंगे, उनके लिए किसी भय और दुःख का मौका न होगा। (कुरआन मजीद से लेख समाप्त)।
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