पवित्र कुरआन में अच्छी शिक्षा

पवित्र कुरआन में अच्छी शिक्षा

(Righteous Teachings in Quran)

पवित्र ’’कुरआन मजीद‘‘ पुस्तक में अनेकों नेक बातें हैं। उदाहरण के लिए कुछ पेश हैं:-

कुरआन मजीद सूरः लुकमान-31

कुरआन मजीद से सूरः लुकमान-31 आयत नं. 12:- हमने लुकमान को हिकमत (तत्त्वदर्शिता) प्रदान की थी कि अल्लाह (परमेश्वर) के प्रति कृतज्ञता दिखाए। जो कोई कृतज्ञता दिखाएगा, उसकी कृतज्ञता उसके अपने लिए ही लाभदायक है। और जो इन्कार और अकृतज्ञता की नीति अपनाएगा तो अपनाए। अल्लाह तो वास्तव निस्पृह और आपसे आप प्रशंसित है यानि परमात्मा को अपनी बड़ाई करवाने की आवश्यकता नहीं है, वह तो महान है ही। कोई उसकी महिमा करता है तो उसे स्वतः अच्छा फल परमात्मा देता है उसकी नेकता को देखकर।

सूरः लुकमान-31 आयत नं. 13:- याद करो जब लुकमान अपने बेटे को नसीहत कर रहा था तो उसने कहा, बेटा! अल्लाह के साथ किसी को शरीक न करना यानि परमेश्वर के साथ-साथ अन्य देव को ईष्ट न मानना। यह सत्य है कि अल्लाह के साथ शीरक बहुत बड़ा जुल्म है।

सूरः लुकमान-31 आयत नं. 14:- और यह वास्तविकता है कि हमने इंसान को अपने माँ-बाप का हक पहचानने की स्वयं तकीद (नसीहत) की है। उसकी माँ ने कमजोरी पर कमजोरी झेलकर उसको पेट में रखा और दो वर्ष दूध छुटाने में लगे। इसलिए नसीहत दी है कि मेरे प्रति कृतज्ञता दिखाओ तथा अपने माँ-बाप के प्रति कृतज्ञ हो। मेरी ही ओर तुम्हें पलटना है।

सूरः लुकमान-31 आयत नं. 15:- लेकिन वे तुझ पर दबाव डालें कि मेरे (अल्लाह के) साथ तू किसी ऐसे को शरीक करे जिसे तू नहीं जानता अर्थात् तेरी जानकारी में मेरा साझी नहीं है तो उनकी बात हरगिज न मान। संसार में उनके साथ अच्छा व्यवहार करता रह। मगर चल उस व्यक्ति यानि संत या नबी के मार्ग पर जिसने मेरी ओर रजू किया है यानि परमात्मा की भक्ति की प्रेरणा की है। फिर तुम सबको मेरे पास ही आना है। उस समय मैं तुम्हें बता दूँगा कि तुम कैसे कर्म करते रहे हो।

सूरः लुकमान-31 आयत नं. 16:- (और लुकमान ने कहा कि) बेटा! कोई चीज राई के दाने के बराबर भी हो और किसी चट्टान में या आसमान में छुपी हो, अल्लाह उसे निकाल लाएगा। वह सूक्ष्मदर्शी और सब खबर रखने वाला है।

सूरः लुकमान-31 आयत नं. 17:- बेटा नमाज (आरती) कायम कर। नेकी का संदेश दे, बुराई से रोक और जो मुसीबत भी पड़े तो सब्र कर। ये बातें हैं जिनकी बड़ी ताकीद की गई है यानि सब इन बातों को अच्छी मानते हैं।

सूरः लुकमान-31 आयत नं. 18:- और लोगों से मुख फेरकर बात न कर, न जमीन पर अकड़कर चल। अल्लाह किसी अहंकारी और डींग मारने वाले को पसंद नहीं करता।

सूरः लुकमान-31 आयत नं. 19:- अपनी चाल में संतुलन बनाए रख और अपनी आवाज तनिक धीमी रख। सब आवाजों से बुरी आवाज गधे की आवाज है।

सूरः लुकमान-31 आयत नं. 22:- जो व्यक्ति अपने आपको अल्लाह के हवाले कर दे और व्यवहार में वह नेक हो। उसने वास्तव में एक भरोसे के योग्य सहारा थाम लिया यानि परमात्मा उसके साथ है और सारे मामलों का अंतिम निर्णय अल्लाह ही के पास है।

सूरः अस् सज्दा-32 आयत नं. 4:- वह अल्लाह ही है जिसने आसमानों और जमीन को और उन सारी चीजों को जो इनके बीच है, छः दिन में पैदा किया और उसके बाद सिंहासन पर विराजमान हुआ। उसके सिवा न तुम्हारा कोई अपना है, न सहायक है और न कोई उसके आगे सिफारिश करने वाला है। फिर क्या तुम होश में न आओगे।

सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 188:- और तुम लोग न तो आपस में एक-दूसरे का माल अवैध रूप से खाओ और अधिकारियों (आफिसरों) के आगे उनको इस गरज से पेश न करो कि तुम्हें दूसरों के माल का कोई हिस्सा जान-बूझकर अन्यायपूर्ण तरीके से खाने का अवसर मिल जाए। {अर्थात् आफिसरों (अधिकारियों) को रिश्वत देकर अनुचित लाभ न उठाओ।}

सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 268:- शैतान (काल का दूत तुम्हारे कर्म खराब करने के लिए) तुम्हें निर्धनता से डराता है और शर्मनाक नीति अपनाने के लिए उकसाता है, मगर अल्लाह तुम्हें अपनी बखशीश और उदार कृपा से उम्मीद दिलाता है। अल्लाह बड़ी समाई वाला और सर्वज्ञ है।

सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 269:- अल्लाह जिसको चाहता है, हिकमत (तत्त्वज्ञान) प्रदान करता है और जिसे हिकमत (तत्त्वज्ञान) मिली, उसे वास्तव बड़ी दौलत मिल गई।

कुरआन सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 256:- धर्म के विषय में कोई जोर-जबरदस्ती नहीं।

सूरः यूनुस-10 आयत नं. 99:- (हे मुहम्मद) तू किसी को मुसलमान बनने के लिए मजबूर न करना। अल्लाह के हुक्म बिना कोई इमान नहीं ला सकता।

सूरः अर-रहमान-55 आयत नं. 7-9:- तोल में डांडी न मरो, न्याय करो। पूरा-पूरा तोलो।

सूरः अन आम-6 आयत नं. 108:- और (ए मुसलमानों) जो लोग अल्लाह के सिवा जिनको पुकारते हैं, उन्हें गाली ना दो, कहीं ऐसा न हो कि वे शिर्क (बहूदेववादी) से आगे बढ़कर अज्ञान के कारण अल्लाह को गालियाँ देने लग जाएँ (महापाप के भागी हो जाएँ) ये भी कभी अल्लाह की ओर मुड़ेंगे।

सूरः अन् निसा-4 आयत नं. 10:- जो लोग जुल्म के साथ यतीमों (बेसहाराओं) का माल खाते हैं, वास्तव में वे अपने पेट आग से भरते हैं और वे जरूर जहन्नम की भड़कती हुई आग में झोंके जाएँगे अर्थात् वे नरक में जाएँगे।

आयत नं. 9:- (उन) लोगों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अगर वे स्वयं अपने मरने के पश्चात् बच्चे छोड़ते तो मरते समय उनको कैसी कुछ आशंकाएँ घेरती? इसलिए चाहिए कि वे अल्लाह से डरें और ठीक बात करें।

सूरः अन् निसा-4 आयत नं. 36:- अल्लाह की भक्ति करो। आन-उपासना न करो। माता-पिता, नातेदारों, यतीमों, मुहताजों, पड़ोसी, मुसाफिर (यात्रा के साथी) उन दास-दासियों से जो तुम्हारे अधिकार में हों, सबके साथ अच्छा व्यवहार करो। यकीन जानो! अल्लाह किसी ऐसे व्यक्ति को पसंद नहीं करता जो डींग मारने वाला हो और अपनी बड़ाई पर गर्व करे।

नशा तथा जूआ निषेध | Intoxication and Gambling Prohibited

सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 219:- शराब तथा जूए में बड़ी खराबी है, महापाप है।

ब्याज लेना पाप है | Taking Interest on Money is a Sin

कुरआन मजीद सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 276:- अल्लाह ब्याज लेने वाले का मठ मार देता है यानि नाश कर देता है और (खैरात) दान करने वाले को बढ़ाता है। और अल्लाह किसी नाशुक्रे बुरे अमल वाले इंसान को पसंद नहीं करता।

सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 277:- हाँ, जो लोग इमान लाए हैं और अच्छे कर्म करें और नमाज कायम करें और (जकात) दान दें, उनका बदला बेशक उनके रब के पास है। उनके लिए किसी खौप (भय) और रंज (शोक) का मौका नहीं है।

सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 278:- ऐ लोगो जो इमान लाए हो। अल्लाह से डरो और जो कुछ तुम्हारा ब्याज लोगों पर बाकी रह गया है, उसे छोड़ दो। अगर वास्तव में तुम इमान लाए हो।

सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 279:- अगर तुमने ऐसा नहीं किया तो सावधान हो जाओ कि अल्लाह और उसके रसूल (संदेशवाहक) की ओर से तुम्हारे खिलाफ युद्ध की घोषणा है यानि सख्त दंड दिया जाएगा।

सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 280:- तुम्हारा कर्जदार तंगी में हो तो हाथ खुलने तक उसे मुहलत (छूट) दे दो और अगर दान कर दो तो यह तुम्हारे लिए अधिक अच्छा है अगर तुम समझो।

(जकात) दान करना चाहिए | One should do Charity

सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 261:- जो लोग अपना माल (धन) अल्लाह के मार्ग में खर्च करते हैं, उनके खर्च की मिसाल ऐसी है जैसे एक दाना बोया जाए। उससे सात बालें निकलें और हर बाल में सौ दाने हों। इस तरह अल्लाह जिसके कर्म को चाहता है, बढ़ोतरी प्रदान करता है। वह समाई वाला भी है और सर्वज्ञ भी।

सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 262:- जो लोग अपना माल (धन) अल्लाह के मार्ग में खर्च करते हैं और खर्च करके फिर अहसान नहीं जताते, न दुःख देते हैं। उनका बदला उनके रब के पास है और उनके लिए किसी रंज (चिंता) तथा खौप (भय) का मौका नहीं। (यानि उनको कोई चिंता तथा भय की आवश्यकता नहीं है। परमात्मा उनकी रक्षा करता है। धन वृद्धि भी करता है।)

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