कुरआन ज्ञान दाता के माँस आहार के विषय में निर्देश

कुरआन ज्ञान दाता के माँस आहार के विषय में निर्देश

सूरः अल्-माइदा-5

आयत नं. 1:- ऐ लोगो! जो इमान लाए हो यानि मुसलमान बने हो। प्रतिबंधों का पूर्ण रूप से पालन करो यानि मेरी बनाई मर्यादा का पालन करो।

तुम्हारे खाने के लिए चैपायों की जाति के सब जानवर हलाल (वैध) किए हैं सिवाय उनके जो तुमको आगे चलकर बताएँगे, लेकिन हराम की हालत में शिकार को अपने लिए हलाल (वैध) न करो, बेशक अल्लाह जो चाहता है, हुक्म देता है।

{जो चार पाँव वाले जानवर खाने के लिए जायज बताए हैं, वे हैं:- ऊँट, गाय, भेड़, बकरी आदि।}

सूरः माइदा-5

आयत नं. 3:- तुम पर हराम किया गया।(यानि जो खाना पाप है, वे जानवर बताए हैं) मुर्दार, खून, सूअर का माँस, वे जानवर जो अल्लाह के सिवाय किसी और के लिए जब्ह (मारा गया हो, उसको भोग लगा हो) किया गया हो। वह जो गला घुटकर या चोट खाकर या ऊँचाई से गिरकर या टक्कर खाकर मरा हो या किसी हिंसक जानवर ने फाड़ा हो। सिवाय उसके जिसे तुमने जीवित पाकर जब्ह न कर लिया हो और वह किसी स्थान पर जब्ह किया हो यानि जिस स्थान पर अन्य देवी-देवताओं की मूर्ति हो और यह भी तुम्हारे लिए नाजायज है और पाँसों (टौस डालकर) के द्वारा अपना भाग्य मालूम करो। ये सारे उपरोक्त काम आदेश उल्लंघन के हैं।

सूरा अल् मोमिन-40

आयत नं. 79:- अल्लाह ही ने तुम्हारे लिए चैपाए बनाए हैं ताकि इनमें से किसी पर तुम सवार हो और किसी का गोश्त (माँस) खाओ।

सृजनकर्ता का मानव के खाने के लिए निर्देश व आदेश

बाईबल ग्रंथ में उत्पत्ति विषय में अध्याय 1-2 में उत्पत्ति 1-26:- फिर परमेश्वर ने कहा कि हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएँ। और वे समुद्र की मछलियों और आकाश के पक्षियों और घरेलू पशुओं और सारी पृथ्वी पर सब रेंगने वाले जंतुओं पर जो पृथ्वी पर रेंगते हैं, अधिकार रखें।(26)

{अधिकार रखने से तात्पर्य है कि मानव अन्य प्राणियों से बुद्धिमान बनाया है जो सब प्राणियों को काबू कर सके। इनको खाने का निर्देश नहीं है।}

1-27:- तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया। नर-नारी करके उसने मनुष्य की सृष्टि की।

1-28:- परमेश्वर ने मनुष्य को आशीष दी और उनसे कहा:-

फूलो, फलो और पृथ्वी के ऊपर भर जाओ।

मनुष्यों के भोजन के लिए निर्देश:-

1-29:- फिर परमेश्वर ने उनसे (मनुष्यों से) कहा, सुनो! जितने बीज वाले छोटे-छोटे पेड़ सारी पृथ्वी के ऊपर हैं (यानि बाजरा, ज्वार, गेहूँ, चावल, चना, मक्का, काजू, बादाम, पिस्ता आदि-आदि) और जितने वृक्षों में बीज वाले फल होते हैं (आम, अमरूद, जामुन, केले, अंगूर आदि), वे सब मैंने तुमको दिए हैं, वे तुम्हारे भोजन के लिए हैं।

1-30:- और जितने पृथ्वी के पशु और आकाश के पक्षी और पृथ्वी पर रेंगने वाले जंतु हैं जिनमें जीवन के प्राण हैं, उन सबके खाने के लिए मैंने सब हरे-हरे छोटे पेड़ दिए हैं। और वैसा ही हो गया।

1-31:- तब परमेश्वर ने जो कुछ बनाया था, देखा तो क्या देखा कि वह बहुत अच्छा है। तथा सांझ हुई। फिर भोर हुआ। इस प्रकार छठवां दिन हो गया।

अध्याय 2 में 2-2:- यों आकाश और पृथ्वी और उसकी सारी सेना का बनाना समाप्त हो गया। और परमेश्वर ने अपना काम जिसे वह करता था, सातवें दिन समाप्त किया और उसने अपने किए हुए सारे काम से सातवें दिन विश्राम किया।

2-3:- और परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीष दी तथा पवित्र ठहराया क्योंकि उसमें उसने सृष्टि की रचना के सारे काम से विश्राम लिया।

विशेष:- मानव के भोजन के विषय में यह आदेश उस अल्लाह का जिसके विषय में कुरआन की सूरः फुरकानि-25 की आयत नं. 52-59 में वर्णन है कि ’’कबीर अल्लाह ने सर्व सृष्टि की रचना छः दिन में की। फिर ऊपर आसमान में तख्त (सिंहासन) पर जा विराजा। उसकी खबर यानि सम्पूर्ण जानकारी किसी बाखबर (तत्त्वदर्शी संत) से पूछो। (उससे जानो।)‘‘

यह कादर अल्लाह (अल्लाह ताला) है, सृष्टि का रचनहार है। इसने जो रचना करनी थी, छः दिन में की तथा जो प्राणियों के खाने का आदेश देना था, दिया और सातवें दिन ऊपर आसमान में अपने निज निवास में तख्त पर जा बैठा जिसका आदेश मानव (नर-नारी) को माँस खाने का नहीं है। इसके आदेश की अवहेलना करके अन्य का आदेश पालन करके माँस खाने वाले परमेश्वर का विधान भंग कर रहे हैं जो दंडित किए जाएँगे।

विशेष:- बाईबल के इस कथन से सिद्ध होता है कि सृष्टि रचना करने वाले ने अपने वचन से अनेकों स्त्री-पुरूषों (मनुष्यों) की उत्पत्ति की थी तथा अनेकों पशु, पक्षियों तथा पृथ्वी व जल के जीव-जंतुओं की उत्पत्ति की थी। जैसे कहा है कि {बाईबल उत्पत्ति 1:25} छठे दिन:- इस प्रकार परमेश्वर ने पृथ्वी के जाति-जाति के वन-पशुओं को और जाति-जाति के भूमि पर रेंगने वाले सब जंतुओं को बनाया।

1:26-27:- तब परमेश्वर ने मनुष्यों को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया। नर-नारी करके मनुष्यों की सृष्टि की। जो बाईबल में आगे वर्णन है, यह प्रलय के बाद का है। फिर भी हमने माँस न खाने वाला प्रकरण समझना है। इससे स्पष्ट है कि पूर्ण ब्रह्म (कादर अल्लाह) यानि परमेश्वर का आदेश मानव को माँस खाने का नहीं है। माँस खाने से पाप लगता है। आगे पढ़ें विस्तृत वर्णन:-

अल्लाह के तख्त पर जाने के पश्चात् काल ब्रह्म ने इसमें पुनः मानव रचना की। उसका वर्णन आगे है। काल ब्रह्म ने अपने तीनों पुत्रों (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) को यहाँ का संचालक बनाया है। कर्मों के अनुसार फल देना इनके अधिकार में दिया है। स्वयं गुप्त रहता है।

आगे इस पवित्र ग्रंथ बाईबल में कहीं पर माँस खाने का निर्देश है, वह उस पूर्ण ब्रह्म (ब्वउचसमजम ळवक) का नहीं है। इसी प्रकार यदि पवित्र बाईबल में या पवित्र कुरआन में कहीं माँस खाने का आदेश है तो वह पूर्ण ब्रह्म (कादर अल्लाह) का नहीं है। वह हमने नहीं मानना है।

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