सन्त गरीब दास महाराज (गाँव-छुड़ानी जिला-झज्जर) ने अपनी अमृतवाणी में भी स्पष्ट किया है कि हजरत मुहम्मद तथा एक लाख अस्सी हजार जो आदम से मुहम्मद तक नबी हुए हैं तथा मुहम्मद के उस समय अनुयायी मुसलमान थे, उन्होंने माँस नहीं खाया तथा गाय को बिस्मल (हत्या) नहीं किया।
गरीब, नबी मुहम्मद नमस्कार है, राम रसूल कहाया।
एक लाख अस्सी कूं सौगन्ध, जिन नहीं करद चलाया।।
अर्स-कुर्स पर अल्लह तख्त है, खालिक बिन नहीं खाली।
वे पैगम्बर पाक पुरूष थे, साहेब के अबदाली।।
भावार्थ:- संत गरीब दास जी ने बताया है कि नबी मुहम्मद को मैं प्रणाम करता हूँ। वे तो परमात्मा के रसूल (संदेशवाहक) थे। उनके एक लाख अस्सी हजार मुसलमान अनुयायी मुहम्मद जी के समय में हुए हैं। एक लाख अस्सी हजार नबी भी बाबा आदम से हजरत मुहम्मद तक हुए हैं। मैं (गरीब दास जी) कसम खाता हूँ कि उन्होंने (एक लाख अस्सी हजार नबियों तथा अनुयाइयों ने) तथा हजरत मुहम्मद जी ने ज्ञान होने के बाद कभी किसी जीव पर करद (छुरा) नहीं चलाया अर्थात् कभी भी जीव हिंसा नहीं की और माँस नहीं खाया। परमात्मा आसमान के अन्तिम छोर (सर्व ब्रह्माण्डों के ऊपर के स्थान) पर विराजमान है, परन्तु उसकी नजरों से कोई भी जीव छिपा नहीं है, वह सर्व जीवों को देखता है। वे पैगम्बर (हजरत मुहम्मद तथा अन्य) पवित्र आत्माऐं थे। वे परमात्मा के कृपा पात्र थे।
(Viewpoint of Sant Jambheshwar on Prophet Muhammad)
इसी बात की गवाही सन्त जम्भेश्वर जी महाराज (बिश्नोई धर्म के प्रवर्तक) ने दी है। शब्द संख्या 12 में:-
महमद-महमद न कर काजी, महमद का तो विषम विचारू।
महमद हाथ करद न होती, लोहे घड़ी न सारू।
महमद साथ पयबंर सीधा, एक लाख अस्सी हजारूं।
महमद मरद हलाली होता, तुम ही भए मुरदारूं।
भावार्थ:- सन्त जम्भेश्वर जी ने बताया है कि:- हे काजी! आप उस पवित्र आत्मा मुहम्मद जी का नाम लेकर जो गाय या अन्य जीवों को मारते हो, उस महापुरूष को बदनाम करते हो, हजरत मुहम्मद जी के विचार बहुत नेक थे। आप उनके बताए मार्ग से भटक गए हैं, मुहम्मद जी के हाथ में करद (जीव काटने का छुरा) नहीं था, जो लोहे का अहरण पर घण कूटकर तैयार होता है। हजरत मुहम्मद के साथ एक लाख अस्सी हजार पवित्रात्माऐं मुसलमान अनुयाई थे। वे तथा हजरत आदम से हजरत मुहम्मद तक नबी हुए हैं। वे सीधे-साधे थे तथा नेक पैगम्बर थे। हजरत मुहम्मद तो शूरवीर हलाल की कमाई करके खाने वाले थे। तुम ही मुरदारू (जीव हिंसा करने वाले) हो। आप उस महापुरूष के अनुसार अपना जीवन निष्पाप बनाओ। जीव हिंसा मत करो।
जैसा कि वेदों में प्रमाण है कि परमात्मा सत्यलोक में रहता है, वहाँ से गति करके पृथ्वी पर प्रकट होता है, अच्छी आत्माओं को मिलता है। उनको आध्यात्मिक यथार्थ ज्ञान देता है, कवियों की तरह आचरण करता हुआ पृथ्वी पर विचरता है। जिस कारण से प्रसिद्ध कवियों में से भी एक कवि होता है। वह कवि की उपाधि प्राप्त करता है, परमात्मा गुप्त भक्ति के मन्त्र को उद्घृत करता है जो वेदों व कतेबों आदि-आदि पोथियों में नहीं होता। कृपया इन मन्त्रों का अनुवाद देखें फोटोकापियों में इसी पुस्तक के पृष्ठ 202 पर।
प्रमाण:- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 20 मन्त्र 1, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 86 मन्त्र 26-27, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 82 मन्त्र 1, 2, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 54 मन्त्र 3, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 94 मन्त्र 1, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 95 मन्त्र 2, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 17 से 20 जैसा कि पूर्व में लिख दिया है कि हजरत मुहम्मद जी तथा अन्य कई महात्माओं को परमात्मा जिन्दा महात्मा के रूप में मिला था उसी प्रकार महात्मा जम्भेश्वर जी महाराज को समराथल में जिन्दा सन्त के रूप में परमात्मा मिले थे।
दिल-दिल आप खुदाय बंद जाग्यो, सब दिल जाग्यो सोई।
जो जिन्दो हज काबै जाग्यो, थल सिर जाग्यो सोई।।
नाम विष्णु कै मुसकल घातै, ते काफर सैतानी।
हिन्दु होय का तीर्थ न्हावै, पिंड भरावै, तेपण रहा इवांणी।
तुरक होय हज कांबो धोके, भूला मुसलमाणी।
के के पुरूष अवर जागैला, थल जाग्यो निज वाणी।
भावार्थ:- श्री जम्भेश्वर महाराज जी ने बताया है कि जो परमात्मा जिन्दा महात्मा के रूप में हजरत मुहम्मद जी को काबा (मक्का) में उस समय मिला था जिस समय मुहम्मद जी हज के लिए मक्का में बनी मस्जिद काबा गए थे और उनको जगाया था कि मन्दिर-मस्जिद, आदि तीर्थ स्थानों पर चक्कर लगाने से परमात्मा नहीं मिलता, परमात्मा प्राप्ति के लिए मन्त्र जाप की आवश्यकता है। श्री जम्भेश्वर जी महाराज ने फिर बताया है कि वही परमात्मा थल सिर (समराथल) स्थान (राजस्थान प्रान्त) में आया और मुझे जगाया? न जाने कितने व्यक्ति और जागेंगे जैसे मेरा समराथल प्रसिद्ध है। यह मेरी निज वाणी यानि विशेष वचन है। मैंने अपनी अनुभव की खास (निज) यथार्थ वाणी बोलकर समराथल के व्यक्तियों में परमात्मा भक्ति की जाग्रति लाई है, सत्य से दूर होकर मुसलमान अभी भी काबे में हज करने जाते हैं, वहाँ धोक लगाते हैं, पत्थर को सिजदा करते हैं जो व्यर्थ है। इसी प्रकार हिन्दू भी तीर्थ पर जाते हैं, भूतों की पूजा करते हैं, पिण्ड भराते हैं, यह व्यर्थ साधना है।
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