कुरआन का ज्ञान देने वाला अपनी महिमा बताता है

कुरआन का ज्ञान देने वाला अपनी महिमा बताता है

Knowledge Giver of Quran talks about his own Glory

सूरः अंबिया-21 (कुरआन मजीद बडे़ साइज वाली से)

आयत नं. 92:- यह है तुम्हारा तरीका कि (जिस पर तुमको रहना वाजिब है और) वह एक ही तरीका है और मैं तुम्हारा रब हूँ सो तुम मेरी इबादत किया करो।

सूरः अंबिया-21 (कुरआन मजीद बडे़ साइज वाली से)

आयत नं. 30:- उन काफिरों को यह मालूम नहीं हुआ कि आसमान और जमीन (पहले) बंद थे। फिर हमने दोनों को (अपनी कुदरत से) खोल दिया। और हमने पानी से हर जानदार चीज को बनाया। क्या (उन बातों को सुनकर) फिर भी ईमान नहीं लाते।

सूरः अंबिया-21 (कुरआन मजीद बडे़ साइज वाली से)

आयत नं. 31:- और हमने जमीन में इसलिए पहाड़ बनाए कि जमीन उन लोगों को लेकर हिलने न लगे। और हमने इस जमीन में खुले रास्ते बनाए ताकि वे लोग (उनके जरिये से) मंजिलों (मकसूद) को पहुँच जाएँ।

सूरः अंबिया-21 (कुरआन मजीद बडे़ साइज वाली से)

आयत नं. 32:- और हमने अपनी (कुदरत से) आसमान को एक छत (की तरह) बनाया जो महफूज (सदा रहने वाला) है और ये लोग इस (आसमान के अंदर) की (मौजूदा) निशानियों से मुँह मोड़े हुए हैं।

कुरआन ज्ञान दाता अपने से अन्य कादर अल्लाह की महिमा बताता है

सूरः अस् सज्दा-32 आयत नं. 4:- वह अल्लाह ही है जिसने आसमानों और जमीन को और उन सारी चीजों को जो इनके बीच है, छः दिन में पैदा किया और उसके बाद सिंहासन पर विराजमान हुआ। उसके सिवा न तुम्हारा कोई अपना है, न सहायक है और न कोई उसके आगे सिफारिश करने वाला है। फिर क्या तुम होश में न आओगे।

कुरआन का ज्ञान उतारने वाले अल्लाह ने सूरः बकरा-2 आयत नं. 255 में कहा है कि अल्लाह वह जीवन्त शाश्वत् सत्ता है जो सम्पूर्ण जगत को संभाले हुए है। उसके सिवा कोई खुदा नहीं है। वह न तो सोता है और न उसे ऊँघ लगती है। जमीन और आसमान में जो कुछ भी है, उसी का है। कौन है जो उसके सामने उसकी अनुमति के बिना सिफारिश कर सके। वह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सब बातों को जानने वाला है। या वह जान सकता है जिस पर वह अनुग्रह करे।

उसका राज्य आसमानों और जमीन पर छाया हुआ है और उनकी देखरेख उसके लिए कोई थका देने वाला काम नहीं है। सब एक वही महान और सर्वोपरि सत्ता है। {स्पष्ट हुआ कि कादर अल्लाह जो सम्पूर्ण जगत को संभाले हुए है, सबका मालिक है, सृष्टि की उत्पत्ति करता है, वह कुरआन ज्ञान बताने वाले से अन्य है।}

पुस्तक ’’फजाईले आमाल‘‘ से जानकारी

कुरआन ज्ञान देने वाले से अन्य समर्थ अल्लाह के विषय में अन्य जानकारीः-

फजाईले आमाल मुसलमानों की एक विश्वसनीय पवित्र पुस्तक है जो हदीसों में से चुनी हुई हदीसों का प्रमाण लेकर बनाई गई है। हदीस मुसलमानों के लिए पवित्र कुरआन के पश्चात् दूसरे नम्बर पर है। फजाईले आमाल में एक अध्याय फजाईले जिक्र है। उसकी आयत नं. 1, 2, 3, 6 तथा 7 में कबीर अल्लाह की महिमा है।

विशेष विचार:- फजाईले आमाल मुसलमानों की एक विशेष पवित्र पुस्तक है जिसमें पूजा की विधि तथा पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब का नाम विशेष रूप से वर्णित है। जैसा कि आप निम्न फजाईले आमाल के ज्यों के त्यों लेख देखेंगे उनमें फजाईले जिक्र में आयत नं. 1, 2, 3, 6 तथा 7 में स्पष्ट प्रमाण है कि पाक कुरआन का ज्ञान उतारने वाला (अल्लाह) ब्रह्म (काल अर्थात् क्षर पुरूष) कह रहा है कि तुम कबीर अल्लाह कि बड़ाई बयान करो। वह कबीर अल्लाह तमाम पोसीदा और जाहिर चीजों को जानने वाला है और वह कबीर है और आलीशान रूत्बे वाला है। जब फरिश्तों को कबीर अल्लाह की तरफ से कोई हुक्म होता है तो वे खौफ के मारे घबरा जाते हैं। यहाँ तक कि जब उनके दिलों से घबराहट दूर होती है तो एक दूसरे से पूछते हैं कि कबीर परवरदिगार का क्या हुक्म है। वह कबीर आलीशान मर्तबे वाला है। ये सब आदेश कबीर अल्लाह की तरफ से है जो बड़े आलीशान रूत्बे वाला है। हजुरे अक्सद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम (हजरत मुहम्मद) का इर्शाद (कथन) कहना है कि कोई बंदा ऐसा नहीं है कि ‘लाइला-ह-इल्लल्लाह‘ कहे उसके लिए आसमानों के दरवाजे न खुल जाएँ, यहाँ तक कि यह कलिमा सीधा अर्श तक पहुँचता है, बशर्ते कि कबीरा गुनाहों से बचाता रहे। दो कलमों का जिक्र है कि एक तो ‘लाइला-ह-इल्लल्लाह‘ है और दूसरा ‘अल्लाहु अक्बर‘(कबीर)। {यहाँ पर अल्लाहु अक्बर का भाव है भगवान कबीर (कबीर साहेब अर्थात् कविर्देव)।}

फिर फजाईले दरूद शरीफ़ में भी कबीर नाम की महिमा का प्रत्यक्ष प्रमाण छुपा नहीं है।

कृप्या निम्न पढ़िये फजाईले आमाल का लेख:-

फजाईले आमाल से सहाभार ज्यों का त्यों लेख:-
फजाइले जिक्र

बल्लत कबीर बूल्लाह आला महादाकुप वाला अल्ला कुम तरकोरून (1)

और ताकि तुम कबीर अल्लाह की बड़ाई बयान करों, इस बात पर कि तुम को हिदायत फरमायी और ताकि तुम शुक्र करो अल्लाह तआला का।

फजाइले जिक्र

अल्लीमूल गैब बसाहादाती तील कबीर रूलमुतालू (2)

वह कबीर अल्लाह तमाम पोशीदा और जाहिर चीजों का जानने वाला है(सबसे) बड़ा है और आलीशान रुत्बे वाला है।

फजाइले जिक्र

थाजालीका सहारा लाकुम लीतू कबीरू
बुल्लाह आला महादा कुम बसीरी रील मोहसीनीन (3)

इसी तरह अल्लाह जल्ल शानुहू ने तुम्हारे लिए मुसख्खर कर दिया ताकि तुम कबीर अल्लाह की बड़ाई बयान करो। इस बात पर कि उसने तुमको हिदायत की इख्लास वालों को (अल्लाह की रिजा की) खुशखबरी सुना दीजिए।

फजाइले जिक्र

माजा काला रब्बूकूम कालू लूलहक्का वाहोवर अल्लीयू उल्ल कबीर (6)

(जब फरिश्तों को कबीर अल्लाह की तरफ से कोई हुक्म होता है तो वे खौफ के मारे घबरा जाते हैं) यहाँ तक कि जब उनके दिलों से घबराहट दूर हो जाती है, तो एक दूसरे से पूछते हैं कि कबीर परवरदिगार का क्या हुक्म है? वे कहते हैं कि (फ्लानी) हक बात का हुक्म हुआ। वाकई वह (कबीर) आलीशान और मर्तबे वाला है।

फजाइले जिक्र

कुल हूक्कू मूल्लाही हीलअल्ली लील कबीर (7)

पस हुक्म कबीर अल्लाह ही के लिए है, जो आलीशान है, बड़े रुत्बे वाला है।

फजाईले दरूद शरीफ

अल्लाहुम-म सल्लि अलारूहि मुहम्मदिन फ़िल् अर्वाहि अल्लाहुम-म सल्लि अला ज-स-दि मुहम्मदिन फिल् अज्सादि अल्लाहुम म सल्लि अला कबिर् (कबीर) मुहम्मिद फ़िल् कुबूरि0

फजाईले जिक्र

हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इर्शाद है कि कोई बन्दा ऐसा नहीं कि ‘लाइला-ह-इल्लल्लाहह‘ कहे और उसके लिए आसमानों के दरवाजें न खुल जायें, यहाँ तक कि यह कलिमा सीधा अर्श तक पहुँचता है, बशर्ते कि कबीरा गुनाहों से बचाता रहे। फ़µकितनी बड़ी फ़जीलत है और कुबूलियत की इन्तिहा है कि यह कलिमा बराहे रास्त अर्शे मुअल्ला तक पहुँचता है और यह अभी मालूम हो चुका है कि अगर कबीरा गुनाहों के साथ भी कहा जाये, तो नफ़ा से उस वक्त भी खाली नहीं।

मुल्ला अली कारी रह0 फरमाते हैं कि कबाइर से बचने की शर्त कुबूल की जल्दी और आसमान के सब दरवाजे खुलने के एताबर से है, वरना सवाब और कूबूल से कबाइर के साथ भी खाली नहीं।

बाज उलेमा ने इस हदीस का यह मतलब बयान फरमाया है कि ऐसे शख्स के वास्ते मरने के बाद उस की रूह के एजाज में आसमान के सब दरवाजे खुल जायेंगे।

एक हदीस में आया है, दो कलिमे ऐसे हैं कि उनमें से एक के लिए अर्श के नीचे कोई मुन्तहा नहीं।‘ दूसरा आसमान और जमीन को (अपने नूर या अपने अज्र से) भर दे एक ‘लाइला-ह इल्लल्लाह‘, दूसरा ‘अल्लाहु अक्बर, (परमेश्वर कबीर)

फजाइले जिक्र

‘सुब्हानल्लाहि अल्हम्दु लिल्लाहि अल्लाहु अक्बरू‘(कबिर्)

फजाइले दरूद शरीफ

मन सल्ला अला रूहि मुहम्मदिन फिल् अर्वाहि व अला-ज-स
दिही फिल् अज्सादि व अला कबिर् (कबीर) ही फिल कुबूरि0
व इन्नहाल कबीर तुन इल्ला अलल् खाशिलीनल्लजीन यजुन्नून
अन्नहुम मुलाकू रग्बिहिन व अन्नहुम इलैहि राजिऊन0

(फजाइले आमाल से लेख समाप्त)

अन्य प्रमाण:- कुरआन का ज्ञान देने वाले ने अपने से अन्य सृष्टि उत्पत्तिकर्ता के विषय में बताया है जो इस प्रकार है:-
कुरआन मजीद से प्रमाण
सूरत फुरकानि (फुरकान)-25 आयत नं. 52-59:-

कुरआन मजीद से मूल पाठ इस प्रकार है:-

आयत नं. 52:- फला तुतिअल काफिरन व जाहिद्हुम् बिही जिहादन कबीरा।(52)

आयत नं. 52:- तो (ऐ पैगम्बर) तुम काफिरों का कहा न मानना और इस (कुरआन की दलीलों) से उनका सामना बड़े जोर से करना।(52)

कुरआन शरीफ से आयत नं. 53 से 59 का हिन्दी अनुवाद निम्न है:-

आयत नं. 53:- और वही है जिसने दो दरियाओं को मिला (मिला) चलाया। एक (का पानी) मीठा प्यास बुझाने वाला और एक (का) खारी कड़वा और दोनों में एक मजबूत रोक बना दी।

आयत नं. 54:- और वही है जिसने पानी (की बूँद) से आदमी को पैदा किया। फिर उसे साहिबे नसब (यानि किसी का बेटा या बेटी) और ससुराल वाला (यानि किसी का दामाद, बहू) बनाया। और तुम्हारा परवरदिगार हर चीज करने पर शक्तिमान है।

आयत नं. 55:- और (काफिर) अल्लाह के सिवाय ऐसों को पूजते हैं जो न उनको नफा पहुँचा सकते हैं और न (उनको) नुकसान (पहुँचा सकते हैं) और काफिर तो अपने परवरदिगार से पीठ दिए हुए (मुँह मोड़े) हैं।

आयत नं. 56:- और (ऐ पैगम्बर) हमने तुमको खुशखबरी सुनाने और (सिर्फ अजाब से) डराने के लिए भेजा है।

आयत नं. 57:- (इन लोगों से) कहो कि मैं तुमसे इस (अल्लाह के हुक्म) पर कुछ मजदूरी नहीं माँगता। हाँ, जो चाहे अपने परवरदिगार तक पहुँचने की राह इख्तियार कर ले।

आयत नं. 58:- और (ऐ पैगम्बर) उस जिंदा (चैतन्य) पर भरोसा रखो जो कभी मरने वाला नहीं और तरीफ के साथ उसकी पाकी ब्यान करते रहो और अपने बंदों के गुनाहों से वह काफी खबरदार है।

{अरबी भाषा वाला मूल पाठ ’’नागरी लिपि में‘‘ आयत नं. 58:-

व तवक्कल अल्ल् हय्यिल्लजी ला यमूतु व सब्बिह् बिहम्दिह व कफा बिही बिजुनूबि अिबादिह खबीरा।

सूरत फुरकानि-25 (कुरआन शरीफ से हिंदी)

आयत नं. 59:- जिसने आसमानों और जमीन और जो कुछ उनके बीच में है (सबको) छः दिन में पैदा किया और फिर तख्त पर जा बिराजा। (वह अल्लाह बड़ा) रहमान है तो उसकी खबर किसी बाखबर (इल्मवाले) से पूछ देखो।

{आयत नं. 59 का अरबी भाषा वाला मूल पाठ नागरी लिपी में इस प्रकार है:-

अल्लजी खलकस्समावाति वल्अर्ज व मा बैनहुमा फी सित्तति अय्यामिन् सुम्मस्तवा अल्लअर्शि ज अर्रह्मानु फस्अल् बिही खबीरन्।

विवेचन:- (आयत नं. 52) जो अल्लाह कुरआन (मजीद व शरीफ) का ज्ञान हजरत मुहम्मद जी को बता रहा है, वह कह रहा है कि हे पैगम्बर! तुम काफिरों की बात न मानना क्योंकि वे कबीर अल्लाह को नहीं मानते। उनका सामना (संघर्ष) मेरे द्वारा दी गई कुरआन की दलीलों के आधार से बहुत जोर से यानि दृढ़ता के साथ करना अर्थात् वे तुम्हारी न मानें कि कबीर अल्लाह ही समर्थ (कादर) है तो तुम उनकी बातों को न मानना।

आयत नं. 53 से 59 तक उसी कबीर अल्लाह की महिमा (पाकी) ब्यान की गई है। कहा है कि यह कबीर वह कादर अल्लाह है जिसने सब सृष्टि की रचना की है। उसने मानव उत्पन्न किए। फिर उनके संस्कार बनाए। रिश्ते-नाते उसी की कृपा से बने हैं। खारे-मीठे जल की धाराएँ भी उसी ने भिन्न-भिन्न अपनी कुदरत (शक्ति) से बहा रखी हैं। पानी की बूँद से आदमी (मानव=स्त्री-पुरूष) उत्पन्न किया। {सूक्ष्मवेद में कहा है कि पानी की बूँद का तात्पर्य नर-मादा के तरल पदार्थ रूपी बीज से है।}

जो इस अल्लाह अकबर (परमेश्वर कबीर) को छोड़कर अन्य देवों व मूर्तियों की पूजा करते हैं जो व्यर्थ है। वे साधक को न तो लाभ दे सकते हैं, न हानि कर सकते हैं। वे तो अपने उत्पन्न करने वाले परमात्मा से विमुख हैं। मृत्यु के पश्चात् पछताना पड़ेगा। उन्हें समझा दो कि मेरा काम तुम्हें सच्ची राह दिखाना है। उसके बदले में मैं तुमसे कोई रूपया-पैसा भी नहीं ले रहा हूँ, कहीं तुम यह न समझो कि यह (नबी) अपने स्वार्थवश गुमराह कर रहा है। यदि चाहो तो अपने परवरदिगार (उत्पत्तिकर्ता तथा पालनहार) का भक्ति मार्ग ग्रहण कर लो।

(कुरआन ज्ञानदाता नबी मुहम्मद जी से फिर कहता है कि)

आयत नं. 58:- और (ऐ पैगम्बर) उस जिंदा {जो जिंदा बाबा के वेश में तेरे को काबा में मिला था, वह अल्लाह कबीर} पर विश्वास रखो जो कभी मरने वाला नहीं है (अविनाशी परमेश्वर है) और तारीफ (प्रशंसा) के साथ उसकी पाकी ब्यान (पवित्र महिमा का गुणगान) करते रहो और अपने बंदों के गुनाहों (पापों) से वह कबीर परमेश्वर अच्छी तरह परिचित है यानि सत्य साधक के सब पाप नाश कर देता है।

’’वह ज्ञान जिसको कुरआन तथा गीता ज्ञान उतारने वाला भी नहीं जानता‘‘

आयत 59:- कबीर अल्लाह (अल्लाहू अकबर) वही है जिसने सर्व सृष्टि (ऊपर वाली तथा पृथ्वी वाली) की रचना छः दिन में की। फिर ऊपर अपने निज लोक में सिंहासन पर जा विराजा। (बैठ गया।) वह कबीर अल्लाह बहुत रहमान (दयावान) है। उसके विषय में पूर्ण जानकारी किसी (बाखबर) तत्त्वदर्शी संत से पूछो, उससे जानो।

इससे यह बात स्पष्ट हुई कि कुरआन ज्ञान देने वाला उस समर्थ परमेश्वर कबीर के विषय में पूर्ण ज्ञान नहीं रखता। उसको प्राप्त करने की विधि कुरआन ज्ञान दाता को नहीं है। इसीलिए तो सूरत 42 अश् शूरा की आयत नं. 1 व 2 में सांकेतिक शब्द बताए हैं जिनके अर्थ का वर्तमान तक मुझ दास (रामपाल दास) के अतिरिक्त किसी को भी ज्ञान नहीं था। हजरत मुहम्मद को भी इनका ज्ञान नहीं था। इनके ज्ञान बिना मोक्ष नहीं हो सकता। न जन्नत (काल वाला स्वर्ग) प्राप्त हो सकता।

इससे यह भी सिद्ध हुआ कि हजरत आदम से लेकर हजरत मुहम्मद तक सब नबी व उनके अनुयाई मोक्ष से वंचित रहे। बहिसत (स्वर्ग) में भी नहीं जा पाए। संत गरीबदास जी ने कहा है कि यथार्थ भक्ति विधि से साधना न करने से नबी मुहम्मद भी बहिसत (स्वर्ग) नहीं जा सका। उसके पीछे उसी साधना को करके सब (तुर्क) मुसलमान भी सत्य साधना भूले हुए हैं।

वाणी:- गरीब, नबी मुहम्मद नहीं बहिसत सिधाना। पीछे भूला है तुर्काना।।

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