सूक्ष्मवेद में कहा है कि:-
वही मोहम्मद वही महादेव, वही आदम वही ब्रह्मा।
दास गरीब दूसरा कोई नहीं, देख आपने घरमा।।
भावार्थ:- मुसलमान धर्म के प्रवर्तक हजरत मुहम्मद जी भगवान शिव के लोक से आए, पुण्यकर्मी आत्मा थे जो परंपरागत साधना ही एक गुफा में बैठकर किया करते थे। शिव जी का एक गण जो ग्यारह रूद्रों में से एक है, वह मुहम्मद जी से उस गुफा में मिले। उन्हीं की भाषा (अरबी भाषा) में काल प्रभु अर्थात् ब्रह्म का संदेश सुनाया। उसी रूद्र को मुसलमान जबरिल फरिस्ता कहते हैं जो नेक फरिस्ता माना जाता है।
पुराणों में तथा जैन धर्म के ग्रन्थों में प्रसंग आता है जो इस प्रकार हैः- ऋषभदेव जी राजा नाभिराज के पुत्र थे। नाभिराज जी अयोध्या के राजा थे। ऋषभदेव जी के सौ पुत्रतथा एक पुत्री थी। एक दिन परमेश्वर एक सन्त रूप में ऋषभ देव जी को मिले, उनको भक्ति करने की प्रेरणा की, ज्ञान सुनाया कि मानव जीवन में यदि शास्त्रविधि अनुसार साधना नहीं की तो मानव जीवन व्यर्थ जाता है। वर्तमान में जो कुछ भी जिस मानव को प्राप्त है, वह पूर्व जन्म-जन्मान्तरों मे किए पुण्यों तथा पापों का फल है। आप राजा बने हो, यह आप का पूर्व जन्म का शुभ कर्म फल है। यदि वर्तमान में भक्ति नहीं करोगे तो आप भक्ति शक्तिहीन तथा पुण्यहीन होकर नरक में गिरोगे तथा फिर अन्य प्राणियों के शरीरों में कष्ट उठाओगे। (जैसे वर्तमान में इन्वर्टर की बैटरी चार्ज कर रखी है और चार्जर निकाल रखा है। फिर भी वह बैटरी कार्य कर रही है, इन्वर्टर से पँखा भी चल रहा है, बल्ब-ट्यूब भी जग रहे हैं। यदि चार्जर को फिर से लगाकर चार्ज नहीं किया तो कुछ समय उपरान्त इन्वर्टर सर्व कार्य छोड़ देगा, न पँखा चलेगा, न बल्ब, न ट्यूब जगेंगीं। इसी प्रकार मानव शरीर एक इन्वर्टर है। शास्त्र अनुकूल भक्ति चार्जर (ब्ींतहमत) है, परमात्मा की शक्ति से मानव फिर से चार्ज हो जाता है अर्थात् भक्ति की शक्ति का धनी तथा पुण्यवान हो जाता है।
यह ज्ञान उस ऋषि रूप में प्रकट परमात्मा के श्री मुख कमल से सुनकर ऋषभदेव जी ने भक्ति करने का पक्का मन बना लिया। ऋषभदेव जी ने ऋषि जी का नाम जानना चाहा तो ऋषि जी ने अपना नाम कविर्देव बताया तथा यह भी कहा कि मैं स्वयं पूर्ण परमात्मा हूँ।
चारों वेदों में जो ’’कविर्देव’’ लिखा है, वह मैं हूँ। मेरा यही नाम है। मैं ही परम अक्षर ब्रह्म हूँ। सूक्ष्मवेद में लिखा है:-
ऋषभ देव के आइया, कबी नामे करतार।
नौ योगेश्वर को समझाइया, जनक विदेह उद्धार।।
भावार्थ:- ऋषभदेव जी को ’’कबी’’ नाम से परमात्मा मिले, उनको भक्ति की प्रेरणा की। उसी परमात्मा ने नौ योगेश्वरों तथा राजा जनक को समझाकर उनके उद्वार के लिए भक्ति करने की प्रेरणा की। ऋषभदेव जी को यह बात रास नहीं आई कि यह ऋषि ही कविर्देव है जो वेदों में सबका उत्पत्तिकर्ता कविर्देव लिखा है। परन्तु भक्ति करने का दृढ़ मन बना लिया। एक तपस्वी ऋषि से दीक्षा लेकर ओम् (ऊँ) नाम का जाप तथा हठयोग किया। ऋषभदेव जी का बड़ा पुत्र ’’भरत’’ था, भरत का पुत्र मारीचि था। ऋषभ देव जी ने पहले एक वर्ष तक निराहार रहकर तप किया। फिर एक हजार वर्ष तक घोर तप किया। तपस्या समाप्त करके अपने पौत्र अर्थात् भरत के पुत्र मारीचि को प्रथम धर्मदेशना (दीक्षा) दी। यह मारीचि वाली आत्मा 24वें तीर्थकर महाबीर जैन जी हुए थे। ऋषभदेव जी ने जैन धर्म नहीं चलाया, यह तो श्री महाबीर जैन जी से चला है। वैसे श्री महाबीर जी ने भी किसी धर्म की स्थापना नहीं की थी। केवल अपने अनुभव को अपने अनुयाईयों को बताया था। वह एक भक्ति करने वालों का भक्त समुदाय है। ऋषभदेव जी ‘‘ओम्‘‘ नाम का जाप ओंकार बोलकर करते थे। उसी को वर्तमान में अपभ्रंस करके ’’णोंकार’’ मन्त्र जैनी कहते हैं, इसी का जाप करते हैं, इसको ओंकार तथा ऊँ भी कहते हैं।
हम अपने प्रसंग पर आते हैं। जैन धर्म ग्रन्थ में तथा जैन धर्म के अनुयाईयों द्वारा लिखित पुस्तक ’’आओ जैन धर्म को जानें’’ में लिखा है कि ऋषभदेव जी (जैनी उन्हीं को आदिनाथ कहते हैं) वाला जीव ही बाबा आदम रूप में जन्मा था। अब उसी सूक्ष्म वेद की वाणी का सरलार्थ करता हूँ:-
वही मुहम्मद वही महादेव, वही आदम वही ब्रह्मा।
दास गरीब दूसरा कोई नहीं, देख आपने घरमा।।
बाबा आदम जी श्री ब्रह्मा जी देवता के लोक से आए थे क्योंकि मानव जन्म में की गई साधना के अनुसार प्राणी भक्ति अनुसार ऊपर तीनों देवताओं (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी) के लोकों में बारी-बारी जाता है, अपने पुण्य क्षीण होने पर पुनः पृथ्वी पर संस्कारवश जन्म लेता है।
संत गरीब दास जी (गाँव-छुड़ानी जिला-झज्जर हरियाणा प्रांत वाले) को स्वयं ही वही परमात्मा मिले थे जो ऋषभदेव जी को मिले थे। संत गरीब दास जी ने परमेश्वर के साथ ऊपर जाकर अपनी आँखों से सर्व व्यवस्था को देखा था। फिर बताया है कि आदम जी ब्रह्मा जी के लोक से आए थे, ब्रह्मा के अवतार थे। मुहम्मद जी तम्गुण शिव जी के अवतार थे। प्रिय पाठको! अवतार दो प्रकार के होते हैं, 1) स्वयं वह प्रभु अवतार लेता है जैसे श्री राम, श्री कृष्ण आदि के रूप में स्वयं श्री विष्णु जी अवतार धारकर आए थे। परंतु कपिल ऋषि जी, परशुराम जी को भी विष्णु जी के अवतारों में गिना जाता है। ये स्वयं श्री विष्णु जी नहीं थे, विष्णु लोक से आए देवात्मा थे। उनके पास कुछ शक्ति विष्णु जी की थी क्योंकि वे उन्हीं के द्वारा भेजे गए थे। इसी प्रकार हजरत मुहम्मद जी श्री शिव जी के (लोक से आए देव आत्मा) अवतार थे तथा बाबा आदम जी श्री ब्रह्मा जी के (लोक से आए देव आत्मा) अवतार थे। इसी प्रकार ईसा मसीह जी श्री विष्णु जी के (लोक से आए देव आत्मा) अवतार थे। ईसाई श्रद्धालु भी ईसा जी को प्रभु का पुत्र मानते हैं, प्रभु नहीं।
संत गरीबदास जी ने कहा है कि यदि आप जी को मेरी बात पर विश्वास नहीं होता तो मेरे द्वारा बताई शास्त्रविधि अनुसार भक्ति-साधना करके अपने घर में अर्थात् अपने मानव शरीर में अपनी आँखांे देख लो।
भावार्थ है:- सर्व धर्मों के मानव (स्त्री-पुरूष) के शरीर की रचना एक जैसी है। तत्त्वज्ञान न होने के कारण हम धर्र्मों में बँट गए हैं। संत गरीब दास जी ने बताया है कि मानव शरीर में रीढ़ की हड्डी अर्थात् spinal cord के अन्दर की ओर (निचले सिरे से लेकर कण्ठ तक) पाँच कमल चक्र बने हैं। कृपया देखें यह चित्र:-
{जो चित्र में दिखाए हैं। इनमें छठा कमल तथा नौंवा कमल नहीं दिखाया है। कारण यही है कि विद्यार्थियों की धीरे-धीरे ज्ञान वृद्धि की जाती है। कमलों का गहरा रहस्य है। यह कबीर सागर के सारांश में लिखा है।}
शरीर में ये कमल ऐसा कार्य करते हैं, जैसे टेलीविजन में चैनल लगे हैं। उन चैनलों में से जिस भी चैनल को चालू करोगे, उस पर कार्यक्रम दिखाई देगा। वह कार्यक्रम चल तो रहा है स्टूडियो में, दिख रहा है टी.वी. में। इसी प्रकार प्रत्येक कमल का फंक्शन (थ्नदबजपवद) है। इन कमलों को चालू करने के मन्त्र हैं जो यह दास (संत रामपाल दास) जाप करने को देता है। प्रथम बार दीक्षा इन्हीं चैनलों को खोलने की दी जाती है। मन्त्रों की शक्ति से सर्व कमल व्द (चालू) हो जाते हैं, फिर साधक अपने शरीर में लगे चैनल में उस देव के धाम को देख सकता है, वहाँ के सर्व दृश्य देख सकता है। इसलिए संत गरीब दास जी ने कहा है कि आप अपने शरीर के चैनल व्द (चालू) करके स्वयं देख लो कि आदम जी आप को ब्रह्मा के लोक से आए दिखाई देंगे क्योंकि वहाँ पर सर्व रिकाॅर्ड उपलब्ध है। जैसे वर्तमान में ल्वन ज्नइम है, इसी प्रकार प्रत्येक देव के लोक में आप जो पूर्व में हुई घटना देखना चाहें, आप देख सकते हैं। इसी प्रकार हजरत मुहम्मद जी आपको शिव जी के लोक से आए दिखाई देंगे। इसी प्रकार ईसा जी भी श्री विष्णु जी के लोक से आए दिखाई देंगे।
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