Mystery of Quran - Secret of Ayn Seen Qaf
कुरआन के अनुवादकर्ताओं ने सूरः अश् शूरा-42 की आयत नं. 1 के शब्दों हा.मीम. तथा आयत नं. 2 के शब्द अैन.सीन.काफ. का अनुवाद नहीं किया है। टिप्पणी की है कि यह गूढ़ रहस्य है। इसको तो खुदा ही जानता है।
फिर यह भी तर्क दिया है कि यदि इन पाँच अक्षरों का ज्ञान न भी हो तो भी कुरआन के ज्ञान की महिमा कम नहीं होती। न ही मानव को कोई हानि होती है। कुरआन तो ज्ञान का भंडार है। ज्ञान से ही आत्म कल्याण संभव है।
लेखक (रामपाल दास) का तर्क:- अध्यात्म ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। परंतु समाधान न हुआ तो ज्ञान व्यर्थ है। उदाहरण के लिए जैसे किसी व्यक्ति को किसी ने बताया कि आपको यह रोग है। इस रोग के ये लक्षण होते हैं। रोगी को ज्ञान हो गया कि मेरे को यह रोग है, परंतु उपचार का ज्ञान न तो रोग के ज्ञान करवाने वाले को तथा न रोगी को हो तो उस ज्ञान का क्या लाभ हुआ?
इसी प्रकार कुरआन मजीद का सब ज्ञान पढ़ लिया, याद भी हो गया। परंतु जो गूढ़ रहस्य है यानि जो उपचार है, हा.मीम. तथा अैन.सीन.काफ. का ज्ञान नहीं है तो कुरआन के पढ़ने से आत्म कल्याण नहीं हो सकता क्योंकि इन पाँच अक्षरों में आत्म कल्याण का रहस्य भरा है जो आप आगे पढ़ेंगे। कुरआन मजीद के ज्ञान से भक्ति मर्यादा का ज्ञान होता है तथा कर्म, अकर्म का ज्ञान होता है। धर्म करो, पाप न करो। ग्रंथ का (कुरआन का) नित्य कुछ अंश पाठ करो। नमाज करो, अजान दो, रोजे रखो, आदि-आदि इन क्रियाओं से जीव का जन्म-मरण का चक्र समाप्त नहीं हो सकता। जन्म-मरण के कष्ट से छुटकारे के लिए नाम (मंत्र) का जाप करना पड़ता है। अैन.सीन.काफ.। ये उन तीन नामों (मंत्रों) के सांकेतिक शब्द हैं जो मोक्षदायक कल्याणकारक मंत्र हैं। उनके प्रथम अक्षर हैं। पूर्ण संत जो इस रहस्य को जानता है, उससे दीक्षा लेकर इन तीनों मंत्रों का जाप करने से आत्म कल्याण होगा। और किसी साधन से जीव को मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता।
हा.= हक , मीम.= माबूद यानि यथार्थ पूजा के अैन.सीन काफ. मंत्र हैं। जो साधना मुसलमान करते हैं, पाँच समय नमाज, जकात (दान), रोजे (व्रत) रखना, कुरआन मजीद का तिलावत (पाठ) करना आदि-आदि यह तो ऐसा जानो जैसे रोगी को ग्लूकोस लगा दी। परंतु रोग नाश करने की गोली व इंजैक्शन लगाए बिना रोगी स्वस्थ नहीं होगा। अैन-सीन-काफ. जिन तीन मंत्रों (नामों) के सांकेतिक शब्द हैं, उन नामों को रोगनाशक गोली (tablet) तथा इंजैक्शन (injection) जानो। इन नामों का जाप करने से जन्म-मरण का चक्र सदा के लिए समाप्त हो जाएगा। अब पढ़ें अैन-सीन- काफ. का भेद जो इस प्रकार है:-
सूरत अश् शूरा-42 की आयत नं. 1:- हा. मीम, आयत नं. 2:- अैन. सीन. काफ इन दोनों आयतों का सरलार्थ या विश्लेषण वर्तमान तक किसी ने नहीं किया है।
कुरआन के अनुवादकों ने यह कहकर छोड़ दिया कि इनका मतलब तो अल्लाह ही जानता है। अब जानो वह रहस्य।
चारों वेदों (ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद) का ज्ञान भी काल ब्रह्म ने सूक्ष्मवेद से चुनकर अधूरा दिया है। सामवेद के मंत्र नं. 822 में इन्हीं तीन नामों का संकेत है। लिखा है ‘‘त्री तस्य नाम’’ अर्थात् उस समर्थ परमेश्वर की पूजा के तीन नाम हैं। इसी काल ब्रह्म ने श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान दिया है।
श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान भी इसी कुरआन ज्ञान दाता ने अर्जुन (जो पाँचों पाण्डवों में से एक था) को बताया था। उसमें भी अध्याय 17 श्लोक 23 में तीन मंत्र कहे हैं।
उसमें लिखा है कि:-
गीता अध्याय 17 श्लोक 23:- मूल पाठ संस्कृत भाषा में लिपी नागरी ही है:-
ॐ (ओम्) तत् सत् इति निर्देशः ब्रह्मणः त्रिविधः स्मृतः।
ब्राह्मणाः तेन वेदाः च यज्ञाः च विहिता पुरा।।23।।
सरलार्थ:- गीता में कहा है कि ओम् (ॐ), तत्, सत्, यह (ब्रह्मणः) समर्थ परमेश्वर सृष्टिकर्ता की साधना करने का तीन नाम का मंत्र है। इसकी स्मरण की विधि तीन प्रकार से बताई है। सृष्टि के प्रारंभ में आदि सनातन पंथ के (ब्राह्मणाः) विद्वान साधक इसी आधार से साधना करते थे। सूक्ष्मवेद का ज्ञान स्वयं परमेश्वर जी ने बताया था। उसी आधार से ब्राह्मण यानि साधक बने। उसी सूक्ष्मवेद के आधार से (यज्ञाः) धार्मिक अनुष्ठानों का विधान बना तथा चारों वेद उसी सूक्ष्मवेद का अंश है जो काल ब्रह्म ने जान-बूझकर अधूरा ज्ञान ऋषियों को देकर भ्रमित किया जो बाद में सनातन पंथ (धर्म) के साधकों ने अपनाया। वह भी समय के अनुसार लुप्त हो गया था। फिर गीता के माध्यम से कुछ स्पष्ट, कुछ अस्पष्ट (सांकेतिक) ज्ञान ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) ने दिया। इसको भी इन (कोड वर्डस्) सांकेतिक मंत्रों का ज्ञान नहीं है कि पूरे मंत्र क्या हैं? सामवेद के मंत्र संख्या 822 में इन्हीं तीनों नामों का संकेत है।
वेदों में बताया है कि परम अक्षर ब्रह्म यानि अल्लाह कबीर ही इन सांकेतिक मंत्रों का यथार्थ ज्ञान करवाता है।
मुझ दास (रामपाल दास) को इन तीनों मंत्रों का ज्ञान करवाया है जो इस प्रकार है:-
’’अैन‘‘ यह अरबी भाषा का अक्षर है, देवनागरी में हिन्दी भाषा का ‘‘अ’’ है तथा
‘‘सीन’’ यह अरबी भाषा की वर्णमाला का अक्षर है जो देवनागरी में हिन्दी भाषा का ‘‘स’’ है तथा
‘‘काफ’’ यह अरबी वर्णमाला का अक्षर है, देवनागरी में हिन्दी भाषा का ‘‘क’’ है।
जैसे ओम् (ॐ) मंत्र का पहला अक्षर वर्णमाला का ‘‘अ’’ है। इसलिए ’’अैन‘‘ अक्षर ’’ओम्‘‘ का सांकेतिक है। ‘‘तत्’’ यह सांकेतिक मंत्र है। इसका जो यथार्थ मंत्र है, उसका पहला अक्षर ‘‘स’’ है तथा तीसरा जो ‘‘सत्’’ सांकेतिक मंत्र है, इसका जो यथार्थ मंत्र है, उसका पहला मंत्र ‘‘क’’ है। इसलिए गुप्त यानि सांकेतिक ’’अैन, सीन, काफ‘‘ कुरआन में बताए। वे गीता में बताए ’’ओम्, तत्, सत्‘‘ की तरह हैं। ये इन्हीं का संकेत है। इन मंत्रों के जाप से मानव को संसारिक सुख मिलेगा तथा पाप कर्मों के कारण होने वाले कष्ट (संकट) समाप्त होंगे तथा अकाल मृत्यु से बचाव होगा। काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) की जन्नत से असंख्य गुणा अधिक सुख वाली जन्नत (सतलोक सुख सागर) में स्थाई निवास मिलेगा तथा दोजख (नरक) में नहीं जाएँगे। सतलोक वाली जन्नत (स्वर्ग) में सदा सुखी रहेंगे। फिर पृथ्वी के ऊपर कभी जन्म उस तीन नाम का जाप करने वाले का नहीं होगा।
ये तीनों नाम दास (रामपाल दास) परमेश्वर कबीर जी की साधना करने वाले यथार्थ कबीर पंथ यानि आदि सनातन पंथ के (तेरहवें अंतिम पंथ के) साधकों को साधना के लिए दीक्षा में देता है। (यथार्थ कबीर पंथ में किसी भी धर्म, पंथ तथा जाति के स्त्री-पुरूष दीक्षा लेकर जुड़ सकते हैं।) यहाँ पर उन दो अन्य मंत्रों के यथार्थ मंत्रों को नहीं बताऊँगा। मेरे से दीक्षा प्राप्त भक्त इस प्रकरण को पढ़ते ही समझ जाएँगे। विश्व के मानव (स्त्री-पुरूष) को अल्लाहू अकबर यानि परमेश्वर कबीर जी की भक्ति करनी पड़ेगी। तब ही उनका मानव जीवन सफल होगा। सदा रहने वाली शांति व सुख मिलेगा। उसे ये तीनों मंत्र दीक्षा में दिए जाएँगे। तीनों की स्मरण विधि तीन प्रकार से है।
’’हाः मीमः‘‘ भी इसी प्रकार सांकेतिक हैं। इनके विषय में पृष्ठ 13 पर पढ़ें। उस कादर अल्लाह कबीर ने कलामे कबीर में कहा है कि:-
बारहवें पंथ हम ही चल आवें। सब पंथ मिटा एक पंथ चलावैं।।
कलयुग बीते पाँच हजार पाँच सौ पांचा। तब यह वचन होगा साचा।।
धर्मदास तोहे लाख दुहाई। सारशब्द कहीं बाहर ना जाई।।
तेतीस अरब ज्ञान हम भाखा। मूल ज्ञान हम गुप्त ही राखा।।
मूल ज्ञान तब तक छिपाई। जब तक द्वादश पंथ न मिट जाई।।
कलयुग सन् 1997 में पाँच हजार पाँच सौ पाँच पूरा हो जाता है। उसी समय से सारनाम को दिया जाने लगा है। जैसे कुरआन मजीद (शरीफ) की सूरत फुरकानि आयत नं. 59 में कहा है कि सृजनहार सबके पालनहार के विषय में सम्पूर्ण ज्ञान यानि तत्त्वज्ञान किसी तत्त्वदर्शी (बाखबर) से पूछो।
उसी प्रकार गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा है कि {जिस (ब्रह्मणः) परम अक्षर ब्रह्म यानि अल्लाह कबीर (सच्चिदानंद घन ब्रह्म) ने तत्त्वज्ञान अपने मुख से उच्चारित वाणी (कलामे कबीर) कबीर वाणी में तत्त्वज्ञान बताया है। उसकी साधना सामान्य (सहज) विधि से करके पूर्ण मोक्ष प्राप्त होता है जिसका उल्लेख गीता अध्याय 4 के ही श्लोक 32 में है। वह तत्त्वज्ञान है।} उस ज्ञान को (तू तत्त्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर) समझ। उनको भली-भांति दण्डवत् प्रणाम करने से उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्म तत्व को भली-भांति जानने वाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्त्वज्ञान का उपदेश करेंगे।
इस विवेचन से यह निष्कर्ष निकलता है कि गीता, चारों वेदों व चारों पुस्तकों का ज्ञान देने वाला एक ही है। वह गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में स्वयं स्वीकारता है कि मैं काल हूँ। सबका नाश करने वाला हूँ। यह ब्रह्म है। इसे क्षर पुरूष भी कहा जाता है। सूक्ष्मवेद में ज्योति निरंजन काल इसका प्रचलित नाम है। यह सब प्राणियों को धोखे में रखता है, परंतु जो सूक्ष्मवेद का ज्ञान इसने वेदों व गीता तथा कुरआन आदि पवित्र पुस्तकों में कहा है, वह अधूरा है, परंतु गलत नहीं है। स्पष्ट नहीं बताया, अस्पष्ट घुमा-फिराकर बताया है। जब तक सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान व सम्पूर्ण भक्ति विधि नहीं मिलेगी, तब तक काल ज्योति निरंजन के जाल में जीव महादुःखी रहेगा। चाहे इसकी जन्नत (स्वर्ग) में चले जाना।
उदाहरण एक ही पर्याप्त होता है:- बाबा आदम जन्नत में दुःखी था। बांयी ओर मुँह करके मारे गम के आँसू भर लेता था। दांयी ओर मुँह करके खिल-खिलाकर हँसता था। इस काल की जन्नत (स्वर्ग) में परम शांति किसी को नहीं मिलेगी। जिस परमशांति को प्राप्त करने के लिए श्रीमद्भगत गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में अपने से अन्य परमेश्वर की शरण में जाने की राय दी है।
जैसा कि पाठकों ने पढ़ा कि कुरआन का ज्ञान देने वाला अल्लाह (जिसे मुसलमान अपना खुदा मानते हैं) ने अपने से अन्य कादर, सृष्टि रचने वाले, अमर अल्लाह की जानकारी बताई तथा अन्य मुस्लिम शास्त्र ’’फजाईले आमाल‘‘ में भी कबीर अल्लाह की समर्थता को पढ़ा।
इसी प्रकार अन्य परमात्मा से मिले महापुरूषों व संतों ने भी उसे आँखों देखा और गवाही दी थी जो इस प्रकार है:-
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