अब आप जी को अपने उद्देश्य की ओर ले चलता हूँ। आप जी को स्पष्ट करना चाहता हूँ कि जो यथार्थ आध्यात्मिक ज्ञान सूक्ष्म वेद में है, वह न गीता में है तथा न चारों वेदों में है, न पुराणों में है, न कुरआन शरीफ में, न बाईबल में, न छः शास्त्रों तथा न ग्यारह उपनिषदों में।
उदाहरण:- जैसे दसवीं कक्षा तक का पाठ्यक्रम गलत नहीं है, परंतु उसमें BA, MA वाला ज्ञान नहीं है। वह पाठ्यक्रम गलत नहीं है, परन्तु पर्याप्त नहीं है। समझने के लिए इतना ही पर्याप्त है।
उत्तर:- विश्व के मुख्य शास्त्रों, सद्ग्रन्थों में परमात्मा को बहुत अच्छे तरीके से परिभाषित किया है। पहले यह जानते हैं कि विश्व के मुख्य शास्त्र, सद्ग्रन्थ कौन-से हैं?
वेद दो प्रकार के हैं:-
सूक्ष्म वेद:- यह वह ज्ञान है जिसको (अल्लाह ताला) समर्थ परमात्मा स्वयं पृथ्वी पर प्रकट होकर अपने मुख कमल से वाणी उच्चारण करके बोलता है, यह सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान है। प्रमाण:- ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 86 मन्त्र 26-27, ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 82 मन्त्र 1-2, 3, ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 94 मन्त्र 1, ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 95 मन्त्र 2, ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 20 मन्त्र 1, ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 96 मन्त्र 17 से 20, ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 54 मन्त्र 3, यजुर्वेद अध्याय 9 मन्त्र 1 तथा 32, यजुर्वेद अध्याय 29 मन्त्र 25, अथर्ववेद काण्ड 4 अनुवाक 1 मन्त्र 7, सामवेद मन्त्र संख्या 822
अन्य प्रमाण:- श्री मद्भगवत गीता अध्याय 4 मन्त्र 32 में है। कहा है कि सच्चिदानंद घन ब्रह्म यानि सत्य पुरूष अपने मुख कमल से वाणी बोलकर तत्वज्ञान विस्तार से कहता है। कारण:- परमात्मा ने सृष्टि के प्रारम्भ में सम्पूर्ण ज्ञान ब्रह्म (ज्योति निरंजन अर्थात् काल पुरूष) के अन्तकरण में डाला था। (थ्ंग किया था) परमात्मा द्वारा किए निर्धारित समय पर यह ज्ञान स्वयं ही काल पुरूष के श्वांसों द्वारा समुद्र में प्रकट हो गया। काल पुरूष ने इसमें से महत्वपूर्ण जानकारी निकाल दी। शेष अधूरा ज्ञान संसार में प्रवेश कर दिया। उसी को चार भागों में ब्यास ऋषि ने विभाजित किया। उसके चार वेद (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) बनाए।
सामान्य वेद:- यह वही चारों वेदों वाला ज्ञान है जो ब्रह्म (ज्योति निरंजन अर्थात् काल) ने अपने ज्येष्ठ पुत्र ब्रह्मा जी को दिया था। यह अधूरा ज्ञान है। इसमें से मुख्य जानकारी निकाली गई है जो ब्रह्म अर्थात् काल ने जान-बूझकर निकाली थी। कारण यह था कि “काल पुरूष” को भय रहता है कि मानव को पूर्ण परमात्मा का ज्ञान न हो जाए। यदि प्राणियों को पूर्ण परमात्मा का ज्ञान हो गया तो सब इस काल के लोक को त्यागकर पूर्ण परमात्मा के लोक (सत्यलोक=शाश्वत स्थान) में चले जाऐंगे, जहाँ जाने के पश्चात् जन्म-मृत्यु समाप्त हो जाता है। इसलिए ब्रह्म (काल पुरूष) ने पूर्ण परमात्मा के परमपद की जानकारी नहीं बताई, वह नष्ट कर दी थी। उसकी पूर्ति करने के लिए पूर्ण परमात्मा स्वयं सशरीर प्रकट होकर सम्पूर्ण ज्ञान बताता है। अपनी प्राप्ति के वास्तविक मन्त्र भी बताता है जो काल भगवान ने समाप्त करके शेष ज्ञान प्रदान कर रखा होता है। उसको ऋषिजन चार वेद कहते हैं। ऋषि व्यास जी ने इस वेद को लिखा तथा इस के चार भाग बनाए।
इन्हीं चार वेदों का सारांश काल पुरूष ने श्री मद्भगवत गीता के रूप में श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके महाभारत के युद्ध से पूर्व बोला था। वह भी बाद में महर्षि व्यास जी ने कागज पर लिखा। जो आज अपने को उपलब्ध हैं।
सद्ग्रन्थों में बाईबल का नाम भी है। बाईबल:- यह तीन पुस्तकों का संग्रह है।
बाईबल में सर्वप्रथम सृष्टि की उत्पत्ति की जानकारी है, वह तौरेत पुस्तक वाली है जिसमें लिखा है कि परमात्मा ने सर्वप्रथम सृष्टि की रचना की। पृथ्वी, सूर्य, आकाश, पशु-पक्षी, मनुष्य (नर-नारी) आदि की रचना परमात्मा ने छः दिन में की तथा सातवें दिन तख्त पर जा विराजा। सृष्टि रचना अध्याय 1 के श्लोक 26, 27-28 में यह भी स्पष्ट किया है कि परमात्मा ने मानव को अपने स्वरूप जैसा उत्पन्न किया।
इससे सिद्ध हुआ कि परमात्मा भी मनुष्य जैसा (नराकार) साकार है।
उत्पत्ति अध्याय में (बाईबल में) लिखा है कि (श्लोक 27-28 में) मनुष्यों के खाने के लिए बीजदार पौधे (गेहूँ, चने, बाजरा आदि-आदि) तथा फलदार वृक्ष दिए हैं, यह तुम्हारा भोजन है। पशु-पक्षियों के खाने के लिए घास, पत्तेदार झाड़ियाँ दी हैं। इसके पश्चात् परमात्मा तो अपने निजधाम (सत्यलोक) में तख्त पर जा बैठा। बाईबल में आगे जो ज्ञान है वह काल भगवान का तथा इसके देवताओं (फरिस्तों) का दिया हुआ है। यदि बाईबल, ग्रन्थ में आगे चलकर माँस खाने के लिए लिखा है तो वह पूर्ण परमात्मा का आदेश नहीं है। वह किसी अधूरे प्रभु का है। पूर्ण परमात्मा (Supreme God) के आदेश की अवहेलना हो जाने से पाप का भागी बनता है।
कुरआन शरीफ (मजीद):- बाईबल के पश्चात् सद्ग्रन्थों में कुरआन शरीफ का नाम श्रद्धा से लिया जाता है, कुरआन का ज्ञान दाता भी वही है जिसने बाईबल का ज्ञान दिया है तथा चारों वेदों और श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान दिया है, इसलिए उसने उन पहलुओं को बाईबल में तथा कुरआन में नहीं दोहराया जिन पहलुओं का ज्ञान चारों वेदों तथा श्री मद्भगवत गीता में दिया है।
उपनिषद:- ये सँख्या में 11 (ग्यारह) माने जाते हैं, उपनिषद का ज्ञान किसी ऋषि का अपना अनुभव है। यदि वह अनुभव वेदों व गीता से नहीं मिलता तो वह व्यर्थ है। उसको ग्रहण नहीं करना चाहिए। इसलिए उपनिषदों को छोड़कर वेदों व गीता के ज्ञान को ग्रहण करना चाहिए क्योंकि उपनिषदों का अधिकतर ज्ञान वेदों व गीता के ज्ञान के विपरीत है। इसी प्रकार बाईबल तथा कुरआन के ज्ञान को समझें कि जो ज्ञान वेदों तथा गीता से मेल नहीं करता, उसको ग्रहण नहीं करना चाहिए। वेदों व गीता में जो ज्ञान सूक्ष्मवेद से नहीं मिलता, वह ग्रहण नहीं करना चाहिए।
पुराण:- ये सँख्या में 18 (अठारह) माने गए हैं। वैसे यह पुराणों का ज्ञान एक ही बोध माना गया है। यह ज्ञान सर्व प्रथम ब्रह्मा जी ने अपने पुत्रों (दक्ष आदि ऋषियों) को दिया था। राजा दक्ष जी, मनु जी तथा पारासर आदि ऋषियों ने इसका आगे प्रचार करते समय अपना अनुभव भी मिला दिया। इस प्रकार 18 भागों में पुराण का ज्ञान माना गया है। 18 पुराणों के ज्ञान का जो अंश वेदों तथा गीता से मेल नहीं खाता तो वह त्याग देना चाहिए। इसी प्रकार अन्य कोई भी पुस्तक वेदों व गीता के ज्ञान से विपरीत ज्ञान युक्त है, उसे भी त्याग देना उचित है।
गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में गीता ज्ञान दाता अर्जुन को कह रहा है कि तू सर्वभाव से उस परमेश्वर (जो गीता ज्ञान दाता से भिन्न है) की शरण में जा। उस परमेश्वर की कृपा से ही तू परमशान्ति तथा सनातन परमधाम (सत्य लोक) को प्राप्त हो जाएगा। गीता अध्याय 4 श्लोक 32 में कहा है कि जो ज्ञान (सूक्ष्म वेद) स्वयं परमात्मा अपने मुख कमल से बोलकर बताता है, वह सचिदानन्द घन ब्रह्म की वाणी कही जाती है, उसी को तत्वज्ञान भी कहते हैं जिसमें परमात्मा ने पूर्ण मोक्ष मार्ग का ज्ञान दिया है। गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा है कि उस तत्वज्ञान को तू तत्वदर्शी सन्तों के पास जाकर समझ। उनको डण्डवत प्रणाम करके प्रश्न करने से वे तत्वदर्शी सन्त तुझे तत्व ज्ञान का उपदेश करेंगे। गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में तत्वदर्शी सन्त की पहचान बताई है। कहा है कि जो सन्त संसार रूपी वृक्ष के सर्वांग को जानता है, वह वेदवित अर्थात् वेदों के तात्पर्य को जानता है, वह तत्वदर्शी सन्त है। सूक्ष्म वेद अर्थात् सचिदानन्द घन ब्रह्म की वाणी में बताया है:-
कबीर, अक्षर पुरूष एक पेड़ है, क्षर पुरूष वाकी डार।
तीनों देवा शाखा हैं, पात रूप संसार।।
इसी सचिदानन्द घन ब्रह्म की वाणी को तत्वज्ञान भी कहते हैं।
गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वज्ञान की प्राप्ति के पश्चात् परमेश्वर के उस परमपद की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात् साधक कभी लौटकर फिर से संसार में नहीं आता अर्थात् उसका पूर्ण मोक्ष हो जाता है। उसी परमात्मा ने संसार रूपी वृक्ष की रचना की है, केवल उसकी भक्ति करो। गीता ज्ञान दाता अपनी साधना से श्रेष्ठ उस पूर्ण परमात्मा की भक्ति को मानता है, उसी से परमेश्वर का वह परम पद प्राप्त होता है, जिसे प्राप्त करने के पश्चात् जीव का जन्म-मृत्यु का चक्कर सदा के लिए समाप्त हो जाता है।
श्री गुरू ग्रन्थ साहेब जी:- यह सिक्ख धर्म का ग्रन्थ माना जाता है, वास्तव में यह कई महात्माओं की अमृत वाणी का संग्रह है, जिसमें श्री नानक देव जी की वाणी अर्थात् महला-पहला की वाणी तत्वज्ञान अर्थात् सूक्ष्मवेद से मेल खाती है क्योंकि श्री नानक जी को परमात्मा मिले थे जिस समय श्री नानक देव साहेब जी सुल्तानपुर शहर में नवाब के यहाँ मोदी खाने में नौकरी करते थे। सुल्तानपुर शहर से आधा कि.मी. दूर बेई नदी बहती है, श्री नानक जी प्रतिदिन उस दरिया में स्नान करने जाया करते थे। एक दिन परमात्मा जिन्दा बाबा की वेशभूषा में बेई नदी पर प्रकट हुए, वहाँ श्री नानक देव जी से ज्ञान चर्चा हुई। उसके पश्चात् श्री नानक जी ने दरिया में डुबकी लगाई लेकिन बाहर नहीं आए। वहाँ उपस्थित व्यक्तियों ने मान लिया कि नानक जी दरिया में डूब गए हैं। शहर के लोगों ने दरिया में जाल डालकर भी खोजा परन्तु निराशा ही हाथ लगी क्योंकि श्री नानक देव जी तो जिन्दा बाबा के रूप में प्रकट परमात्मा के साथ सच्चखण्ड (सत्यलोक) में चले गए थे। तीन दिन के पश्चात् श्री नानक देव जी वापिस पृथ्वी पर आए। उसी बेई नदी के उसी किनारे पर खड़े हो गए, जहाँ से परमेश्वर के साथ जल में डुबकी लगाकर अन्तध्र्यान हुए थे। श्री नानक जी को जीवित देखकर सुल्तानपुर के निवासियों की खुशी का ठिकाना नहीं था। श्री नानक जी की बहन नानकी भी सुल्तानपुर शहर में विवाही थी। अपनी बहन के पास श्री नानक जी रहा करते थे। अपने भाई की मौत के गम से दुःखी बहन नानकी को बड़ा आश्चर्य हुआ और गम खुशी में बदल गया। श्री नानक देव को परमात्मा मिले, सच्चा ज्ञान मिला, सच्चा नाम (सत्यनाम) मिला, पुस्तक भाई बाले वाली “जन्म साखी गुरू नानक देव जी” में तथा प्राण संगली हिन्दी लिपि वाली में जिसके सम्पादक सन्त सम्पूर्ण सिंह हैं। इन दोनों पुस्तकों में प्रमाण है कि श्री गुरू नानक देव जी ने स्वयं मर्दाना को बताया कि मुझे परमात्मा जिन्दा बाबा के रूप में बेई नदी पर मिले, जब में स्नान करने के लिए गया। मैं तीन दिन तक उन्हीं के साथ रहा था, वह बाबा जिन्दा मेरा सतगुरू भी है तथा वह सर्व सृष्टि का रचनहार भी है। इसलिए वही “बाबा” कहलाने का अधिकारी है, अन्य को “बाबा” नहीं कहा जाना चाहिए, उसका नाम कबीर है।
कायम दायम कुदरती सब पीरन सिर पीर आलम बड़ा कबीर।।
इसलिए श्री नानक जी की वाणी (महला 1) है, वह सूक्ष्म वेद से मेल खाती है, यह सही है। श्री गुरू ग्रन्थ साहेब में कबीर जी की वाणी को छोड़कर अन्य सन्तों की वाणी इतनी सटीक नहीं है। कारण यह है कि श्री नानक देव जी को परमात्मा कबीर जी मिले थे।
प्रमाण:- श्री गुरू ग्रन्थ साहिब में पृष्ठ 24 पर लिखी वाणी:-
एक सुआन दुई सुआनी नाल भलके भौंकही सदा बियाल, कुड़ छुरा मुठा मुरदार धाणक रूप रहा करतार। तेरा एक नाम तारे संसार मैं ऐहो आश ऐहो आधार, धाणक रूप रहा करतार। फाही सुरत मलूकी वेश, एह ठगवाड़ा ठगी देश। खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।
श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी के पृष्ठ 731 पर निम्न वाणी है:-
नीच जाति परदेशी मेरा, क्षण आवै क्षण जावै।
जाकि संगत नानक रहंदा, क्यूकर मुंडा पावै।।
पृष्ठ 721 पर निम्न वाणी लिखी है:-
यक अर्ज गुफतम पेश तोदर, कून करतार। हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदिगार।।
यह उपरोक्त अमृतवाणी श्री गुरू ग्रन्थ साहेब जी की है जिससे सिद्ध हुआ कि श्री नानक जी को परमात्मा मिले थे। वह “कबीर करतार” है जो काशी में धाणक रूप में लीला करने आए थे।
सन्त गरीब दास जी (गांव = छुड़ानी, जिला झज्जर हरियाणा) को भी इसी प्रकार जिन्दा बाबा के रूप में कबीर परमात्मा मिले थे, उसी प्रकार सच्चखण्ड (सत्यलोक) लेकर गए थे, फिर वापिस छोड़ा था। संत गरीबदास जी ने कहा है:-
गरीब, हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद नहीं पाया, काशी माहें कबीर हुआ।।
अन्नत कोटि ब्रह्माण्ड का, एक रति नहीं भार।
सतगुरू पुरूष कबीर है, कुल के सिरजन हार।।
सन्त दादू दास जी महाराज को भी परमात्मा जिन्दा बाबा के रूप में मिले थे। श्री दादू जी 7 वर्ष की आयु के थे। (कुछ पुस्तकों में उस समय श्री दादू जी की आयु ग्यारह वर्ष लिखी है) गाँव से बाहर बच्चों में खेल रहे थे। परमात्मा उन्हें भी बाबा जिन्दा के रूप में मिले थे, सत्यलोक लेकर गए थे। दादू जी भी तीन दिन-रात तक अचेत रहे, फिर सचेत हुए तो परमात्मा कबीर जी की महिमा बताने लगे।
जिन मोकूं निज नाम (वास्तविक नाम) दिया, सोई सतगुरू हमार।
दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सिरजनहार।।
दादू नाम कबीर की, जै कोई लेवे ओट। उनको कबहु लागे नहीं, काल बज्र की चोट।।
सन्त गरीब दास जी ने कहा है:-
दादू कूँ सतगुरू मिले, देई पान की पीख। बुढा बाबा जिसे कहै, यह दादू की नहीं सीख।।
पहली चोट दादू को, मिले पुरूष कबीर। टक्कर मारी जद मिले, फिर साम्भर के तीर।।
संत धर्मदास जी बान्धवगढ़ वाले को मिले:- महात्मा धर्मदास जी का जन्म पवित्र हिन्दू धर्म में गाँव-बांधवगढ़ (मध्यप्रदेश, भारत) में हुआ था। गुरू जी के आदेशानुसार तीर्थों का भ्रमण करते हुए धर्मदास जी मथुरा में पहुँचे तो समर्थ परमात्मा (कादर खुदा) जिन्दा महात्मा के रूप में मिले थे। धर्मदास जी को भी (परमात्मा) अल्लाह कबीर सत्यलोक लेकर गए थे। तीन दिन-रात तक धर्मदास जी भी श्री नानक देव जी की तरह परमात्मा के साथ आकाश मण्डल में (सत्यलोक) में रहे। आकाश में ज्योति निरंजन के लोक (इक्कीस ब्रह्मंडों) की व्यवस्था दिखाई। फिर ऊपर को ले गए। अक्षर पुरूष के सात संख ब्रह्मंड दिखाए तथा अपना तख्त (सिंहासन) व सतलोक दिखाया। धर्मदास जी का शरीर अचेत रहा। तीसरे दिन होश में आए तो बताया कि मैं सत्यलोक में परमात्मा के साथ गया था। वे परमात्मा काशी शहर में लीला करने आए हैं, उनको मिलूँगा। धर्मदास दास बनारस (काशी) में गए। वहाँ जुलाहे के रूप में परमात्मा को कार्य करते देखकर आश्चर्य चकित रह गए, चरणों में गिर गए तथा यथार्थ भक्ति मार्ग प्राप्त करके कल्याण कराया।
हजरत मुहम्मद जी को भी परमात्मा मक्का में जिन्दा महात्मा के रूप में मिले थे। जिस समय नबी मुहम्मद काबा मस्जिद में हज के लिए गए हुए थे तथा उनको अपने लोक में ले गए जो एक ब्रह्माण्ड में राजदूत भवन रूप में बना है, परमात्मा ने हजरत मुहम्मद जी को समझाया तथा अपना ज्ञान सुनाया परन्तु हजरत मुहम्मद जी ने परमात्मा के ज्ञान को नहीं स्वीकारा और न सत्यलोक में रहने की इच्छा व्यक्त की। इसलिए हजरत मुहम्मद को वापिस शरीर में भेज दिया। उस समय हजरत मुहम्मद जी के कई हजार मुसलमान अनुयायी बन चुके थे, उनकी महिमा संसार में पूरी गति से फैल रही थी और कुरआन के ज्ञान को सर्वोत्तम मान रहे थे।
सन्त गरीब दास जी ने बताया है कि कबीर परमेश्वर जी मुहम्मद साहेब जी को ऊपर लोक में ले गए, परन्तु वहाँ नहीं रहा। गरीब दास जी ने कहा है कि कबीर परमेश्वर जी ने बताया है:-
हम मुहम्मद को सतलोक द्वीप ले गयो, इच्छा रूपी वहाँ नहीं रहयो।
उल्ट मुहम्मद महल पठाया, गुझ बिरज एक कलमा ल्याया।
रोजा, बंग, नमाज दयी रे, बिस्मल की नहीं बात कही रे।
मारी गऊ शब्द के तीरं, ऐसे होते मुहम्मद पीरं।
शब्दै फेर जिवाई, जीव राख्या माँस नहीं भख्या, ऐसे पीर मुहम्मद भाई।
मारी गऊ ले शब्द तलवार, जीवत हुई नहीं अल्लाह से करी पुकार।
तब हमों (मुझको) मुहम्मद ने याद किया रे।शब्द स्वरूप हम बेग गया रे।
मुई गऊ हमने तुरन्त जीवाई। तब मुहम्मद कै निश्चय आई।।
तुम कबीर अल्लाह दर्वेशा। मोमिन मुहम्मद का गया अंदेशा।।
कहा मुहम्मद सुन जिन्दा साहेब।तुम अल्लाह कबीर और सब नायब।।
“कुरआन शरीफ” की सुरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 59 में भी है, कुरआन शरीफ के ज्ञान दाता को हजरत मुहम्मद तथा मुसलमान धर्म के सर्व श्रद्धालु अपना खुदा मानते हैं, उसी को पूर्ण परमात्मा भी मानते हैं, इन 52 से 59 आयतों में कुरआन ज्ञान दाता ने कहा है कि हे पैगम्बर! हजरत मुहम्मद! जो कुरआन की आयतों में मैंने तुझे जो ज्ञान दिया है, तुम उस पर अडिग रहना। अल्लाह कबीर है और ये काफिर उस अल्लाह पर विश्वास नहीं करते। तुम इनकी बातो में न आना, इनके साथ संघर्ष करना, झगड़ा नहीं करना। हे पैगम्बर! यह कबीर नामक परमात्मा है जिसने किसी को बेटा, बहु, सास, ससुर व नाती बनाया है, तुम उस जिन्दा पर भरोसा रखना। (जो तुझे काबा में मिला था) वह वास्तव में अविनाशी परमात्मा है, वह अपने बन्दों (भक्तों) के गुनाहों (पापों) को क्षमा कर देता है, वह कबीर अल्लाह है। यह कबीर अल्लाह वही है जिसका वर्णन बाईबल ग्रन्थ में उत्पत्ति ग्रन्थ में आता है कि उस परमात्मा ने छः दिन में आसमान और धरती तथा इसके बीच के सर्व नक्षत्र बनाए हैं अर्थात् सर्व सृष्टि की रचना की और सातवें दिन तख्त पर जा बैठा। उसकी खबर किसी बाहखबर अर्थात् तत्वदर्शी सन्त से पूछो।
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