अमर ग्रंथ (संत गरीबदास जी) के पारख के अंग अध्याय की वाणी नं. 568 से 619:-
काशी जोरा दीन का, काजी षिलस करंत।
गरीबदास उस सरे में, झगरे आंनि परंत।।568।।
सुन काजी राजी नहीं, ऐसे पाप से खुदाय।
गरीबदास किस हुकम सैं, पकरि पछारी गाय।।569।।
गऊ हमारी मात है, पीवत जिसका दूध।
गरीबदास काजी कुटिल, कतल किया औजूद।।570।।
गऊ आपनी अमां है, ता पर छुरी न बाहि।
गरीबदास घृत दूध कूं, सबही आत्म खांहि।।571।।
ऐसा खाना खाईये, माता कै नहीं पीर।
गरीबदास दरगह सरैं, गल में पडै़ जंजीर।।572।।
काजी पटकि कुरांन कूं, ऊठि गये शिर पीट।
गरीबदास जुलहै कही, बानी अकल अदीठ।।573।।
जुलहे दीन बिगारिया, काजी आये फेर।
गरीबदास मुल्ला मुरग, अपनी अपनी बेर।।574।।
मुरगे से मुल्लां भये, मुल्लां फेरि मुरग।
गरीबदास दोजख धसैं, पावै नहीं सुरग।।575।।
काजी कलमा पढत है, बांचै फेरि कुरांन।
गरीबदास इस जुल्म सैं, बूडैं दहूँ जिहांन।।576।।
दोनूं दीन दया करौ, मानौं बचन हमार।
गरीबदास गऊ सूर में, एकै बोलन हार।।577।।
सूर गऊ जीव रब के, गाय खावौ न सूर।
गरीबदास सूर गऊ, दोऊ का एकै नूर।।578।।
मुल्लां से पंडित भये, पंडित से भये मुल्ल।
गरीबदास तज बैर भाव, कीजै सुल्लम सुल्ल।।579।।
हिंदू झटकै मारहीं, मुस्लम करै हलाल।
गरीबदास दोऊ दीन का, होसी हाल बिहाल।।580।।
बकरी कुकडी खा गये, गऊ गदहरा सूर।
गरीबदास उस भिस्त में, तुम सें अलहा दूर।।581।।
घोड़े ऊंट अटक नहीं, तीतर क्या खरगोश।
गरीबदास ऐसे कुकर्मी से, अलहा है सौ कोस।।582।।
भिस्त भिस्त तुम क्या करौ, दोजख जरिहौ अंच।
गरीबदास इस खून से, अलह नाहीं बंच।।583।।
रब की रूह मारते, खाते मोरै मोर।
गरीबदास उस नरक में, नहीं खूनी कूं ठौर।।584।।
सुनि काजी बाजी लगी, जो जीतै सो जाय।
गरीबदास उस नरक कूं, बिन खूनी को खाय।।585।।
सुनि काजी बाजी लगी, पासा सनमुख डारि।
गरीबदास जुग बांध ले, नहीं मरत हैं सारि।।586।।
सुनि काजी गदह गति, पान लदै खर पीठ।
गरीबदास उस वस्तु बिन, खाय गदहरा बीठ।।587।।
मुल्लां कूकै बंग दे, सुनि काफर मुसकंड।
गरीबदास मुरगे सरै, खात गोल गिर्द अंड।।588।।
सुनि मुल्ला उपदेश तूं, कुफर करै दिन रात।
गरीबदास हक बोलता, मारै जीव अनाथ।।589।।
मुरगे शिर कलंगी हुती, चिसमें लाल चिलूल।
गरीबदास उस कलंगी का, कहा गया वह फूल।।590।।
सुनि मुल्ला माली अलह, फूल रूप संसार।
गरीबदास गति एक सब, पान फूल फल डार।।591।।
करौ नसीहत दूर लग, दरगह पड़िसी न्याव।
गरीबदास काजी कहै, करबे नांन पुलाव।।592।।
काजी काढि कतेब कूं, जोरा बड़ा हजूम।
गरीबदास गल काटहीं, फिर खाते देदे गूम।।593।।
मांस कटै घर घर बटै, रूह गई किस ठौर।
गरीबदास उस दरबार में, होय काजी बड़ गौर।।594।।
सुनि काजी कलिया किया, जाड़ स्वादरे जिंद।
गरीबदास दरगाह में, पडै़ गले बिच फंद।।595।।
बासमती चावल पकै, घृत खांड टुक डारि।
गरीबदास कर बंदगी, कूडे़ काम निवारि।।596।।
फुलके धोवा डाल करि, हलवा रोटी खाय।
गरीबदास काजी सुन, मिटि मांस न पकाय।।597।।
रोजे रखै और खूनि करे, फिर तसबी ले हाथ।
गरीबदास दरगह सरै, बौहत करी तैं घात।।598।।
शाह सिकंदर के गये, काजी पटकि कुरांन।
गरीबदास जुलहदी पर, हो हैं खैंचातान।।599।।
तोरा सरा उठा दिया, काजी बोले यौं।
गरीबदास पगड़ी पटकि, अलख अलाह मैं हौं।।600।।
दश अहदी तलबां हुई, पकरि जुलहदी ल्याव।
गरीबदास उस कुटिन कौ, मारत नांही संकाव।।601।।
अहदी ले गये बांधि कर, शाह सिकंदर पास।
गरीबदास काजी मुल्लां, पगरी बहैं आकाश।।602।।
काजी पंच हजार हैं, मुल्लां पीटैं शीश।
गरीबदास योह जुलहदी, काफर बिसवे बीस।।603।।
मिहर दया इस कै नहीं, मट्टी मांस न खाय।
गरीबदास मांस पकाओ, मोमन ल्योह बुलाय।।604।।
मोमन बी पकरे गये, संग कबीरा माय।
गरीबदास उस सरे में, पकरि पछारी गाय।।605।।
शाह सिकंदर बोलता, कहो कबीर तूं कौंन।
गरीबदास गुजरै नहीं, कैसैं बैठ्या मौंन।।606।।
हमहीं अलख अल्लाह हैं, कुतब गोस अरू पीर।
गरीबदास खालिक धनी, हमरा नाम कबीर।।607।।
मैं कबीर सरबंग हूँ, सकल हमारी जाति।
गरीबदास पिंड प्राण में, जुगन जुगन संग साथ।।608।।
गऊ पकरि बिसमिल करी, दरगह खंड अजूद।
गरीबदास उस गऊ का, पीवै जुलहा दूध।।609।।
चुटकी तारी थाप दे, गऊ जिवाई बेगि।
गरीबदास दूझन लगी, दूध भरी है देग।।610।।
योह परचा प्रथम भया, शाह सिकंदर पास।
गरीबदास काजी मुलां, हो गये बौहत उदास।।611।।
काशी उमटी सब खड़ी, मोमन करी सलाम।
गरीबदास मुजरा करै, माता सिहर अलांम।।612।।
तांना बांना ना बुनैं, अधरि चिसम जोडंत।
गरीबदास बौहुरूप धरि, मोर्या नहीं मुरंत।।613।।
शाह सिकंदर देखि करि, बौहत भये मुसकीन।
गरीबदास गत शेरकी, थरकैं दोनूं दीन।।614।।
काजी मुल्लां उठि गये, शाह कदम जदि लीन।
गरीबदास उस जुलहदी की, ना कोई शरबरि कीन।।615।।
खडे़ रहे ज्यूं खंभ गति, शाह सिकंदर लोटि।
गरीबदास जुलहा कहै, ल्याहौ कित है गोठि।।616।।
अगरम मगरम छाड़ि दे, मान हमारी सीख।
गरीबदास कहै शाह सैं, बंक डगर है लीक।।617।।
काजी मुल्लां भगि गये, घातन पोतन लादि।
गरीबदास गति को लखै, जुलहा अगम अगाध।।618।।
चले कबीर अस्थान कूं, पालकीयों में बैठि।
गरीबदास काशी तजी, काजी मुल्लां ऐंठि।।619।।
विश्व के सब प्राणी परमात्मा कबीर जी की आत्मा हैं। जिनको मानव (स्त्री-पुरूष) का जन्म मिला हुआ है, वे भक्ति के अधिकारी हैं। काल ब्रह्म यानि ज्योति निरंजन ने सब मानव को काल जाल में रहने वाले कर्मों पर दृढ़ कर रखा है। गलत व अधूरा अध्यात्म ज्ञान अपने दूतों (काल ज्ञान संदेशवाहकों) द्वारा जनता में प्रचार करवा रखा है। धर्म के नाम पर ऐसे कर्म प्रारंभ करवा रखे हैं जिनको करने से पाप कर्म बढ़ें। जैसे हिन्दू श्रद्धालु भैरव, भूत, माता आदि की पूजा के नाम पर बकरे-मुर्गे, झोटे (भैंसे) आदि-आदि की बलि देते हैं जो पाप के अतिरिक्त कुछ नहीं है। इसी प्रकार मुसलमान अल्लाह के नाम पर बकरे, गाय, मुर्गे आदि-आदि की कुर्बानी देते हैं जो कोरा पाप है। हिन्दू तथा मुसलमान, सिख तथा इसाई व अन्य धर्म व पंथों के व्यक्ति कबीर परमात्मा (सत पुरूष) के बच्चे हैं जो काल द्वारा भ्रमित होकर पाप इकट्ठे कर रहे हैं। इन वाणियों में कबीर जी ने विशेषकर अपने मुसलमान बच्चों को काल का जाल समझाया है तथा यह पाप न करने की राय दी है। परंतु काल ब्रह्म द्वारा झूठे ज्ञान में रंगे होने के कारण मुसलमान अपने खालिक कबीर जी के शत्रु बन गए। काल ब्रह्म प्रेरित करके झगड़ा करवाता है। कबीर परमात्मा मुसलमान धर्म के मुख्य कार्यकर्ता काजियों तथा मुल्लाओं को पाप से बचाने के लिए समझाया करते थे। कहा करते थे कि हे काजी व मुल्ला! आप गाय को मारकर पाप के भागी बन रहे हो। आप बकरा, मुर्गा मारते हो, यह भी महापाप है। गाय के मारने से (अल्लाह) परमात्मा खुश नहीं होता, उल्टा नाराज होता है। आपने किसके आदेश से गाय को मारा है?
सुन काजी राजी नहीं, आपै अलह खुदाय। गरीबदास किस हुकम से, पकरि पछारी गाय।।569।।
गऊ हमारी मात है, पीवत जिसका दूध। गरीबदास काजी कुटिल, कतल किया औजूद।।570।। गऊ आपनी अमां है, ता पर छुरी न बाहि। गरीबदास घृत दूध कूं, सबही आत्म खांहि।।571।।
ऐसा खाना खाईये, माता कै नहीं पीर। गरीबदास दरगह सरैं, गल में पडै़ जंजीर।।572।।
सरलार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने काजियों व मुल्लाओं से कहा कि गऊ माता के समान है जिसका सब दूध पीते हैं। हे काजी! तूने गाय को काट डाला।
गाय आपकी तथा अन्य सबकी (अमां) माता है क्योंकि जिसका दूध पीया, वह माता के समान आदरणीय है। इसको मत मार। इसके घी तथा दूध को सब धर्मों के व्यक्ति खाते-पीते हैं।
ऐसे खाना खाइए जिससे माता को (गाय को) दर्द न हो। ऐसा पाप करने वाले को परमात्मा के (दरगह) दरबार में जंजीरों से बाँधकर यातनाएँ दी जाएँगी।
परमात्मा कबीर जी के हितकारी वचन सुनकर काजी तथा मुल्ला कहते हैं कि हाय! हाय! कैसा अपराधी है? माँस खाने वालों को पापी बताता है। सिर पीटकर यानि नाराज होकर चले गए। फिर वाद-विवाद करने के लिए आए तो परमात्मा कबीर जी ने कहा कि हे काजी तथा मुल्ला! सुनो, आप मुर्गे को मारते हो तो पाप है। आगे किसी जन्म में मुर्गा तो काजी बनेगा, काजी मुर्गा बनेगा, तब वह मुर्गे वाली आत्मा मारेगी। स्वर्ग नहीं मिलेगा, नरक में जाओगे।
काजी कलमा पढ़त है यानि पशु-पक्षी को मारता है। फिर पवित्र पुस्तक कुरआन को पढ़ता है। संत गरीबदास जी बता रहे हैं कि कबीर परमात्मा ने कहा कि इस (जुल्म) अपराध से दोनों जिहांन बूडे़ंगे यानि पृथ्वी लोक पर भी कर्म का कष्ट आएगा। ऊपर नरक में डाले जाओगे।(576)
कबीर परमात्मा ने कहा कि दोनों (हिन्दू तथा मुसलमान) धर्म, दया भाव रखो। मेरा वचन मानो कि सूअर तथा गाय में एक ही बोलनहार है यानि एक ही जीव है। न गाय खाओ, न सूअर खाओ।
आज कोई पंडित के घर जन्मा है तो अगले जन्म में मुल्ला के घर जन्म ले सकता है। इसलिए आपस में प्रेम से रहो। हिन्दू झटके से जीव हिंसा करते हैं। मुसलमान धीरे-धीरे जीव मारते हैं। उसे हलाल किया कहते हैं। यह पाप है। दोनों का बुरा हाल होगा।
बकरी, मुर्गी (कुकड़ी), गाय, गधा, सूअर को खाते हैं। भक्ति की (रीस) नकल भी करते हैं। ऐसे पाप करने वालों से परमात्मा (अल्लाह) दूर है यानि कभी परमात्मा नहीं मिलेगा। नरक के भागी हो जाओगे। पाप ना करो।
घोडे़, ऊँट, तीतर, खरगोश तक खा जाते हैं और भक्ति बंदगी भी करते हैं। ऐसे (कुकर्मी) पापी से (अल्लाह) परमात्मा सौ कोस (एक कोस तीन किलोमीटर का होता है) दूर है यानि अल्लाह कभी नहीं मिलेगा।
(भिस्त-भिस्त) स्वर्ग-स्वर्ग क्या कह रहे हो? (दोजख) नरक की आग में जलोगे।
माँस खाते हो, जीव हिंसा करते हो, फिर भक्ति भी करते हो। यह गलत कर रहे हो। परमात्मा के दरबार में गले में फंद पड़ेगा यानि दण्डित किए जाओगे।(586-595)
बासमती चावल पकाओ। उसमें घी तथा खांड (मीठा) डालकर खाओ और भक्ति करो। (कूड़े काम) बुरे कर्म (पाप), जुल्म त्याग दो। (फुलके) पतली-पतली छोटी-छोटी रोटियों को फुल्के कहते हैं। ऐसे फुल्के बनाओ। धोई हुई दाल पकाओ। हलवा, रोटी आदि-आदि अच्छा निर्दोष भोजन खाओ। हे काजी! सुनो, माँस ना खाओ। परमात्मा की साधना करने के उद्देश्य से (रोजे) व्रत रखते हो, (तसबी) माला से जाप भी करते हो। फिर खून करते हो यानि गाय, मुर्गी-मुर्गा, बकरा-बकरी मारते हो। यह परमात्मा के साथ धोखा कर रहे हो। परमात्मा कबीर जी ने सद् उपदेश दिया। परंतु काजी तथा मुल्लाओं ने उसका दुःख माना।(596-598)
उस दिन दिल्ली का सम्राट सिकंदर लोधी (बहलोल लोधी का पुत्र) काशी नगर में आया हुआ था। दस हजार मुसलमान मिलकर सिकंदर लोधी के पास विश्रामगृह में गए। काजियों ने कहा कि हे जहांपनाह (जगत के आश्रय)! हमारे धर्म की तो बेइज्जती कर दी। हम तो कहीं के नहीं छोड़े। एक कबीर नाम का जुलाहा काफिर हमारे धर्म के धार्मिक कर्मों को नीच कर्म बताता है। अपने को (अलख अल्लाह) सातवें आसमान वाला अदृश्य परमात्मा कहता है।
परमात्मा कबीर जी के साथ खैंचातान (परेशानी) शुरू हुई।
सिकंदर राजा के आदेश से दस सिपाही परमात्मा कबीर जी को बाँधकर हथकड़ी लगाकर लाए। काजी-मुल्ला की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। गर्व से पगड़ी ऊँची कर ली। बोले कि हे राजन! यह जुलाहा पूर्ण रूप से काफिर (अवज्ञाकारी) है। यह माँस भी नहीं खाता। इसके हृदय में दया नाम की कोई वस्तु नहीं है। इसकी माता को तथा इसके पिता को भी पकड़कर लाया जाए।(604)
मोमिन (मुसलमान) नीरू को भी पकड़ लिया। माता नीमा को भी पकड़ लिया। उन दोनों को भी वहीं राजा के पास ले आए। एक गाय को काट दिया।(605)
राजा सिकंदर बोला कि हे काफिर! तू अपने को (अल्लाह) परमात्मा कहता है। यदि खुदा है तो इस दो टुकड़े हुई गाय को जीवित कर दे। हमारे नबी मुहम्मद ने मृत गाय को जीवित किया था। जीवित कर, नहीं तो तेरे टुकड़े कर दिए जाएँगे। अब चुपचाप क्यों बैठा है? दिखा अपनी शक्ति।(606)
हमहीं अलख अल्लाह हैं, कुतब गोस अरू पीर।
गरीबदास खालिक धनी, हमरा नाम कबीर।।607।।
मैं कबीर सरबंग हूँ, सकल हमारी जाति।
गरीबदास पिंड प्राण में, जुगन जुगन संग साथ।।608।।
गऊ पकरि बिसमिल करी, दरगह खंड अजूद।
गरीबदास उस गऊ का, पीवै जुलहा दूध।।609।।
चुटकी तारी थाप दे, गऊ जिवाई बेगि।
गरीबदास दूझन लगे, दूध भरी है देग।।610।।
सरलार्थ:- कबीर परमात्मा बोले कि मैं अदृश परमात्मा हूँ। मैं ही संत तथा सतगुरू हूँ। मेरा नाम कबीर (अल्लाह अकबर) है। मैं (खालिक) संसार का मालिक (धनी) हँू। मैं कबीर सर्वव्यापक हूँ।
जो गाय मार रखी थी, उसके गर्भ का बच्चा व गाय के दो-दो टुकड़े हुए पड़े थे। परमात्मा कबीर जी ने हाथ से थपकी मारकर दोनों माँ-बच्चे को जीवित कर दिया। दूध की बाल्टी भर दी। कबीर जी ने वह दूध पीया।
सिकंदर राजा को यह प्रथम (परिचय) चमत्कार दिखाया था यानि अपनी शक्ति का परिचय दिया था। काजी तथा मुल्ला उदास हो गए। उनकी नानी-सी मर गई। हजारों दर्शक शहर निवासी यह खड़े देख रहे थे। माता तथा पिता को धन्य-धन्य कहने लगे कि धन्य है तुम्हारा पुत्र कबीर।
कबीर परमात्मा जुलाहे का कार्य करता था। परंतु उस दिन जनता को पता चला कि यह बहुत सिद्धि वाला है। परमात्मा कबीर जी विशेष मुद्रा बनाए खड़े थे। उनका चेहरा सिंह (शेर) की तरह दिखाई दे रहा था। यह देखकर भारत का सम्राट सिकंदर बहुत आधीन हो गया। कबीर परमात्मा के चरणों में गिर गया। कबीर परमात्मा बोले कि लाओ कहाँ है गाय का माँस? परमात्मा कबीर खम्बे की तरह अडिग खड़े रहे। सिकंदर बादशाह चरणों में लेट गया।
कबीर परमात्मा जी ने कहा कि हे मुसलमानों! अगर-मगर त्यागकर सीधे मार्ग चलो। अपना कल्याण करवाओ। पाप न करो। जब राजा सिकंदर ने परमात्मा कबीर जी के चरणों में लेटकर प्रणाम किया तो काजी-मुल्ला भाग गए। अहंकार में सड़ रहे थे। परमात्मा सामने था। उससे द्वेष कर रहे थे। राजा सिकंदर ने परमात्मा कबीर जी तथा उसके मुँहबोले माता-पिता (नीरू-नीमा) को पालकियों में बैठाकर सम्मान के साथ उनके घर भेजा। काजी-मुल्ला (एँठ) अकड़कर यानि नाराज होकर चले गए। फिर मौके की तलाश करने लगे कि किसी तरह सिकंदर राजा के समक्ष कबीर को नीचा दिखाया जाए।
जालिम जुलहै जारति लाई, ऐसा नाद बजाया है।।टेक।। काजी पंडित पकरि पछारे, तिन कूं ज्वाब न आया है। षट्दर्शन सब खारज कीन्हें, दोन्यौं दीन चिताया है।।1।। सुर नर मुनिजन भेद न पावैं, दहूं का पीर कहाया है। शेष महेश गणेश रु थाके, जिन कूं पार न पाया है।।2।। नौ औतार हेरि सब हारे, जुलहा नहीं हराया है। चरचा आंनि परी ब्रह्मा सैं, चार्यों बेद हराया है।।3।। मघर देश कूं किया पयांना, दोन्यौं दीन डुराया है। घोर कफन हम काठी दीजौ, चदरि फूल बिछाया है।।4।। गैबी मजलि मारफति औंड़ी, चादरि बीचि न पाया है। काशी बासी है अबिनाशी, नाद बिंद नहीं आया है।।5।। नां गाड्या ना जार्या जुलहा, शब्द अतीत समाया है।च्यारि दाग सें रहित सतगुरु, सौ हमरै मन भाया है।।6।। मुक्ति लोक के मिले प्रगनें, अटलि पटा लिखवाया है। फिरि तागीर करै ना कोई, धुर का चाकर लाया है।।7।। तखत हिजूरी चाकर लागे, सति का दाग दगाया है। सतलोक में सेज हमारी, अबिगत नगर बसाया है।।8।। चंपा नूर तूर बहु भांती, आंनि पदम झलकाया है। धन्य बंदी छोड़ कबीर गोसांई, दास गरीब बधाया है।।9।। 1।।
सरलार्थ:- जालिम का अर्थ है जुल्म (अपराध) करने वाला जुल्मी। उसको ‘‘जालिम’’ भी कहते हैं। हरियाणा प्रांत की भाषा में यह एक प्यार का प्रतीक शब्द भी है जो अपने खास व्यक्ति के लिए उसकी प्रशंसा के लिए प्यार दर्शाने के लिए बोला जाता है। इसलिए संत गरीबदास जी ने अपने महबूब सतगुरू कबीर के लिए ‘‘जालिम’’ शब्द प्रयोग करके उनकी महिमा का ज्ञान करवाया है। कहा है कि जालिम जुलाहे कबीर जी ने (जारत) प्रेम भरी (जलन) तड़फ लगाई है। मैं उनके ऊपर कुर्बान जाऊँ। उसने अध्यात्म युद्ध का (नाद) बिगुल बजाया है। मुसलमान धर्म के विद्वान काजी, हिन्दू धर्म के विद्वान पंडित को अध्यात्म ज्ञान चर्चा में पिछोड़ दिया (पराजित कर दिया), उनको जवाब नहीं आया।
कबीर जी का पंडित से प्रश्न:- कौन ब्रह्मा का पिता है? कौन विष्णु की माँ? शंकर का दादा कौन है? हम कूं देय बताय।
अर्थात् कबीर परमेश्वर जी ने पंडित से प्रश्न किया कि ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर के माता-पिता कौन हैं? शंकर का दादा जी कौन है? कृपया बताईए?
उत्तर पंडित का:- ब्रह्मा, विष्णु, महेश के कोई माता-पिता नहीं हैं। ये कभी न जन्म लेते हैं, न मरते हैं, स्वयंभू हैं। यह पुराणों में प्रमाण है। कबीर जी ने कहा कि एक स्थान पर एक ब्राह्मण श्री देवी पुराण के तीसरे स्कंद को पढ़ रहा था। बोल रहा था कि श्री विष्णु जी ने देवी दुर्गा (अष्टांगी) को देखकर ब्रह्मा तथा शिव के सामने कहा कि हे माता! तुम शुद्ध स्वरूपा हो। यह सारा संसार तुम से ही उद्भाषित हो रहा है। हमारा तो आविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) हुआ करता है। हम अविनाशी नहीं हैं। शंकर ने कहा कि हे माता! जब विष्णु तथा ब्रह्मा आपसे उत्पन्न हुए हैं तो क्या मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर तुम्हारी संतान नहीं हुआ? अर्थात् मुझे भी जन्म देने वाली तुम ही हो।
श्री शिव पुराण में विद्यवेश्वर संहिता में सदाशिव यानि काल ब्रह्म ने युद्ध कर रहे ब्रह्मा तथा विष्णु को रोककर कहा कि हे पुत्रो! तुम ‘‘ईश’’ प्रभु नहीं हो। जिसके लिए तुम लड़ रहे हो, यह सब मेरा है। तुम दोनों (ब्रह्मा तथा विष्णु) को तुम्हारे तप के प्रतिफल में दो कृत (विभाग) दिए गए हैं। सृष्टि की उत्पत्ति ब्रह्मा को, स्थिति बनाए रखना-पालना विष्णु को। इसी प्रकार शिव को ‘‘संहार कृत’’ दिया है। मेरा पाँच अवयवों (अ,उ,म, बिन्द व नाद) से बना एक ॐ (ओं) अक्षर है। सिद्ध हुआ कि ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव की माता प्रकृति देवी (दुर्गा) है। सदा शिव यानि काल ब्रह्म पिता है। कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि गीता का ज्ञान इसी काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) ने श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके कहा था जो गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में स्पष्ट है जिसमें कहा है कि मुझ ब्रह्म का एक ओं (ॐ) अक्षर है उच्चारण करके स्मरण करने का। शिव पुराण में भी यही कहा है। उसने तीनों (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) को अपने पुत्र कहा है। श्री कृष्ण स्वयं विष्णु थे, यह श्रीमद् भगवत (सुधा सागर) में प्रमाण है। सब हिन्दू भी यह मानते हैं।
गीता ज्ञान कहने वाले ने गीता 4 श्लोक 5, गीता अध्याय 2 श्लोक 12, गीता अध्याय 10 श्लोक 2 में कहा है कि हे अर्जुन! तेरे तथा मेरे अनेकों जन्म हो चुके हैं। तुम नहीं जानते, मैं जानता हूँ। मैं, तू तथा सब योद्धा पहले भी जन्मे थे, आगे भी जन्मेंगे। मेरी उत्पत्ति को देवता तथा महर्षिजन नहीं जानते क्योंकि वे सब मेरे से उत्पन्न हैं।
कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि पिता की उत्पत्ति संतान नहीं जानती, दादा जी बताता है। मैं (कबीर परमेश्वर जी) सबका उत्पत्तिकर्ता हूँ। ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) को मैंने वचन से उत्पन्न किया है। यह मेरा बागी पुत्र है। मैं इसका पिता हूँ। ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव तीनों भाई हैं। मैं इनका दादा हूँ।
यह सब प्रत्यक्ष प्रमाण जान व शास्त्रों में तुरंत देखकर पंडित (विद्वान) को कोई उत्तर नहीं आया, जवाब नहीं दिया। उठकर चला गया। दर्शक कबीर जी की जय बोलने लगे। काजी (मुसलमान विद्वान) के साथ अध्यात्म ज्ञान चर्चा:- परमेश्वर कबीर जी ने प्रश्न किया कि आप किसको अल्लाह मानते हैं? काजी ने कहा कि अल्लाह तो एक है जो कादिर है। वह अल्लाह अकबर (बड़ा) है। जिस अल्लाह ने कुरआन शरीफ का ज्ञान हजरत मुहम्मद को दिया, हम उसको समर्थ अल्लाह मानते हैं। जिसने सर्व सृष्टि छः दिन में रची तथा तख्त के ऊपर सातवें आसमान पर जा बैठा, वह कादिर (समर्थ) परमात्मा है। हम (डमी गौड) असमर्थ पत्थर के अल्लाह की भक्ति नहीं करते।
कबीर परमेश्वर जी ने तर्क दिया:- कुरआन शरीफ की सूरत फुर्कानी 25 आयत 52- 59 तक में पढ़ें। उसमें लिखा है कि कुरआन का ज्ञान देने वाले प्रभु (जिसे आप मुसलमान अपना पूज्य प्रभु बताते हैं) ने कहा कि हे हजरत मुहम्मद! तू काफिरों का कहा न मानना। मेरी (दलीलांे) बातों पर विश्वास रखना। काफिर कबीर को अल्लाह नहीं मानते। तू उनकी बातों में न आना। उनके साथ संघर्ष करना। कबीर वही है जिसने छः दिन में सृष्टि रची। सातवें दिन तख्त पर जा विराजा। उसकी खबर किसी (बाखबर) तत्त्वदर्शी संत से पूछो। कुरआन का ज्ञान देने वाला नहीं जानता। इससे स्वसिद्ध है कि कुरआन का ज्ञान देने वाले से कोई अन्य परमेश्वर है जिसने छः दिन में सृष्टि रची और सातवें दिन तख्त पर जा बैठा। हे काजी जी! आप भी असमर्थ परमात्मा की पूजा कर रहे हो। काजी दायें-बायें झांकने लगा। कुरआन खोला और पढ़ा, परंतु कुछ नहीं बोला। निरूत्तर हो गया।
कबीर जी ने प्रश्न किया कि क्या आपका धर्म पुनर्जन्म को मानता है?
काजी ने कहा कि नहीं मानता। ऐसा कहीं प्रमाण नहीं है।
परमात्मा कबीर जी ने प्रश्न किया कि मृत्यु के उपरांत मुसलमान की आत्मा कहाँ रहती है? काजी ने अपनी दंत कथा (लोक वेद) को विस्तारपूर्वक बताया। हम यह मानते हैं कि जो भी मानव (स्त्री-पुरूष) जन्मता है, वह परमात्मा की भक्ति करे। परमात्मा के आदेशों का जो पवित्र कुरआन पुस्तक में बताए हैं, पालन करे। बुराईयों से बचें। मृत्यु के पश्चात् उसका शव जमीन में कब्र में दबा दिया जाएगा। वह जीव भी उस शरीर के साथ कब्र में ही रहेगा। सब मानव जो मुसलमान हैं, सब मृत्यु के पश्चात् जमीन में नीचे कब्रों में दबाए जाएँगे। मरते रहेंगे, जमीन में दबाते रहेंगे। हजरत आदम जो सब मनुष्यों का पिता है, उससे लेकर हजरत मुहम्मद तक सब नबी दाऊद, मूसा, अब्राहिम, ईसा आदि-आदि भी कब्रों में हैं। जब अल्लाह (कयामत) प्रलय करेगा, (जो अरबों-खरबों वर्षों के बाद होगी) तब तक सब रूहें (आत्माएँ) कब्रों में रहेंगी। प्रलय के पश्चात् सब मुर्दे जिंदे किए जाएँगे। उनके कर्मों अनुसार निर्णय किया जाएगा। जिन्होंने अच्छे कर्म किए हैं। कुरआन शरीफ के अनुसार यानि अल्लाह के हुक्म (आदेश) में रहकर धर्म कर्म किए हैं, उनको जन्नत (स्वर्ग) में रखा जाएगा। जिन्होंने (कादिर) समर्थ (अल्लाह) परमात्मा का विधान तोड़ा होगा, वह (दोजख) नरक की आग में जलाया जाएगा, नरक में डाला जाएगा। उस समय (कयामत आने तक) नरक तथा स्वर्ग में कोई नहीं रहेगा। स्वर्ग व नरक खाली पड़े रहेंगे। परमात्मा कबीर जी ने तर्क दिया कि हे काजी! मैंने एक मुल्ला से हजरत मुहम्मद नबी जी की जीवनी सुनी थी। उसमें लिखा था कि हजरत मुहम्मद ने अपने साथियों को बताया कि एक रात्रि में जबरिल फरिश्ता एक गधे जैसा जानवर जिसका नाम बुराक बताया, उसको लेकर आया। मुझे उस पर बैठाकर ऊपर ले गया। एक स्थान पर एक व्यक्ति बैठा था जो दायीं (त्पहीज) ओर (जन्नत) स्वर्ग की ओर मुख करके हँस रहा था तथा बायीं (स्मजि) ओर (दोजख) नरक की ओर मुख करके रो रहा था। मैंने जबरिल देवता से पूछा कि यह व्यक्ति कौन है? यह हँस तथा रो क्यों रहा है?
जबरिल ने बताया कि यह सब मनुष्यों का बाप हजरत आदम है। दायीं ओर स्वर्ग में इसकी अच्छी संतान रहती हैं जिसने अल्लाह के आदेश का पालन करके जीवन जीया। ये सब जन्नत में सुखी हैं। इनको देखकर हँसता है। बायीं ओर इसकी निकम्मी संतान हैं जिसने अल्लाह (प्रभु) का आदेश पालन नहीं किया, पाप किए। वे नरक में दुःखी हैं। उनको देखकर रोता है। बाबा आदम ने मेरे से कहा कि आओ हे नेक बेटा! हे नेक नबी। इसके पश्चात् जन्नत के कई स्थान देखे जिनमें लोग बहुत सुखी जीवन जी रहे थे। फिर हम आगे गए तो पहले वाले नबियों की (जमात) मंडली मिली। उन्होंने मेरा सम्मान किया। वहाँ पर दाऊद, अब्राहिम, मूसा, ईशा आदि पहले वाले सब नबी थे। मैंने उनको नमाज पढ़ाई। इसके पश्चात् अल्लाह के निकट गए। वहाँ मैं अकेला गया। परमात्मा पर्दे के पीछे से बोला। पहले पचास नमाज करने को कहा। नीचे आया तो मूसा नबी ने कहा कि पचास नमाज नहीं की जा सकती, कुछ कम करवाओ। वापिस परमात्मा के पास गया। नमाज कम करवाने की अर्ज की। ऐसा दो-तीन बार करने पर अंत में पाँच बार की नमाज का आदेश परमात्मा से मिला और रोजा करना, बंग (अजान) लगाना, वे भक्ति कर्म करने का आदेश हुआ। मैं (हजरत मुहम्मद) नीचे पृथ्वी पर आ गया।
कबीर जी ने काजी से प्रश्न किया कि क्या हजरत मुहम्मद ने जो कहा था? आप इसे सत्य मानते हैं? काजी ने कहा कि शत प्रतिशत सत्य है। इसे कौन मुसलमान नहीं मानेगा? विश्लेषण किया:- हे काजी जी! यदि आपका यह विधान सत्य है कि प्रलय (कयामत) तक सब कब्रों में रहेंगे और हजरत आदम से हजरत मुहम्मद तक एक लाख अस्सी हजार नबी (पगैम्बर) हुए हैं, वे सब भी कब्रों में हैं तो हजरत मुहम्मद की जन्नत यात्रा, परमात्मा से पाँच नमाज लाना। उनके द्वारा बताया उपरोक्त प्रकरण तो झूठा है। या तो आपका लोक वेद जो निराधार है कि प्रलय तक सब कब्रों में रहेंगे, झूठा है या हजरत मुहम्मद झूठे हैं। काजी के पास कोई जवाब (उत्तर) नहीं था। उठकर चला गया।
राग निहपाल के शब्द नं. 1 में यही बताया है कि कबीर परमेश्वर जी ने मुसलमानों के विद्वान काजी तथा मुल्लाओं को और हिन्दुओं के गुरू पंडितों को अध्यात्म ज्ञान में पछाड़ दिया (हरा दिया)।
हिन्दुओं के विद्वान पंडितों, षटदर्शनी साधुओं, ब्रह्मा, विष्णु, महेश तक को अध्यात्म ज्ञान में पराजित कर दिया। उनको कोई उत्तर नहीं आया। दोनों धर्मों के साधकों को सतर्क किया है कि आप गलत भक्ति कर रहे हो, इसे छोड़ो। मेरे पास सत्य साधना है, उसे ग्रहण करें। संत गरीबदास जी ने बताया है कि (सुर) देवता तथा ऋषिजन भी कबीर परमेश्वर जी का भेद नहीं जान पाए। वह तो दोनों धर्मों (हिन्दू तथा मुसलमान) का (पीर) गुरू कहलाया है। नौ अवतार भी ज्ञान चर्चा में हारकर चले गए क्यांेकि परमेश्वर कबीर जी प्रत्येक अच्छी आत्मा को मिलते हैं। उनको सत्य ज्ञान अवश्य बताते हैं। वे मानें या न मानें। ब्रह्मा ने चारों वेदों को लेकर परमेश्वर कबीर जुलाहे से चर्चा की। अंत में पराजित होकर उठ गया। परंतु सत्य को ग्रहण नहीं किया। मगहर से सशरीर गए, परमेश्वर कबीर जी का शरीर नहीं मिला था। एक चद्दर नीचे बिछाई थी। उसके ऊपर भक्तों ने फूल बिछाए थे। कबीर परमात्मा जी उस पर लेट गए थे और ऊपर एक चद्दर ओढ़ ली थी। फूल तथा दो चद्दर छोड़कर सतलोक सशरीर गए थे। उसी का वर्णन है। (काशी वासी) कबीर जुलाहा अविनाशी है। उनका शरीर ही नहीं मिला। इसलिए न तो मुसलमान धरती में दबा पाए, न हिन्दू अग्नि में जला पाए। कबीर परमेश्वर का शरीर नष्ट होने वाला ही नहीं है। वे मरते ही नहीं हैं तो चार दाग में कैसे आएगा? चार दाग का अर्थ चार प्रकार से मुर्दे का अंतिम संस्कार करते हैं। 1ण् अग्नि में जलाकर, 2ण् पृथ्वी में कब्र में दबाकर, 3ण् बहती दरिया में बहाकर, 4ण् खुले में एक ऊँचे मचान पर शव को डालना जिसे पक्षी खाते हैं, धर्म लगता है। वह सतगुरू मेरे (संत गरीबदास जी के) मन भाया है यानि अच्छा लगा है, शरण ली है। अमर लोक की दीक्षा मिली है। पूर्ण मुक्ति रूप अटल पट्टा लिखवा लिया है। हम तो परमेश्वर कबीर जी के सतलोक वाले दरबार में नौकर लग गए हैं। सत का दाग दगाया है यानि सच्ची दीक्षा मिली है। हम शिष्य बने हैं। हमारी सेज (बिस्तर) सतलोक है। हमारे लिए अलग नगर बसाने का आदेश हो चुका है। सतलोक में अपना परिवार बनाएँगे। बंदी छोड़ (काल की कैद से बंदियों को छुड़ाने वाले) कबीर जी का धन्यवाद है जिसने गरीबदास को बढ़ाया है यानि पार किया है, प्रसिद्धि दिलाई है तथा मोक्ष का यथार्थ नाम साधना के लिए बताया है।
राग आसावरी से शब्द नं. 12:-
दिल ही अंदरि हुजरा काजी, दिल ही अंदरि हुजरा। करि ले उस तालिब सें मुजरा।।टेक।। मक्का मदीना दिल ही अंदरि, काबे कूं कुरबाना। काहे लेटि निवाज करत हो, खोजो तन असथांना।।1।। सतरि काबे देखि नूर के, खोल्हि किवारी झांकी। तापरि एक गुमज है गैबी, पंथ डगरिया बांकी।।2।। अल्लाह कबीर बड़ा जहाँ विराजै, झिलमिल नूरी देहा। जा समर्थ का भै कर काजी, ला ले वासैं नेहा।।3।। हक्क हक्क करि मुल्लां बोलै, काजी पढैं कुरांनां। जिन्ह कूं औह दीदार कहां है, काटै गला बिरांनां।।4।। अर्श कुर्श में अलह तखत है, खालिक बिन नहीं खाली। वै पैगंबर पाख पुरुष थे, साहिब के अबदाली।।5।। महंमद कूं नहीं गोसत खाया, गऊ न बिसमल कीती। एक बेर कह्या मनी महंमद, तापरि येती बीती।।6।। नबी महंमद निमसकार है, राम रसूल कहाया। एक लाख असी कूं सौगंधि, जिनि नहीं करद चलाया।।7।। वै ही महंमद वै ही महादे, वैही आदम वैही ब्रह्मा। दास गरीब दूसरा को है, देखौ अपने घरमां।।8।।12।।
सरलार्थ:- हे काजी! अपने दिल के अंदर परमात्मा का भाव है जो समर्थ परमेश्वर है। उस (तालिब) परमात्मा से (मुजरा) प्रेम कर ले। मानव शरीर में भक्ति करो। जो लाभ आप मक्का तथा मदीना धार्मिक स्थलों पर जाकर प्राप्त करना चाहते हो, वह वहाँ तो मिलेगा ही नहीं। सत्य भक्ति करने से घर पर ही कार्य करते-करते ही मिल जाएगा। परमात्मा के नाम पर कुर्बान हो जाओ। पशुओं की कुर्बानी त्याग दो। यह पाप है। जो पाँच समय लेटकर नमाज करते हो, इससे मोक्ष नहीं मिलेगा। यह तो केवल स्तुति है। नाम का स्मरण भी करना होगा। तब मोक्ष मिलेगा। केवल पाँच समय की नमाज (स्तुति) से मोक्ष नहीं मिलेगा। मानव शरीर मिला है। पाप कर्म त्यागकर सतलोक स्थान प्राप्त करने की भक्ति करो। ऊपर सतलोक के मार्ग में सत्तर काबे बने हैं। उनमें प्रणाम करता चलिए। त्रिकुटी की झांखी (window) खोल ले यानि सुषमना द्वार खोलो। सतलोक में सबसे ऊपर एक गुमज है जो (गैबी) परमात्मा की गुप्त शक्ति से बना है। उसका पंथ कठिन है। उस गुमज में बड़ा अल्लाह कबीर बैठा है जिसका शरीर नूर का बना है। हे काजी! पाप न कर, उस समर्थ से डर। उससे प्रेम कर। उसकी आत्माओं को त्रस न दे।
मुल्ला तो हक्क, हक्क (ठीक है, सही है) करता है। काजी कुरआन को पढ़ता है। जो अन्य जीव की (गला) गर्दन काटते हैं, उनको परमेश्वर का दर्शन नहीं हो सकता। (अर्श) आकाश के (कुर्श) छोर पर सतलोक में (अलह) परमात्मा का (तख्त) सिंहासन है। (खालिक) परमेश्वर सर्वव्यापक है। उसकी शक्ति कण-कण में समाई है। इसलिए कहा है कि कोई भी स्थान परमात्मा के बिना नहीं है। वह (पैगंबर) नबी मुहम्मद तो पवित्र आत्मा थे। परमेश्वर के (अबदाली) कृपा पात्र थे।
हजरत मुहम्मद ने कभी (गोसत) माँस नहीं खाया। एक बार वचन से गाय मारी थी। वचन से ही जीवित कर दी थी। हजरत मुहम्मद जी की मृत्यु के बाद में उस दिन की याद बनाए रखने के लिए माँस खाना प्रारंभ कर दिया। नबी मुहम्मद को तो मैं (संत गरीबदास जी) नमस्कार करता हूँ जो परमात्मा का रसूल कहलाया। एक लाख अस्सी हजार पैगंबर हो चुके हैं। कसम है परमात्मा की उन्होंने कभी जीव हिंसा नहीं की। वे सब नबी पवित्र आत्माऐं थी। परमेश्वर के कृपा पात्र थे। संत गरीबदास जी ने कहा है कि हजरत मुहम्मद का जीव शिव के लोक जिसे तुम लाहूत मुकाम कहते हो, से आया था। बाबा आदम ब्रह्मा के लोक से आया था। इसलिए कहा है कि वही मुहम्मद है, वही महादेव है, वही आदम है। जो ब्रह्मा के लोक से आया था, वही ब्रह्मा है। यदि मेरी बातों पर विश्वास नहीं है तो अपने शरीर में बने कमलों को खोलकर सच्ची भक्ति कर। फिर देख महादेव के लोक से मुहम्मद आया था। ब्रह्मा लोक से बाबा आदम आया था। यह सत्य है।
राग आसावरी से शब्द नं. 14:-
जो कोई ना मांनैं, ना मानै, जैसे अजाजील ईरांनैं।।टेक।। करैं अचार बिचार असंभी, पूजत जड़ पाषानैं। पाती तोरि चढावैं अंधरे, जीवत जी कूं भांनैं।।1।। पिण्ड प्रधान करैं पितरौं कै, तीरथ जगि और दांनैं। बिना सत भक्ति मोक्ष नहीं रे, भूलि रहे सुर ज्ञानैं।।2।। सुखदे शिब का तत्त सुन्यां है, भक्ति लई धिग तांनैं। सतगुरु जनक बिदेही भंेटे, जाय स्वर्ग समानैं ।।3।। अकथ कथा कुछि कही न जाई, देखत नैंन सिरांनैं। अबल बली बरियांम बिहंगम, लाय ले चोट निशांनैं ।।4।। पंडित बेद कहैं बौह बांनी, काजी पढैं कुरांनैं। सूर गऊ कूं दोय बतावैं, दोन्यौं दीन दिवांनैं।।5।। एक ही मट्टी एक ही चमरा, एक ही बोलत प्रानैं। जिभ्या स्वादि मारत हैं नर, समझत नहीं हिवांनैं।।6।। मुरगी बकरी कुकड़ी खाई, कूकैं बंग मुलांनैं। जैसा दरद आपनैं होवै, ऐसा दरद बिरांनैं।।7।। मन मक्के की हज नहीं कीन्हीं, दिल काबा नहीं जांनैं। कैसी काजी कजा करत हो, खाते हो हिलवानैं।।8।। जा दिन साहिब लेखा मांगैं, द्यौह क्या जबाब दिवांनैं। ऐसा कुफर तरस नहीं आवै, काटैं शीश खुरांनैं।।9।। उस पुर सेती महरम नांहीं, अनहद नाद घुरांनैं। दास गरीब दुनी गई दोजिख, देवें गारि गुरांनैं।।10।।14।।
सरलार्थ:- संत गरीबदास जी ने कहा है कि मैं सत्य कह रहा हूँ कि परमात्मा को (बेअदबी) बकवास स्वीकार नहीं है। नम्रता पसंद करते हैं। कोई माने या ना माने, यह शत प्रतिशत सत्य है। एक अजाजील नाम का भक्त था। उसके गुरू ने प्रणाम यज्ञ करने की दीक्षा दे रखी थी। यज्ञ कोई भी है, यदि अकेली की जाती है यानि पूर्ण गुरू से नाम के जाप की दीक्षा प्राप्त नहीं है तो यज्ञ का फल स्वर्ग प्राप्ति है। अजाजील ने ग्यारह अरब प्रणाम किये। {एक यज्ञ है धर्म की, दूसरी यज्ञ है ध्यान। तीसरी यज्ञ है हवन की, चैथी यज्ञ प्रणाम।। पाँचवीं यज्ञ ज्ञान है।} अजाजील ने केवल एक यज्ञ अत्यधिक मात्रा में की। उसके फलस्वरूप स्वर्ग में स्थान मिला। देव पद का अधिकारी बना। देव पद देने से पहले श्री विष्णु रूप में पूर्ण परमात्मा ने अजाजील की परीक्षा लेनी चाही। उससे कहा कि अजाजील एक मनुष्य उत्पन्न कर। अजाजील ने पूछा कैसे उत्पन्न करूँ? विष्णु रूपधारी पूर्ण परमात्मा ने कहा कि यह कह कि मेरी साधना की शक्ति से एक जवान मनुष्य प्रकट हो। अजाजील ने ऐसा ही कह दिया। एक 18-20 वर्ष का युवक सामने खड़ा था। परमात्मा ने कहा कि यह तेरा वचन पुत्र स्वर्ग में तेरे साथ रहेगा। इसको प्रणाम कर। अजाजील ने कहा यह तो मेरा पुत्र है। मैं इसको प्रणाम नहीं करूँगा। परमात्मा ने कई बार आग्रह किया, परंतु अजाजील टस से मस नहीं हुआ। परमात्मा ने सोचा कि किसी तरह इसकी भक्ति बचाई जाए। एक छोटा दरवाजा वाटिका में बना था। उस लड़के को परमात्मा ने कहा कि इस छोटे द्वार के सामने दूसरी ओर वाटिका की ओर खड़ा हो जा। लड़का उस द्वार में से झुककर निकलकर दूसरी ओर खड़ा हो गया। परमात्मा ने अजाजील से कहा कि हे भक्त! अब आपको स्वर्ग में रहना है। चल तेरे को स्वर्ग के बाग की सैर करवाता हूँ। दोनों चल पड़े महल के आंगन से वाटिका में प्रवेश करने के लिए, उसी छोटे द्वार से निकलने लगे। उसमें से झुककर ही निकला जा सकता था। भगवान विष्णु रूप उस द्वार से झुककर निकल गए। अजाजील की विनाश काले विपरित बुद्धि हो गई। उसने परमात्मा से कहा कि मैं आपकी चाल को समझ गया। सामने लड़का खड़ा है, मैं झुकूंगा तो आप उपहास करोगे कि देखा ना प्रणाम करवा दिया। मैं सब समझता हूँ। परमात्मा ने अजाजील को राहत देनी चाही थी कि यदि इस द्वार से झुककर निकल जाएगा तो मैं इसकी प्रणाम मान लूँगा। परंतु अजाजील नहीं माना। तब परमात्मा ने कहा कि भले व्यक्ति सारा जीवन प्रणाम किया। आधीनी आई नहीं। प्रणाम का क्या लाभ। प्रणाम तो मन का अहंकार समाप्त करने के लिए की जाती है। अहंकार तेरे अंदर भरा पड़ा है। चला जा यहाँ से। मैंने तेरी सब साधना समाप्त कर दी है। पृथ्वी पर गधा बन। अब गर्दन ऊपर कर ही नहीं पाएगा। उसी समय अजाजील का देव शरीर छूट गया यानि मर गया। अजाजील गधी के गर्भ में गया।
गरीब, बे अदबी भावै नहीं साहिब के तांही। अजाजील की बंदगी पल माहीं बहाई।। अर्थात् परमात्मा को बद्तमीजी अर्थात् बकवाद अच्छी नहीं लगती है। इसी कारण से अजाजील की प्रणाम की साधना एक क्षण में नष्ट कर दी।
शब्द की वाणी नं. 1-10 का सरलार्थ:- (असंभी) पाखंडी आचार-विचार यानि कर्मकांड करते हैं। { जैसे पत्थर या पीतल आदि धातु की भगवान की मूर्ति की पूजा करना, उसको प्रतिदिन स्नान करवाना, वस्त्र बदलना, चंदन का तिलक करना। गले में कंठी तुलसी की लकड़ी का एक मणका धागे में डालकर मूर्ति के गले में बांधना। अपने गले में भी बांधना, अपने भी तिलक लगाना। मूर्ति की आरती उतारना, उसके सामने दीप व धूप जलाना। श्राद्ध करना, पिंडदान करना, तीर्थों पर जाकर अस्थि प्रवाह करवाना आदि-आदि सब आचार-विचार यानि कर्मकांड क्रियाएँ हैं जो व्यर्थ हैं।} (जड़) निर्जीव (पाषाण) पत्थर की पूजा करते हैं। तत्त्वज्ञान नेत्रहीन अंधे तुलसी तथा बेल के पत्ते तोड़कर मूर्ति के ऊपर चढ़ाते हैं। (जीवत जीव) तुलसी व बेल को तोड़ते हैं। पत्थर (जड़) निर्जीव की पूजा करते हैं। पित्तरों के पिंड भरना, तीर्थों पर स्नान व पूजा के लिए जाना। वहाँ पर दान करना, यह सब कर्मकांड है। यह वेद विरूद्ध गलत साधना करते हैं जो व्यर्थ है, कोई लाभ नहीं है। हे विद्वानो! सत्य भक्ति शास्त्रविधि अनुसार किए बिना मोक्ष नहीं है। तुमको भूल लगी है। सुखदेव ऋषि का जीव तोते के गंदे अंडे में पड़ा था। शिव जी ने अपनी पत्नी पार्वती को नाम दीक्षा देने से पहले पूर्ण परमात्मा की महिमा सुनाई। फिर नाम दीक्षा पाँचों कमलों को खोलने वाली सुनाई। गंदा अंडा स्वस्थ हो गया। बच्चा बन गया। पंख भी उग गई। पार्वती को निंद्रा आ गई। तोता हाँ-हाँ करने लगा तो शिव को पता चला कि पक्षी ने अनमोल नाम सुन लिया। यह किसी को बताएगा। उसको मारने के लिए चला तो पक्षी उड़ चला। शिव जी भी सिद्धि से उड़कर पीछे-पीछे चला। व्यास ऋषि के आश्रम में तोते ने अपना शरीर छोड़ दिया। उस समय ब्यास की पत्नी ने जम्भाई ली। मुख खुला था। तोते वाला जीव व्यास ऋषि की पत्नी के पेट में खुले मुख द्वारा चला गया। शिव जी वहाँ जाकर ऋषि व्यास की पत्नी से बोले कि आपके गर्भ में एक जीव चला गया है। यह मेरा चोर है। मैं इसे मारूँगा। ऋषि व्यास ने करबद्ध होकर शिव जी से पूछा हे दयालु! कैसा चोर? शिव ने कहा कि इसने मेरा अमर मंत्र सुन लिया है। यह अमर हो गया है। व्यास ऋषि ने कहा कि यदि यह अमर हो गया है तो आप इसे मार नहीं सकते। शिव को भी समझ आया कि बात तो सत्य है। शिव लौटकर पार्वती के पास आए और शेष ज्ञान समझाया। कहा है कि शिव जी से सुखदेव ने (धींगताने) जबरदस्ती भक्ति ली है।
परमेश्वर की महिमा (अकथ) अवर्णननीय कहानी है। पंडितजन वेदों की वाणी बहुत पढ़ते हैं। काजी कुरआन पुस्तक को पढ़ते हैं। फिर भी सूअर तथा गाय के जीव में भेद मानते हैं। दोनों धर्मों के वक्ता विचलित हैं। वही जीव गाय में है, वही सूअर में है। वही देवता तथा मानव में है। किसी को भी न मारो। सूअर तथा गाय दोनों का शरीर हड्डियों, चाम, माँस तथा रक्त से बना है। इसको खाना पाप है। यह गंदा खाना है। माँस किसी का भी नहीं खाना चाहिए। किसी भी जीव को न मारो। जैसा (दर्द) दुःख अपने को होता है, ऐसा दर्द दूसरे को (बिराने) जानें। यदि हमारे बच्चों को, भाई या बहन को, माता-पिता को कोई मारे तो कैसा लगेगा? ऐसा ही अन्य को मारने का दुःख होता है।
मन में मक्का है। दिल में काबा यानि दिल में दया है तो भक्त है, नहीं तो कसाई है। हे जीव हिंसा करने वालो! जिस दिन परमात्मा लेखा (हिसाब) लेगा, तब क्या उत्तर दोगे? अरे इतना (कुफर) जुल्म करते हो, गाय या बकरे का सिर काटते हो। पैरों के खुर काटते हो। (तरस) दया नहीं आती। संत गरीबदास जी ने कहा है कि उस (पुर) सतलोक नगर के साथ लगाव नहीं है जहाँ पर मधुर ध्वनि बज रही है। यह दुनिया नरक में जाएगी। यह सतगुरू कबीर जी का अपमान करती है। जो उनको पाप से बचाना चाहता है। सदा सुखी देखना चाहता है। उसको गाली देती है। कहती है कि कबीर जुलाहा अपराधी है।
देवी-देवताओं की आलोचना करता है आदि-आदि, कुवचन संसार के व्यक्ति कबीर जी को कहते हैं।
राग बिलावल से शब्द नं. 24:-
करि साहिब की बंदगी, गफलत नहीं कीजै। अजाजील कूं देख रे, अब कौन पतीजै ।।टेक।। अजाजील क्यौं बह गया, कैसे ईराना। योजन संख समाधि रे, ता पर अस्थाना।।1।। कर साहिब की बंदगी, धर धनी धियाना। बानी बचन अदूल रे, ऐसैं ईरान्या।।2।। ब्रह्मा आदम बिष्णु कूं, वह महल न पावै। अजाजील की सैल कूं, दूजा को ध्यावै।।3।। गफलत ऊपर मार है, सुन शब्द संदेशा। अजाजील के सफर कूं, पौंहचै नहीं शेषा।।4।। बंदा कीन्हां नूर का, हरि हूकम उपाया। बिना धनी की भक्ति, दोजख पैठाया।।5।। तन मन जा का नूर का, सब नूरी फिरका। कीन्हां हुकम अदूल रे, सांई के घर का।।6।। बे अदबी भावै नहंी, साहिब कै तांहीं। अजाजील की बंदगी पल माहिं बहाई।।7।। हाड चाम का पूतला, जा सें क्या कहिये। बंदा बह गया नूर का, अब चेतन रहिये।।8।। ईरान्यां बौहडै नहीं, साहिब के घर का। नहीं भरोसा कीजिये, इस गंदे नर का।।9।। अजराईल ठाढा रहै, साहिब कै आगै। अनंत लोक ब्रह्मंड की, बानी अनुरागै।।10।। जबराईल जबान पर, हाजिर दरबाना। अलह तख्त की बंदगी, निरगुण निरबाना।।11।। महकाईल अशील सुर, धर सुष्मण ध्याना। गगन मंडल के महल कूं, सो करत पियाना।।12।। असराफील अलील भुम, पर धर है ध्याना। नूर नूर में मिल रह्या, कादिर कुरबाना।।13।। चारि मुयकिल रहत है धर्मराय दरबारी। ये ही सनक सनंदना, ये ही चार यारी।।14।। गरीबदास गति गर्भ की, कछु लखै न माता। दोहूं दन भिड़ भिड़ मरैं, वोह एक कबीर बिधाता।।15।।24।।
सरलार्थ:- आधीन भाव से भक्ति करो। देखो! अजाजील ने भक्ति भी की, परंतु आधीनी नहीं आई तो सब भक्ति परमात्मा ने समाप्त कर दी थी। अजाजील ने जीवन काल में ग्यारह अरब बंदगी की यानि प्रणाम किए। इसकी शक्ति से विष्णु लोक में गए। श्री विष्णु के वेश में कबीर सतपुरूष ने कहा कि एक मनुष्य उत्पन्न कर। अजाजील ने कहा कि नर भवः। एक जवान लड़का उत्पन्न हुआ। भगवान ने कहा कि अजाजील! इसे प्रणाम कर। अजाजील बोला कि यह तो मेरा पुत्र है। मैं पिता होकर इसे प्रणाम कैसे करूँ? बहुत कहने पर भी नहीं माना तो भगवान ने अजाजील की सब भक्ति नष्ट कर दी, नरक में गया। कहा कि जब नूर का बंदा भी गलती कर गया तो अन्य मानव का क्या भरोसा? ध्यान से भक्ति करो, आधीनी रखो। {अजाजील के विषय में लोकवेद है कि वह श्री विष्णु जी का पुजारी था। इसलिए विष्णु लोक में गया। वास्तविकता इससे हटकर है। अजाजील किसी को ईष्ट नहीं मानता था। जैसा गुरू जी ने बताया, उसी तरह केवल बंदगी, दण्डवत् प्रणाम तथा राम-राम करता था। पूर्ण ब्रह्म कबीर जी सबको उनके कर्मों के अनुसार फल देते हैं। इसलिए वह समर्थ ही श्री विष्णु जी रूप बनाकर प्रकट हुए थे। अजाजील श्री विष्णु को भी मानते थे कि वे भी अमर प्रभु हैं जो अजाजील के अध्यात्म अज्ञान का प्रतीक है। इसलिए पूर्ण ब्रह्म कबीर जी श्री विष्णु के रूप में अजाजील को बैकूंठ में मिले। अजाजील राम को निराकार शक्ति मानता था। इसलिए उसके लिए परमेश्वर जी ने श्री विष्णु रूप बनाया तथा परीक्षा ली।} मुसलमानों ने बताया है कि ‘‘मेकाईल (माईकल), जबरील, असराफिल तथा अजराइल, ये चार फरिश्ते हैं जो अल्लाह के पास रहते हैं। हिन्दू इन्हीं को सनक, सनंदन, सनातन तथा संत कुमार कहते हैं। मुसलमान इन्हें चार यारी कहते हैं।‘‘ संत गरीबदास जी ने कहा है कि गर्भ में परमात्मा ने एक जैसे बच्चे रखे हैं। माता को पता नहीं होता कि गर्भ में लड़का है या लड़की, हिन्दू है या मुसलमान? दोनों धर्म झगड़ा करते हैं। वह तो सबका एक विधाता है।
खुदा कबीर चारों युगों में एक जीवन सामान्य व्यक्ति की तरह रहकर लीला करके अपनी जानकारी स्वयं ही बताता है। अपना नबी आप ही बनकर आता है। कादर अल्लाह के रसूल गरीबदास जी ने कादर खुदा कबीर जी का परिचय इस प्रकार बताया है:- {रब कबीर चारों युग में प्रकट होते हैं। पहले कलयुग में प्रकट होने वाली जानकारी संत गरीबदास जी द्वारा बताई पढ़ते हैं।}
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