प्रश्न:- यदि बाखबर हजरत मुहम्मद (सल्ल.) नहीं है तो संत रामपाल जी महाराज जो कि एक गैर-मुस्लिम (दूसरे धर्म से सम्बंधित शख्स) हैं, किस प्रकार बाखबर साबित होते हैं?
कृपया करके स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:- जब आप जी को सृष्टि (कायनात) की रचना की सम्पूर्ण जानकारी होगी, तब इस प्रश्न का उत्तर समझ आएगा। अपने द्वारा पैदा की गई कायनात (सृष्टि) की यथार्थ जानकारी सृष्टि का सृजनकर्ता ही बता सकता है। (पढ़ें सृष्टि रचना)
संक्षेप में उत्तर इस प्रकार है:- हजरत मुहम्मद नबी जी को तो अल्लाह (प्रभु) के दर्शन भी नहीं हुए। पर्दे के पीछे से वार्ता हुई। तीन साधना करने को कहा {रोजा (व्रत), नमाज तथा अजान (बंग) देना}। वह आदेश पूरे मुसलमान समाज को बताया गया जिसका पालन मुसलमान कर रहे हैं। एक बात विशेष विचारणीय है कि जिन नेक आत्माओं को अल्लाह ताला यानि कादर अल्लाह (सतपुरूष) प्रत्यक्ष मिला है, उनको अपने साथ ऊपर अपने निवास स्थान {सतलोक जिसे गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में शाश्वत् स्थान यानि अमर लोक कहा है, उस} में लेकर गया। अपना सिंहासन (तख्त) अपने अमरलोक जिसे सत्यलोक भी कहा जाता है, में दिखाया।(श्री नानक जी ने इसी को सच्चखंड कहा है।) उस सुख सागर की सर्व सुख-सुविधा व खाद्य सामग्री दिखाई। बताया कि तुम सब जीव जो काल ज्योति निरंजन के इक्कीस ब्रह्मंडों में रह रहे हो, यहाँ से गए हो। तुमने गलती की थी कि तुम सब जीव (नीचे के लोकों वाले) मेरे को छोड़कर ज्योति निरंजन काल को अल्लाह ताला के समान पूजने लगे यानि उसे चाहने लगे। जिस कारण से मैंने (अल्लाह कबीर यानि सतपुरूष ने) तुम सबको तथा ज्योति निरंजन काल को अपने सतलोक से निकाल दिया। ज्योति निरंजन यानि काल ने तप करके इक्कीस ब्रह्मण्ड मेरे से प्राप्त किए हैं। इन इक्कीस ब्रह्मंडों सहित तुमको तथा काल को निकाला था। जब तक काल के इक्कीस ब्रह्मंडों में रहोगे, तब तक तुम सुखी नहीं हो सकते। तुम सब जीव आत्माएँ मेरे (अल्लाह कबीर के) अंश हो, मेरे बच्चे हो। तुमको काल यानि शैतान ने भ्रमित कर रखा है। मेरा भेद तुमको नहीं देता। अपने को सबका खुदा बताता है। अपने नबी व अवतार भेजकर अपनी महिमा का प्रचार करवाता है। उनको निमित बनाकर स्वयं चमत्कार करता है। किसी फरिश्ते के माध्यम से किसी नगरी का विनाश करवा देता है। कहीं और उपद्रव करवाकर अपने भेजे दूत (संदेशवाहक) की महिमा करता है ताकि जनता उसकी बातों को माने और काल की बताई इबादत (पूजा) करके कर्म खराब कर ले और उसके (काल के) लोक में रहें।
काल (ज्योति निरंजन) ने सतलोक में एक कन्या के साथ बदसलूकी की थी जो इसको तप करते देखकर तथा नेक आत्मा जानकर इस पर फिदा हुई थी। उस कारण से मैंने (अल्लाह कबीर ने) उस कन्या को भी तथा तुम सबको तथा ज्योति निरंजन को अपने इस सुखसागर सतलोक से निकाल दिया था ताकि तुमको सबक मिले कि एक अल्लाह की इबादत न करके अन्य को अल्लाह का शरीक बनाकर (अल्लाह के समान शक्ति वाला व सुख देने वाला) मानकर इबादत करने वाले को कादर अल्लाह पसंद नहीं करता। काल (ज्योति निरंजन) ने अपने लोक में (इक्कीस ब्रह्मंडों में) प्रत्येक ब्रह्मंड में मेरे सतलोक की नकल करके जन्नत (स्वर्ग) बनाई है। जिस कारण से सब साधक (भक्तजन) भ्रम में पड़े हैं। वे इसकी जन्नत को ही सबसे सुखदाई व स्थाई स्थान मान रहे हैं।
काल के लोक में रहने वालों का जन्म-मृत्यु का चक्र सदा रहेगा। मैं (अल्लाह कबीर) तुम सब {जितनी आत्माएँ काल के जाल में फँसी हैं। हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, यहूदी, सिख आदि-आदि} आत्माओं को इस महासुखदाई सतलोक वाली जन्नत में वापिस लाना चाहता हूँ। इसलिए तुम अच्छी नेक आत्माओं को ऊपर लेकर आया हूँ। तुम सबको काल लोक की जन्नत तथा सतलोक की जन्नत के सुख का भेद (अंतर) दिखाने लाया हूँ। मेरे सतलोक में मानव (स्त्री-पुरूष) रूप में हैं। किसी को कोई कष्ट नहीं है, सब आत्माएँ सुखी हैं। काल लोक के अंदर कोई सुखी नहीं है। वहाँ (काल के लोक में) जन्नत (स्वर्ग) में कम, जहन्नम (नरक) में अधिक आत्माएँ रहती हैं। फिर कुत्ते, गधे आदि पशुओं के शरीरों में भी जन्म लेते हैं। पक्षियों, जन्तुओं, जल के जीवों का भी जन्म प्राप्त करके महाकष्ट उठाते हैं। अल्लाह कबीर जी ने उन नेक आत्माओं से कहा कि तुम अब नीचे जाओ। जो तुमने आँखों देखा है, वह सब सच-सच नीचे बताओ ताकि काल के जाल में फँसे भोले मानव को विश्वास हो कि काल ज्योति निरंजन समर्थ खुदा नहीं है। वे लोग जो तुम्हारी बातों पर विश्वास करके मुझ कबीर रब की इबादत जो मैंने तुम्हें बताई है, करके अपने निज स्थान (अपने घर सतलोक सुख सागर) में आकर सदा सुखी हो जाएँ।
मैंने तुमको पृथ्वी पर मानव जन्म दिया है। तुम नेक आत्माओं को चुना है। तुम मेरे संदेशवाहक (रसूल) बनकर आँखों देखा हाल वर्णन करो। इतना समझाकर उन आत्माओं को अल्लाह ताला कबीर जी ने वापिस धरती के ऊपर शरीर में छोड़ा। वे शरीर में प्रविष्ट हुए तथा सतपुरूष (कादर अल्लाह) के रसूल बने व यथार्थ ज्ञान जो आँखों देखा तथा अल्लाह ताला ने बताया यानि उनकी आत्मा में डाला, वह ज्ञान उन नेक आत्मा महात्माओं ने बोला-बताया तथा लिखवाया जो मेरे (रामपाल दास की) समझ में आया। आप सब धर्मों के मानव को फरमाया। अनेकों बार स्वयं अल्लाह ताला कबीर जी धरती पर रहकर कवियों की तरह आचरण करके अच्छी आत्माओं को मिले तथा उनको अपनी जानकारी बताई। उन नेक आत्माओं ने उस ज्ञान को माना। अपनी पहले वाली साधना त्यागकर उनके बताए अनुसार भक्ति करके अमर लोक (सतलोक) प्राप्त किया। वहाँ जाकर वे सुखी हैं। सदा वहाँ रहेंगे।
जो ज्ञान स्वयं अल्लाह ताला अपने मुख से बोलकर बताता है, लिखवाता है, वह कलामे कबीर (कबीर वाणी) यानि सूक्ष्मवेद कहा जाता है जिसमें सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान है। जिन आत्माओं को परमेश्वर (कादर अल्लाह) मिला, उन्होंने जो आँखों देखा हाल व अल्लाह से सुना ज्ञान बताया व लिखवाया, वह सूक्ष्मवेद से दास (रामपाल दास) ने मिलाया, जाँचा तो शब्दा-शब्द सही मिला।
© Quran. All Rights Reserved.
Design HTML Codex