शंका समाधान - अल्लाह का आकार व नाम

शंका समाधान - अल्लाह का आकार व नाम

मुसलमान धर्म के मौलानाओं की शंका का समाधान

’’बाखबर कौन है? अल्लाह का नाम क्या है?‘‘ (Who is Baakhabar)

गुरूदेव रामपाल दास जी से सेवकों का निवेदन है कि हम जब मुसलमान विद्वानों से ज्ञान चर्चा करते हैं। वे प्रश्न करते हैं। उनका हम सही जवाब नहीं दे पाते। कृपया हमें बताएँ कि हम क्या उत्तर दें। प्रश्न इस प्रकार हैं:-

प्रश्न:- यदि खुदा साकार यानि जिस्मानी रूप है और उनका नाम कबीर है। इसका क्या प्रमाण है?

रामपाल दास:- उनको इस प्रकार उत्तर दो:-

उत्तर:- खुदा साकार है। कुरआन मजीद में खुदा को निराकार नहीं बताया गया है। परन्तु मुस्लिम धर्म गुरूओं को खुदा का इल्म ना होने के कारण इस परवरदिगार को निराकार अर्थात् बेचून बताया है। कुरआन मजीद में खुदा को जिस्मानी अर्थात् दिखाई देने वाला साकार खुदा बताया गया है। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें इसी पुस्तक में अध्याय ’’हजरत आदम से हजरत मुहम्मद तक‘‘ में पृष्ठ 143 पर।

मिशाल के तौर पर देखिए:-

कुरआन मजीद की सूरः लुकमान-31 आयात नं. 27-29:- इन आयतों में खुदा को सुनने वाला अर्थात् देखने वाला बताया है।

कुरआन मजीद की सूरः हज-22 आयत नं. 61:- इसमें खुदा को बड़ी शान और बड़ा (कबीर) बताया गया है। अल्लाह सुनता तथा देखता है।

सूरः मोअमिन-40 आयत नं. 12 में कबीर का अर्थ बड़ा किया है जबकि कबीर ही लिखना था। इन आयतों से यह साबित होता है कि अल्लाह साकार अर्थात् जिस्मानी है। इन इल्म न रखने वाले मुस्लिम धर्मगुरुओं ने खुदा के असली नाम कबीर का अर्थ बड़ा कर दिया है जो कि गलत है। मुस्लिम प्रवक्ता यह तो स्वीकार करते हैं कि अल्लाह एक बार धरती के ऊपर, जल के ऊपर मंडराता था। धरती व आसमान व सब पेड़-पौधे व मानव, पशु-पक्षी आदि की उत्पत्ति करके ऊपर आसमान पर तख्त पर जा बैठा। इससे तो स्वतः परमेश्वर साकार मानव जैसा सिद्ध होता है। (तख्त) सिंहासन पर मानव ही बैठता है। बाईबल ग्रंथ के उत्पत्ति अध्याय में स्पष्ट ही है कि उस सबकी उत्पत्ति करने वाले कादर अल्लाह ने मनुष्य को अपनी शक्ल-सूरत जैसा बनाया यानि अपने स्वरूप जैसा उत्पन्न किया। इससे भी अपने आप अल्लाह (God) नराकार (मानव जैसे आकार का) सिद्ध हुआ। यह भी सिद्ध हुआ कि खुदा साकार अर्थात् जिस्मानी रूप है। उसका नाम कबीर है जिसका कुरआन के अनुवादकों ने बड़ा अर्थ किया है।

मिशाल के तौर पर:-

सूरः मुअ्मिन्-40 आयत 12

जालिकुम् बिअन्नहू इजा दुअि-यल्लाहु बहदहू क-फर्तुम व इंय्युश्-रक् बिही तुअ्मिनू फल्हुक्मु लिल्लाहिल् अलिय्यिल्-कबीर।।12।।

मुसलमानों का किया अनुवाद:- यह इसलिए कि जब तन्हा खुदा को पुकारा जाता था तो तुम इंकार कर देते थे। अगर उसके साथ शरीक मुकरर किया जाता था तो मान लेते थे। तो हुक्म तो खुदा ही का है जो (सबसे) ऊपर (और सबसे) बड़ा है।(12)

सूरः मोमिन्-40 आयत 12 का रामपाल द्वारा किया सही अनुवाद:- (मरने के पश्चात् कयामत के दिन जो नरक में डाले जाएँगे, तब वे अपनी गलती को मानकर क्षमा चाहेंगे तो उनको कहा जाएगा कि) जब तुमको एक खुदा की इबादत के लिए कहा जाता था तो तुम इंकार कर देते थे। खुदा के सिवाय किसी अन्य देव या मूर्ति की पूजा के लिए कहते थे तो मान लेते थे। वह हुक्म (खुदा के सिवा अन्य को न पूजने का हुक्म) तो उस सर्वोपरि खुदा कबीर का ही है।(12)

भावार्थ:- मूर्ति पूजकों को कबीर खुदा का हुक्म बताया जाता था कि एक उसी कबीर कादर खुदा की इबादत करो तो तुम मना कर देते थे। आज जहन्नम में डालने का हुक्म (आदेश) भी उसी सर्वोच्च खुदा कबीर ही का तो है। मुसलमान अनुवादकों ने ‘‘कबीर’’ जो नाम खुदा का है, उसका अर्थ बड़ा कर दिया। जबकि ‘‘सबसे ऊपर खुदा’’ का अर्थ भी बड़ा होता है। फिर कबीर का अर्थ करना उचित नहीं है। सबसे ऊपर का अर्थ बड़ा ही होता है तो ’’सबसे ऊपर बड़ा‘‘ अर्थ करना अनुचित है। यह सबसे ऊपर वाले यानि सबसे बड़े खुदा कबीर का हुक्म ही है। यह अर्थ सही है।

और देखें:-

सूरः सबा-34 आयत नं. 23

व ला तन्फअुश-शफाअतु अिन्दहू इल्ला लिमन् अजि-न लहू हत्ता इजा फुज्जि-अ अन् कुलूबिहिम् कालू माजा का-ल रब्बुकुम् कालुल्हक्-क व हुवल्- अलिय्युल्-कबीर।।23।।

मुसलमान विद्वानों द्वारा किया गया हिन्दी अनुवाद (सूरः सबा-34 आयत नं. 23):- और खुदा के यहाँ (किसी के लिए) सिफारिश फायदा न देगी। मगर उसके लिए जिसके बारे में वह इजाजत बख्शे, यहाँ तक कि जब उनके दिलों से बेचैनी दूर कर दी जाएगी तो कहेंगे कि तुम्हारे परवरदिगार ने क्या फरमाया है? फरिश्ते कहेंगे कि हक (फरमाया) है। और वह ऊँचे मर्तबे वाला (और) बहुत बड़ा है।(23)

इसका सही अनुवाद:- (रामपाल दास द्वारा किया गया)

सूरः सबा-34 आयत नं. 23:- और खुदा के यहाँ कोई सिफारिश लाभ नहीं देगी। जो जैसे कर्म करके आया है, उसे उसका फल स्वतः मिलेगा। मगर उसके लिए जिसके बारे में वह इजाजत बख्शे। यहाँ तक कि जब उनके दिलों की बेचैनी दूर कर दी जाएगी तो वे कहेंगे कि तुम्हारे परवरदिगार ने क्या फरमाया है? फरिश्ते कहेंगे कि हक (फरमाया) है यानि सबको सबके किए कर्म का फल दिया जाए। वह कबीर परवरदिगार बहुत ऊँचे मर्तबे वाला है यानि वह कबीर अल्लाह सबसे ऊपर शक्ति वाला है यानि कबीर खुदा सर्व शक्तिमान है।(23)

अब देखें

सूरः मुल्क-67 आयत नं. 9

आयत नं. 9:- कालू बला कद् जा-अना नजीरून् फ-कज्जब्ना व कुल्ना मा नज्ज-लल्लाहु मिन् शैइन् इन् अन्तुम् इल्ला फी जलालिन् कबीर।।9।।

मुसलमान विद्वान द्वारा किया गया अनुवाद:-

आयत नं. 9:- वे कहेंगे क्यों नहीं, जरूर हिदायत करने वाला आया था। लेकिन हमने उसको झुठला दिया और कहा कि खुदा ने तो कोई चीज नाजिल ही नहीं की। तुम तो बड़ी गलती में (पड़े हुए) हो।(9)

{इस अनुवादकर्ता ने इस आयत के अनुवाद में भी ‘‘कबीर’’ का अर्थ ‘‘बड़ा’’ किया है।}

सूरः मुल्क-67 आयत नं. 9:- (यथार्थ अनुवाद रामपाल दास द्वारा):- आयत नं. 9 से पहले वाली आयतों में बताया है कि जो इस कुरआन का ज्ञान बताने वाले नबी से लोग कहते हैं कि तू झूठ बोल रहा है। और अल्लाह की हिदायतों की पालना न करके गलत साधना करके मरेंगे। फिर वे नरक (दोजख) में डाले जाएँगे तो उनसे दोजख के दरोगा (थानेदार) पूछेंगे कि क्या तुम्हारे पास कोई हिदायत देने वाला रसूल (messenger) नहीं आया था। तुमने गलत काम किए और कष्ट भोगने आ गए।

इस आयत नं. 9 में बताया है कि ‘‘वे कहेंगे कि हिदायत देने वाला यानि नबी तो आया था। हमने उसको यह कहकर झुठला दिया कि कबीर खुदा ने कोई चीज (जैसा तू बता रहा है) नाजिल नहीं की है, तुम गलत कह रहे हो।

विशेष:- कबीर अरबी भाषा का शब्द माना जाता है जिसका अर्थ बड़ा है। वैसे कोई भी शब्द है, उसका अर्थ तो होता ही है। जैसे ‘‘सूरज, प्रकाश’’ एक देश के राजा का नाम था। उसकी महिमा में कहा था कि राजा सूरज प्रकाश ने अपने नागरिकों के भले के लिए अनेकों काम किए। न्यायकारी था, नेक राजा था। यह महिमा दोहों, साखियों या कविता रूप में थी। यदि कोई उसका अनुवाद करे और उसके अनुवाद में ‘‘सूरज प्रकाश’’ का अर्थ ‘‘सूर्य की रोशनी’’ कर दे और ‘‘सूरज प्रकाश’’ न लिखे तो यह कैसे पता चलेगा कि उस देश के राजा का नाम क्या है जिसने जनहित के कार्य किए थे। ऊपर की आयतों में यदि अल्लाह से संबंधित प्रकरण नहीं होता, अन्य प्रकरण कोई नशा निषेध या धर्म-कर्म का वर्णन होता और उसमें कबीर शब्द होता और उसका अर्थ ‘‘बड़ा’’ किया होता तो ठीक था। परंतु इसमें परमात्मा का जिक्र है। इसलिए कबीर को कबीर ही लिख दिया जाए तो अल्लाह का नाम स्पष्ट होता जाता है जो अनिवार्य है और ग्रंथ की सार्थकता स्पष्ट होती है। और पढ़ें:-

सूरः फातिर (फातिह)-1 आयत नं. 1-7:-

बिस्मिल्ललहिर्रहमानरहीम

इसमें खुदा को रहीम कहा है। रहीम का मतलब रहम करने वाला। इस आयत का हिन्दी अनुवाद:- ‘‘शुरू करता हूँ खुदा का नाम लेकर, जो बड़ा मेहरबान व निहायत रहम वाला है।’’

इसमें कबीर नाम मूल पाठ में नहीं है, परंतु उसका नाम कबीर है, यह भी लिखना चाहिए। संत रामपाल जी महाराज बाखबर द्वारा बताए ज्ञान को समझकर आज बहुत बड़ा जन समूह अपने रहमान कादर रब (प्रभु) कबीर को पहचानकर सत्भक्ति कर रहा है अर्थात् वे सच्ची इबादत कर रहे हैं। इस आयत का सही तर्जुमा अर्थात् अनुवाद इस प्रकार है:- शुरु करता हूँ खुदा का नाम लेकर, जो कबीर बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है। वो खुदा कबीर है जो सभी चीजों का जानकार है तथा जिसमें ये गुण हैं।

विशेष:- सूरः फातिह-1 में 7 आयत हैं। मुसलमान समाज कहता है कि यह कुरआन का ज्ञान जिसने भेजा है, वह हमारा रब है। उसका दिया (बताया) इल्म (ज्ञान) जबरील फरिस्ता बिन मिलावट व फेर-बदल किए ज्यों का त्यों लाया और हजरत मुहम्मद को दिया।

कुरआन ज्ञान दाता ने कहा है कि ’’शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करने वाला है।‘‘ (यदि इसके तर्जुमा में ऐसे लिख दिया जाए कि ’’शुरू कबीर अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम वाला है‘‘, तो और सार्थकता बन जाती है।)

  • आयत नं. 1:- तारीफ (प्रशंसा) अल्लाह के लिए जो सारे जहान का रब (सबका मालिक) है।
  • आयत नं. 2:- (वह) बड़ा ही मेहरबान और दया करने वाला है।
  • आयत नं. 3:- अंतिम न्याय के दिन का मालिक है। (सबके कर्मों का लेखा वही करता है, उसी के अधिकार में है।)
  • आयत नं. 4:- हम तेरी ही इबादत (पूजा) करते हैं और तुझसे ही मदद चाहते हैं।
  • आयत नं. 5:- हमको सीधा मार्ग दिखा।
  • आयत नं. 6:- उन लोगों का मार्ग जो तेरे कृपा पात्र हुए।
  • आयत नं. 7:- जो तेरे (गजब) प्रकोप के भागी नहीं हुए हैं, जो भटके हुए नहीं हैं।

विशेष:- इस सूरः में कुरआन ज्ञान देने वाला अपने से अन्य (कादर अल्लाह) सबके मालिक की इबादत करने को कह रहा है। उसकी महिमा बता रहा है कि मैं उसकी प्रशंसा कर रहा हूँ जो सारे जहान का (रब) पालनहार सृजनहार मालिक है। वह (कबीर) बड़ा मेहरबान है और दया करने वाला है। सब कर्मों का हिसाब वही करता है। उसी से प्रार्थना की है कि तेरी इबादत करने वालों को सच्चा भक्ति का मार्ग बता।

विचार करें:- अल्लाह का कोई नाम भी है, वह नाम लिखना भी अनिवार्य है। जैसे प्रधानमंत्री की महिमा बताएँ तो उसका नाम भी बताना होता है। मुसलमान प्रचारक यही गलती किए हुए हैं। जिन साधकों यानि संतों-महापुरूषों को वह अल्लाह आसमान से अपने तख्त (सिंहासन) से चलकर पृथ्वी पर आकर मिला, उनको यथार्थ ज्ञान बताया। अपना वह लोक दिखाया जिसमें उसका (तख्त) सिंहासन है जो सब जन्नतों से उत्तम जन्नत (सतलोक) है।

उन संतों को फिर पृथ्वी पर छोड़ा। उन महान आत्माओं ने आँखों देखा अल्लाह का स्वरूप नाम तथा स्थान बताया है। हमने उन महापुरूषों पर विश्वास करना चाहिए।

हजरत मुहम्मद को जबरील जिस अल्लाह के पास ले गया, उसने तो नबी जी को दर्शन भी नहीं दिए। उस पर्दे के पीछे वाले अल्लाह के विषय में उन महात्माओं ने बताया कि वह ज्योति निरंजन काल है जो सबको अपने जाल में फँसाकर रखे हुए है। यह जीव को भ्रमित करके रखता है। स्पष्ट ज्ञान नहीं बताता। अधूरा ज्ञान बताता है। इसको श्राप लगा है एक लाख मानव को प्रतिदिन खाने का। अधिक जानकारी सृष्टि रचना नामक अध्याय में इसी पुस्तक में पढ़ें, सब स्पष्ट हो जाएगा।

संत रामपाल दास गुरूदेव जी से निवेदन है कि हम किसी मौलवी से ज्ञान करते हैं तो वे प्रश्न करते हैं जिनका उत्तर हम ठीक से नहीं दे पाते। कृपया निम्न प्रश्नों का जवाब बताएँ, हम क्या दें?

 ← अल्लाह पृथ्वी पर आता है या नहीं शंका समाधान - इबादत खुदा कबीर की या बाखबर की →

© Quran. All Rights Reserved.

Design HTML Codex

We use our own or third party cookies to improve your web browsing experience. If you continue to browse we consider that you accept their use.  Accept