हिन्दू धर्म (सनातन धर्म) के सद्ग्रन्थों में, वेदों तथा गीता में भक्ति विधि स्वर्ग (स्वर्ग), महास्वर्ग (बड़ी जन्नत) में जाने की सही है, परंतु पूर्ण मोक्ष प्राप्ति की नहीं है। जिस कारण से जन्म-मृत्यु का चक्र साधक का बना रहता है। वेदों व गीता वाली साधना एक ही है क्योंकि श्रीमद्भगवत गीता में वेदों वाला ही ज्ञान संक्षेप में कहा है। अधिकतर हिन्दू पितर पूजा, भूत पूजा आदि की करते हैं। देवताओं (शिव जी तथा विष्णु जी) की पूजा भी करते हैं। गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में गीता ज्ञान देने वाले प्रभु ने स्पष्ट किया है कि जो पितर पूजा करते हैं, वे पितर योनि प्राप्त करके पितर लोक में चले जाते हैं। भूत (प्रेत) पूजा करने वाले भूत बनकर भूतों में रहते हैं। कुछ शिव लोक में रहते हैं जो शिव जी के उपासक होते हैं। प्रत्येक देवता के लोक में पितर लोक है। उसी में भूत व गण तथा पितर रहते हैं। फिर इसी गीता के श्लोक (9: 25) में बताया है कि जो देवताओं की पूजा करते हैं, वे उसी देवता के लोक में चले जाते हैं। वहाँ भी पितर लोक में रहते हैं। पितर लोक ऐसा है जैसे अधिकारियों (officers) की कोठियों से दूर नौकरों के निवास होते हैं। जो सुख-सुविधा अधिकारियों को होती है, वह नौकरों को नहीं होती। इसी प्रकार जन्नत में जो सुविधा मुख्य देवता की होती है, वह पितरों को नहीं होती। गीता ज्ञान दाता ने आगे इसी गीता के श्लोक (9:25) में बताया है कि जो मेरी पूजा (काल ब्रह्म की पूजा) करते हैं, वे मुझे प्राप्त होते हैं यानि ब्रह्मलोक में चले जाते हैं। गीता के अध्याय 8 श्लोक 16 में स्पष्ट किया है कि जो ब्रह्मलोक (काल की बड़ी जन्नत) में चले जाते हैं। उनको वहाँ से पृथ्वी पर आना पड़ता है। उनका भी जन्म-मृत्यु का चक्र कभी समाप्त नहीं होता।
गीता तथा वेदों में पूजा का वर्णन:- गीता अध्याय 3 श्लोक 10-15 में यज्ञ करने को कहा है। यज्ञ का अर्थ धार्मिक अनुष्ठान है। मुख्य यज्ञ पाँच हैं:- 1) धर्म यज्ञ, 2) ध्यान यज्ञ, 3) हवन यज्ञ, 4) प्रणाम यज्ञ, 5) ज्ञान यज्ञ। यज्ञों के करने का शास्त्रों में इस प्रकार वर्णन है:-
सर्व प्रथम गुरू से दीक्षा ली जाती है। फिर उस गुरू जी की आज्ञा से उनके दिशा-निर्देशानुसार यज्ञ करना लाभदायक है।
यदि केवल उपरोक्त यज्ञ ही की जाएँ तो उस साधक को उसके अनुष्ठानों के अनुसार स्वर्ग (जन्नत) का सुख कुछ समय मिलता है। जन्नत में सुख भोगकर पाप कर्मों का फल नरक (जहन्नम) में भी भोगना पड़ता है। कुछ पाप ऐसे हैं जिनका फल पृथ्वी के ऊपर पशु, पक्षी, जन्तु आदि के जीवनों में भोगना पड़ता है। मानव शरीर भी मिल सकता है। यदि अधिक यज्ञ की होती हैं तो राजा भी बन जाता है। परंतु जन्म-मृत्यु का चक्र कभी समाप्त नहीं हो सकता। स्वर्ग व राज का समय बहुत कम होता है।
यदि इन यज्ञों के साथ यथार्थ नाम का भी जाप किया जाए तो फल अधिक व अच्छा मिलता है। यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 15 में ओम् (ॐ) नाम का जाप करने को कहा है। गीता वेदों का ही सार रूप है। गीता में भी अध्याय 8 श्लोक 13 में भी ओम् (ॐ) नाम का जाप करने को कहा है। वेदों तथा गीता में ओम् नाम का जाप तथा ऊपर बताई यज्ञों वाली साधना करने को कहा गया है।
विशेष:- यज्ञों के साथ-साथ ओम् (ॐ) नाम का जाप करने वाला यदि आजीवन साधना करता हुए शरीर त्याग कर जाता है तो उसे महास्वर्ग (बड़ी जन्नत) यानि ब्रह्मलोक प्राप्त होता है। उसका सुख अधिक समय तक मिलता है। परंतु नरक (जहन्नम) में भी कष्ट उठाना होगा तथा जन्म-मृत्यु का चक्र सदा रहेगा। पशु, पक्षी तथा अन्य जीव जन्तुओं के शरीरों में भी कष्ट उठाना पड़ता है।
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