भक्त फरीद जी का जन्म मुसलमान धर्म में शेख कुल में हुआ। शेख फरीद बचपन में बहुत चंचल थे। गली में खेलने जाता था तो बच्चों की पिटाई कर देता। उलाहने आते, माता दुःखी हो जाती थी। माता ने विचार किया कि फरीद को खजूर बहुत प्रिय है। इसे नमाज करने की कहती हूँ। माता ने योजना अनुसार फरीद से कहा कि बेटा! अल्लाह की नमाज किया कर। फरीद बोला कि अल्लाह (प्रभु) क्या देगा? माता ने कहा कि अल्लाह खजूर देता है। फरीद बोला कि बता कब करनी है नमाज? माता जब घर के कार्य में व्यस्त होती थी तो फरीद बाहर भाग जाता था। माता ने वही समय नमाज के लिए बताया। एक चद्दर बिछा दी तथा कहा कि आँखें बंद करके अल्लाह खजूर दे, अल्लाह खजूर दे। ऐसे करते रहना। माता ने एक वृक्ष के नीचे चद्दर बिछाई और कहा कि जब तक तेरे ऊपर धूप न आए, आँखें बंद रखना और नमाज करते रहना। जब फरीद आँखें बंद कर लेता तो माता ताड़ वृक्ष के पत्ते पर खजूर रखकर चद्दर के एक कोने के नीचे रख देती थी। फरीद ने धूप आने पर आँखें खोली। देखा तो खजूर नहीं मिला। उठकर माता के पास आया। बोला आपने झूठ बोला, मैं कभी नमाज नहीं करूँगा। अल्लाह ने खजूर नहीं दिया। माता जी ने कहा कि बेटा! अल्लाह गुप्त रूप में सब कार्य करता है। चद्दर के नीचे देख, खजूर अवश्य मिलेगा। फरीद ने चद्दर उठाई तो सच में खजूर रखा था। खुशी-खुशी खजूर खाया। माता से कहा कि अब कब करनी है नमाज। माता बोली कि मैं बता दिया करूँगी जब नमाज करनी होगी। प्रतिदिन काम के समय चद्दर बिछा देती। फरीद आँखें बंद करके बैठ जाता। माता खजूर रख दिया करती। एक दिन माता जी खजूर रखना भूल गई। फरीद ने धूप आते ही आँखें खोली। खजूर (टटोली) खोजी। चद्दर के नीचे खजूर प्रतिदिन की तरह रखी थी। फरीद खजूर खाता हुआ घूम रहा था। माता विचार करने लगी कि आज मेरे से बड़ी गलती हो गई। फरीद अब कभी नहीं मानेगा। परेशान करेगा। फरीद खजूर खाता-खाता माता जी के पास आया। माता ने पूछा कि बेटा! खजूर कहाँ से लाया? बालक फरीद बोला! माँ अल्लाह तो नमाज के वक्त प्रतिदिन खजूर देता है। माँ बोली कि सच बता। माँ सच बताता हूँ। देख! इस पत्ते में खजूर अल्लाह रखकर जाता है। माता को भी समझ आई कि यह सामान्य बालक नहीं है। फरीद जी इस्लाम धर्म वाली सब साधना करता था। एक दिन एक सूफी संत मिले। उसने उसे बताया कि तप करके खुदा मिलता है। इस साधना से नहीं मिलना। मैं भी इस्लाम धर्म में जन्मा हूँ। मुझे एक सूफी संत ने यह मार्ग बताया, तब मैंने उनकी बताई इबादत की। मेरा यह नाम है। इस स्थान पर गाँव के बाहर आश्रम है। कुछ दिन के बाद फरीद जी उस सूफी संत के आश्रम में स्वाभाविक गए। वहाँ जाने से पता चला कि इस संत में बहुत सिद्धियाँ हैं। आश्रम आने वाले बाहर के लोगों ने बताया जो मुसलमान थे। उसके पश्चात् फरीद घर त्यागकर उस फक्कड़-फकीर का शिष्य बनकर आश्रम में रहने लगा। वह फकीर (साधु) सिद्धि प्राप्त था। हुक्का पीता था। आश्रम में कुल सात शिष्य थे जो घर त्यागकर आए थे। प्रतिदिन एक सेवक सब सेवा करता था। गुरूजी का भोजन बनाना। भोजन के तुरंत बाद हुक्का भरकर गुरूजी को देना। कपड़े धोना। शेख फरीद दिलोजान से गुरूजी की तथा आश्रम की साफ-सफाई की सेवा करता था। गुरूजी शेख फरीद की बहुत प्रशंसा करते थे जो अन्य शिष्यों को खटकती थी। उन सबने मिलकर शेख फरीद को गुरूजी की नजरों से गिराने का विचार किया। षड़यंत्रा रचा कि बारिश का मौसम है। गुरूजी भोजन के तुरंत बाद हुक्का पीते हैं। यदि हुक्का भरने में देरी कोई शिष्य कर देता तो उसे डंडों से पीटता था। कई दिन तक सेवा से वंचित कर देता था। शेख फरीद कभी गलती में नहीं आए थे। एक दिन शेख फरीद ने भोजन बनाया। अग्नि प्रतिदिन की तरह तैयार कर रखी थी। भोजन गुरूजी को खिलाया। चिलम में आग रखने के लिए चुल्हे के पास गया तो देखा आग बुझ चुकी थी। आग नहीं थी। गुरूजी नाराज न हो जाएँ, इस भय से शेख फरीद दौड़ा-दौड़ा गाँव में गया जो आधा कि.मी. की दूरी पर थी। एक माई चुल्हे में अग्नि सुलगाकर रोटी बना रही थी। शेख फरीद ने कहा, माई! आग दे। गुरू जी का हुक्का भरना है। हमारी आग बुझ गई है। गुरूजी नाराज हो गए तो जीवन नरक बन जाएगा। माई ने दुःखी होकर फूँक मार-मारकर अग्नि जलाई थी। मौसम बारिश का था। माई बोली कि आग आँखें फूटने से मिलती है। मैंने आँखें फुड़वाकर अग्नि तैयार की है। तू भी आँखें फूड़वा, तब आग मिलेगी। शेख फरीद को अपनी एक आँख में चिमटा मारा। आँख निकालकर माई के पास रख दी और बोला कि लो माई! आँख फोड़ ली है। अब तो आग दे दो। वह औरत घबरा गई। उसे पता था कि वह फकीर सिद्ध पुरूष है। वह मुझे हानि करेगा। तुरंत चुल्हे से अग्नि निकालकर बाहर कर दी। शेख फरीद आग चिलम में रखकर दौड़ा। फकीर दो आवाज लगाता था। कहता था कि हुक्का लाओ। शिष्य का नाम पुकारता था। तीसरी बार तो डंडा लेकर मारने चलता था। गुरूजी ने पहली आवाज लगाई। तब शेख फरीद आधे रास्ते में था। दूसरी लगाई, तब आश्रम में प्रवेश कर चुका था। गुरूजी ने दूसरी बार कहा कि हे शेख फरीद! कहाँ मर गया। शेख फरीद बोला कि आ गया गुरूजी। शेख फरीद ने फूटी आँख पर कपड़ा बाँध रखा था। गुरूजी को बताया कि बारिश की वजह से आश्रम में आग बुझ गई थी। दौड़कर नगरी से लाया हूँ। गुरूजी को अंधेरे में कुछ कम दिखाई देता था। शेख फरीद की आँख पर कपड़ा बँधा देखकर पूछा कि आँख को क्या हो गया? फरीद बोला कि कुछ नहीं गुरूजी। आपकी कृपा से सब ठीक है। गुरूजी ने भी अधिक ध्यान नहीं दिया। सुबह वह औरत शेख फरीद की आँख एक मिट्टी के ढ़क्कन पर रखकर आश्रम लाई। फकीर जी से अपनी गलती की क्षमा माँगी। बताया कि आपका शिष्य कल शाम को आग लेने गया था। बोला माई आग दे दे। आश्रम की आग बुझ गई है। गुरूजी भोजन खाते ही हुक्का पीते हैं। हुक्का भरने में देरी हो जाने पर नाराज हो जाते हैं। कई दिन सेवा नहीं देते हैं। यदि गुरूजी नाराज हो गए तो मेरा जीवन नरक बन जाएगा। महिला बोली कि मैंने बड़ी मुश्किल से आग तैयार की थी। मेरी आँख धुँएँ से लाल हो गई थी। फँूक मार-मारकर परेशान थी। मैंने भक्त से कह दिया कि आँखें फुड़वाकर आग बनती है। आँखें फुड़वा, तब आग मिलेगी। इसने सच में चिमटे से आँख निकालकर रख दी। बोला कि यदि गुरूजी नाराज हो गए तो आँखें किस काम की? यह आँख मैं लेकर आई हूँ। गुरूजी ने शेख फरीद को बुलाया। कहा कि आँख का कपड़ा खोल। कपड़ा खोला तो आँख स्वस्थ थी। परंतु कुछ छोटी थी। माई ने यह सब देखा तो गाँव जाकर फकीर की प्रसिद्धि की कि बड़ा चमत्कारी साधु है। मेरे सामने आँख ठीक कर दी। गुरूजी ने शेख फरीद को सीने से लगाया। आशीर्वाद दिया कि तेरी साधना सफल हो।
गुरूजी की मृत्यु के पश्चात् शेख फरीद ने आश्रम त्याग दिया। गुरूजी ने तप करने से मोक्ष बताया था। जैसा गुरूजी का आदेश था, शेख फरीद पूरी निष्ठा से पालन कर रहा था। बारह वर्ष तक तो कँुए में उल्टा लटक-लटककर तप किया। उस दौरान केवल सवामन (पचास किलोग्राम) अन्न खाया था जो नाम मात्रा था। (प्रतिदिन ग्यारह-बारह ग्राम की औसत आती है।) शरीर अस्थिपिंजर बन गया था। शेख फरीद कुछ देर कँुए से बाहर लेटता व बैठता था। एक दिन (कागों) कौओं ने उसे मृत जानकर उसकी आँखें खाने के लिए उसके माथे पर बैठ गए। शेष शरीर पर माँस नहीं था। फरीद बोला! हे कौओ! आप मेरी दो आँखें छोड़कर शरीर का सारा माँस खा लो। मैं परमात्मा देखना चाहता हूँ। इसलिए मेरी आँखें-आँखें छोड़ दो। जब फरीद बोला तो कौवे उड़ गए। शेख फरीद रस्से से पैर बाँधकर प्रतिदिन की तरह कुँए में लटक गया। खुदा कबीर जी एक जिंदा बाबा (अल-खिज्र) के वेश में कँुए पर आए तथा रस्सा पकड़कर फरीद को कँुए से निकालने लगे। शेख फरीद बोला भाई! आप मुझे ना छेड़। तू अपना काम कर, मैं अपना काम कर रहा हूँ। परमात्मा बोले कि आप क्या कर रहे हो? फरीद बोला कि मैं अल्लाह का दर्शन करने के लिए घोर तप कर रहा हूँ। परमात्मा ने कहा कि मैं ही अल्लाह अकबर हूँ। फरीद बोला! भाई मजाक मत कर। अल्लाह तो बेचून (निराकार) है। वह मानुष रूप में नहीं आता। परमात्मा ने कहा कि आप कहते हैं कि परमात्मा निराकार है। दूसरी ओर कह रहे हो कि परमात्मा के दर्शन (दीदार) के लिए घोर तप कर रहा हूँ। कहते हैं घाम का और ज्ञान का तो चमका-सा ही लगता है। विचार किया कि अल्लाह नहीं है तो अल्लाह का बाखबर अवश्य है। शेख फरीद ने चरण पकड़ लिए। तत्त्वज्ञान समझा। कबीर परमात्मा के द्वारा बताई साधना करके कल्याण करवाया।
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