अगले दिन पूज्य कबीर परमेश्वर राज दरबार में पहुँचे। काशी नरेश बीरदेव सिंह बघेल तथा दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी ने डण्डवत् प्रणाम (जमीन पर लम्बा लेटकर) किया तथा कविर्देव को आसन पर बैठाया तथा दोनों राजा स्वयं नीचे जमीन पर बिछे गलीचे पर विराजमान हो गए। बादशाह सिकंदर ने प्रार्थना की कि हे परवरदीगार ! मेरा रोग न तो हिन्दू संतों से शांत हुआ तथा न ही मुसलमान पीरों, काजी तथा मुल्लाओं से। क्या कारण था दीन दयाल आपके आशीर्वाद मात्र से ही मेरा जान लेवा रोग छू मंत्र हो गया। कल रात्री में मैंने पेट भर कर खाना खाया। वर्षों से यह कष्ट मुझे सत्ता रहा था। आपकी कृप्या से मैं स्वस्थ हो गया हूँ।
परमेश्वर कबीर साहेब जी ने बताया कि राजन् पूर्ण परमात्मा अल्लाहु अकबर(अल्लाहु कबीरू) ही सर्व पाप नाश (क्षमा) कर सकता है। अन्य प्रभु तो केवल किए कर्म का फल ही दे सकते हैं। जैसे प्राणी को दुःख तो पाप से होता है तथा सुख पुण्य से। आप को पाप कर्म के कारण कष्ट था। यह आपके प्रारब्ध में लिखा था। यह किसी भी अन्य देव या भगवान से ठीक नहीं हो सकता था क्योंकि पाप नाशक (क्षमा करने वाले) पूर्ण परमात्मा (अल्लाहु कबीरू) के वास्तविक ज्ञान व भक्ति विधि को न तो हिन्दू संत, गुरुजन जानते हैं तथा न ही मुसलमान पीर, काजी तथा मुल्ला ही परिचित हैं। उस सर्व शक्तिमान परमेश्वर की पूजा विधि तथा पूर्ण ज्ञान केवल यह दास (कबीर परमेश्वर) जानता है। न श्री राम तथा श्री कृष्ण अर्थात् श्री विष्णु जी जानते तथा न ही श्री ब्रह्मा जी तथा श्री शिव जी, न ब्रह्म (जिसे आप निराकार प्रभु कहते हो) जानता। न हजरत मुहम्मद जानता था, न ही अन्य मुसलमान पीर व काजी तथा मुल्ला ही जानते हैं। उस कादर अल्लाह की इबादत (पूजा) के बिना कोई भी भाग्य में लिखा कष्ट समाप्त नहीं हो सकता। यही कारण है कि कोई भी हिन्दू या मुसलमान पीर आपको स्वस्थ नहीं कर सका।
परमेश्वर कबीर साहेब जी के मुख कमल से उपरोक्त वचन सुनकर शेखतकी व्यंगात्मक तरीके से बोला कि तू ही जानता है सारे ज्ञान को। हमारे हजरत मुहम्मद जी को भी अज्ञानी कह रहा है। बीच बचाव करते हुए बीरदेव सिंह बघेल काशी नरेश ने कहा पीर जी इसमें नाराज होने की कौन-सी बात है, प्रेम पूर्वक शंका का समाधान करवाओ। काशी नरेश जानता था कि सर्व ज्ञान सम्पन्न पूज्य कबीर साहेब जी ज्ञान गोष्ठी करके पीर जी का भ्रम निवारण करना चाहते हैं। काशी नरेश ने शेखतकी से कहा कबीर जी ने किस कारण से हजरत मुहम्मद जी को पूर्ण ज्ञान से वंचित कहा है आप कारण पूछो। शेखतकी ने कहा प्रश्न ही तो पूछ रहा हूँ। कबीर जी कारण बताए किस आधार से हमारे हजरत मुहम्मद नबी जी को अज्ञानी कहा है?
परम पूज्य कबीर परमेश्वर ने कहना प्रारम्भ किया। पवित्र कुरआन शरीफ (सुरत फुर्कानि स. 25 आयत 52,58, 59) में जिस कबीर अल्लाह का विवरण है वह कादर खुदा है। जिसे अल्लाहु अकबर (अकबीरू) कहते हो। कुरआन शरीफ का ज्ञान दाता ने अपने से अन्य कबीर नामक अल्लाह की महिमा का गुणगान किया है। (आयत सं. 52 से 58 तथा 59 में) हजरत मुहम्मद जी को कुरआन शरीफ के ज्ञान दाता खुदा ने कहा है कि हे नबी मुहम्मद ! जो कबीर नामक अल्लाह है उसने सर्व ब्रह्मण्डो की रचना की है। वही सर्व पाप नाश (क्षमा) करने वाला है तथा सर्व के पूजा करने योग्य है। उसी ने जमीन तथा आसमान के मध्य जो कुछ भी है सर्व की रचना छः दिन में की है तथा सातवें दिन आसमान में तख्त पर जा विराजा। उस सर्व शक्तिमान, सर्व ब्रह्मण्डों के रचनहार, सर्व पाप नाशक, परमात्मा कबीर (अल्लाहु अकबर) की भक्ति विधि तथा उसके विषय में पूर्ण ज्ञान किसी तत्त्वदर्शी संत (बाखबर) से पूछो। कबीर परमेश्वर ने कहा शेखतकी जी आपके अल्लाह को ही ज्ञान नहीं है तो आप के हजरत मुहम्मद जी को कैसे पूर्ण ज्ञान हो सकता है? तथा अन्य काजी, मुल्ला तथा पीर भी सत्य साधना तथा तत्वज्ञान से वंचित हैं। जिस कारण से अधूरे ज्ञान के आधार से इबादत करने वाले साधक के कष्ट का निवारण नहीं होता। अन्य साधना जैसे पाँच समय नमाज करना, रोजे (व्रत) रखना तथा बंग (अजान) देना आदि पूजा विधि से मोक्ष तथा कष्ट निवारण नहीं होता। जन्म-मृत्यु तथा स्वर्ग में बने पित्तर लोक में तथा नरक में तथा अन्य प्राणियों के शरीरों में भी कर्मों के आधार से कष्ट भोगने पड़ते हैं।
उपरोक्त वार्ता सुनकर शेखतकी ने तुरंत कुरआन शरीफ को खोला तथा सूरत फुर्कानि-25 आयत 52-59 को पढ़ा जिसमें उपरोक्त विवरण सही था। वास्तविकता को आँखों देखकर भी मान हानी के भय से कहा कि ऐसा कहीं नही ंलिखा है। यह काफिर झूठ बोल रहा है। उस समय शिक्षा का अभाव था। बादशाह सिकंदर को भी शंका हो गई कि परमेश्वर कबीर साहेब जी भले ही शक्ति युक्त हैं, परंतु अशिक्षित होने के कारण कुरआन के विषय में नहीं जान सकते।
शेखतकी ने जले-भुने वचन बोले क्या तू ही है वह बाखबर? फिर बता दे वह अल्लाहु अकबर कैसा है? यदि परमात्मा को साकार कहता है तो कौन है? कहाँ रहता है?
परमेश्वर कबीर साहेब जी ने कहा:- वह कबीर अल्लाह जिसे आप अल्लाहू अकबर कहते हो, वह मैं ही हूँ। मैं ऊपर सतलोक में रहता हूँ। मैंने ही सर्व ब्रह्मण्डों की रचना की है। मैं हजरत मुहम्मद जी को भी जिन्दा संत का रूप धारण करके मिला था तथा उस प्यारी आत्मा को सतलोक दिखाकर वापिस छोड़ा था। हजरत मुहम्मद से कहा था कि आप अब मेरी महिमा सर्व अनुयाईयों को सुनाओ। मेरे द्वारा दी अन्य पुस्तक ‘कलामे कबीर’ अपने अनुयाईयों को दो। परन्तु मुहम्मद ने तत्त्वज्ञान का प्रचार नहीं किया तथा न मेरी बातों पर विश्वास किया।
हजरत मुहम्मद जी जिस साधना को करता था वही साधना अन्य मुसलमान समाज भी कर रहा है। वर्तमान में सर्व मुसलमान श्रद्धालु माँस भी खा रहे हैं। परन्तु नबी मुहम्मद जी ने कभी माँस नहीं खाया तथा न ही उनके अनुयाईयों ने जो लाखों की सँख्या में थे तथा न एक लाख अस्सी हजार नबियों ने माँस खाया। केवल रोजा व बंग (अजान) तथा नमाज किया करते थे। गाय आदि को बिस्मिल (हत्या) नहीं करते थे।
नबी मुहम्मद नमस्कार है, राम रसूल कहाया।
एक लाख अस्सी कूं सौगंध, जिन नहीं करद चलाया।।
अरस कुरस पर अल्लह तख्त है, खालिक बिन नहीं खाली।
वे पैगम्बर पाख पुरुष थे, साहिब के अब्दाली।।
भावार्थ:- नबी मोहम्मद तो आदरणीय है जो प्रभु के अवतार कहलाए हैं। कसम है एक लाख अस्सी हजार को जो उनके अनुयाई थे, उन्होंने भी कभी बकरे, मुर्गे तथा गाय आदि पर करद नहीं चलाया अर्थात् कभी जीव हिंसा नहीं की तथा माँस भक्षण नहीं किया। वे हजरत मोहम्मद, हजरत मूसा, हरजत ईसा आदि पैगम्बर(संदेशवाहक) तो पवित्र व्यक्ति थे तथा ब्रह्म (ज्योति निरंजन/काल) के कृपा पात्र थे, परन्तु जो आसमान के अंतिम छोर (सतलोक) में पूर्ण परमात्मा(अल्लाहू अकबर अर्थात् अल्लाह कबीर) है। उस सृष्टि के मालिक की नजर से कोई नहीं बचा।
मारी गऊ शब्द के तीरं, ऐसे थे मोहम्मद पीरं।।
शब्दै फिर जिवाई, हंसा राख्या माँस नहीं भाख्या, एैसे पीर मुहम्मद भाई।।
भावार्थ: एक समय नबी मुहम्मद ने एक गाय को शब्द(वचन सिद्धि) से मार कर सर्व के सामने जीवित कर दिया था। उन्होंने गाय का माँस नहीं खाया। अब मुसलमान समाज वास्तविकता से परिचित नहीं है। जिस दिन गाय जीवित की थी उस दिन की याद बनाए रखने के लिए गऊ मार देते हो। आप जीवित नहीं कर सकते तो मारने के भी अधिकारी नहीं हो। आप माँस को प्रसाद रूप जान कर खाते तथा खिलाते हो। आप स्वयं भी पाप के भागी बनते हो तथा अनुयाईयों को भी गुमराह कर रहे हो। आप दोजख (नरक) के पात्र बन रहे हो।
कबीर परमेश्वर ने कहा:-
हम मुहम्मद को सतलोक ले गयो। इच्छा रूप वहाँ नहीं रहयो।।
उल्ट मुहम्मद महल पठाया। गुज बीरज एक कलमा लाया।।
रोजा, बंग, नमाज दई रे। बिसमिल की नहीं बात कही रे।।
भावार्थ:- नबी मुहम्मद को मैं (कबीर परमेश्वर) सतलोक ले कर गया था परन्तु वहाँ न रहने की इच्छा व्यक्त की, वापिस मुहम्मद जी को शरीर में भेज दिया। पहले जबरील फरिस्ता काल ब्रह्म के पास हजरत मुहम्मद को लेकर गया था। उसने भी नबी मुहम्मद जी को रोजा(व्रत) बंग(ऊँची आवाज में प्रभु स्तुति करना) तथा पाँच समय की नमाज करना तो कहा था परन्तु गाय आदि प्राणियों को बिस्मिल करने(मारने) को नहीं कहा।
उपरोक्त वार्ता सुनकर शेखतकी पीर ने क्रोध करते हुए कहा कि तू क्या जाने कुरआन शरीफ तथा हमारे नबी के विषय में तू तो अशिक्षित है। हमारे धर्म के विषय में झूठा प्रचार करके भ्रम फैला रहा है। मैं बताता हूँ पवित्र कुरआन मजीद (शरीफ) की अमृत वाणी कैसे प्राप्त हुई। शेखतकी ने (जो दिल्ली के महाराजा सिकंदर लौधी का धार्मिक गुरु तथा पूरे भारत के मुसलमान शेखतकी की प्रत्येक आज्ञा का पालन करते थे) कहा कि सुन हे कबीर! हमारे मुहम्मद नबी का जीवन वृतांत।
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