 
                       
                        अब शेखतकी ने देखा कि कबीर साहेब जी की तो और अधिक महिमा हो गई। वह फिर साहेब को किसी न किसी प्रकार नीचा दिखाने की योजना बनाने लगा। इतनी लीला देखकर भी शेखतकी नीच की आँखें नहीं खुली। परमात्मा सामने थे, परन्तु मान-बड़ाई वश स्वीकार नहीं कर रहा था।
कुछ दिनों पश्चात् फिर शेखतकी ने मुसलमानों को इकट्ठे किया और कहा कि यह कबीर कोई जादूगर है। हम इसकी एक और परीक्षा लेंगे। हजारों की संख्या में मुसलमान शेखतकी के साथ राजा सिकंदर के पास गए तथा कहा कि हम इस कबीर को उबलते सरसों के तेल के कड़ाहे में डालेंगे। यदि यह नहीं मरा तो हम इसको भगवान मान लेंगे। सिकंदर लौधी घबरा गया कि कहीं ये मेरे राज को न पलट दें। कबीर साहेब के पास गया और प्रार्थना की कि महाराज जी मैं आपको यहाँ पर लाया तो था सेवा करने के लिए। लेकिन मैंने तो आपको दुःखी कर दिया दाता। कबीर साहेब ने पूछा कि क्या बात है राजन्? सिकंदर लौधी ने कहा कि साहेब आप तो जानीजान हो, शेखतकी ऐसे-ऐसे कह रहा है। कबीर साहेब जी बोले राजन् कोई बात नहीं, इन्होंने तो मुझे खत्म करना ही है। आज नहीं तो कल करेंगे। आज ही टंटा कट जाए तो बहुत अच्छा। कबीर साहेब ने कहा कि कह दे उनको कि तेल गर्म कर लेंगे। कबीर साहेब जी सोचते थे कि यह नादान शेखतकी ऐसे ही मान जाए। सिकंदर लौधी ने शेखतकी से कहा कि कर लो तेल गर्म।
शेखतकी ने बहुत मोटी-मोटी लकड़ी लगा कर तेल के कड़ाहे को बहुत उबाल दिया और कहा इस कबीर को उठा कर इसमें डाल दो। कबीर साहेब बोले कि शेख जी यह कष्ट भी क्यों कर रहे हो, मैं स्वयं ही बैठ जाऊँगा। पूज्य कबीर साहेब जी उस उबलते तेल के कड़ाहे में प्रवेश कर गए। केवल गर्दन बाहर दिखाई दे रही थी। शेष शरीर उस उबलते हुए तेल में था। कबीर साहेब जी आराम से बैठे थे जैसे ठण्डे पानी में बैठे हों। शेखतकी ने कहा कि यह जंत्र-मंत्र जानता है। इसने इस तेल को ठंडा कर दिया है। यह वैसे उबलता हुआ दिखाई दे रहा है। सिकंदर लौधी ने सोचा कि कहीं सचमुच यह ठण्डा हो गया हो। सिकंदर ने परीक्षण के लिए उस उबलते हुए तेल के कड़ाहे में ऊँगली देनी चाही। कबीर साहेब ने कहा कि राजा इसमें ऊँगली मत देना, कहीं इस बावली बूच के चक्कर में आकर हाथ नष्ट करवा ले। यह इतना गर्म है कि ऊँगली ढूंढी नहीं मिलेगी। सिकंदर ने सोचा कि जब कबीर साहेब जी तेल में बैठे हैं तो तुझे क्या होगा? यह सोचकर मना करते-करते उस उबलते हुए तेल के कड़ाहे में ऊँगली दे दी। जितनी ऊँगली तेल में गई थी उतनी कट कर अलग हो गई और राजा दर्द के मारे बेहोश हो गया। कबीर साहेब ने सोचा कि यह नादान बादशाह इस ईर्षालु शेखतकी के चक्कर में मरेगा। कबीर साहेब तेल के कड़ाहे से बाहर आए। सिकंदर को होश में लाया गया। इतनी पीड़ा थी कि फिर बेहोश हो गया। कबीर साहेब ने ऊँगली को पकड़ कर पूरा कर दिया। बादशाह सिकंदर सचेत हो गया। सिकंदर ने क्षमा याचना करते हुए कहा कि मुझे माफ कर दो दाता, मेरे से गलती हो गई। कबीर साहेब ने कहा कि राजन् आपका दोष नहीं है। काल नहीं चाहता कि मेरे बच्चे मुझे पहचान लें।
शेखतकी ने देखा कि यह तो ऐसे भी नहीं मरा। मुसलमानों को पुनर् इक्कठा किया और कहा कि अब की बार इस कबीर को कुएँ में डालकर ऊपर से मिट्टी, ईटें और रोड़े डाल देंगे। तब देखेंगे यह कैसे बचेगा? भोली जनता तो जैसे पीर जी कहे वैसे ही करने को तैयार थी। शेखतकी ने सिकंदर लौधी से कहा कि हम इसकी एक परीक्षा और लेंगे। सिकंदर ने पूछा कि क्या परीक्षा लोगे? शेखतकी ने कहा कि हम इसको झेरे कुएँ में डालेंगे और फिर देखेंगे कि वहाँ से कैसे जीवित होगा?
{अब इतनी लीला देखकर भी राजा का अपने मालिक पर विश्वास नहीं बना। नहीं तो धमका देता कि जा करले तूने जो करना है। मंै नहीं दुःखी करूं अपने भगवान को। फिर देखता उसका राज्य जाता या और मौज हो जाती।} राजा ने सोचा कहीं मेरा राज्य न चला जाए। सिकंदर लौधी राजा ने साहेब से प्रार्थना की कि यह शेखतकी तो नहीं मानता और आज ऐसे-ऐसे जिद्द किए हुए है। पूज्य कबीर साहेब जी ने कहा ठीक है। कर लेने दे इसको जो यह करे। मेरा भी टंटा कटे। मैं भी दुःखी हो लिया। कह दे कि तुने जो करना है कर ले। शेखतकी कबीर साहेब जी को बाँध जूड़ कर ले गया और जाकर गहरे झेरे कुएँ में डलवा दिया। वहाँ पर हजारों व्यक्तियों को इक्कठा किए हुए था। बहुत गहरा अंधा कुआँ जिसमें पानी गंदा और थोड़ा-सा पड़ा था और ऊपर से मिट्टी, कांटेदार छड़ी, गोबर, ईंट आदि से डेढ़ सो फूट ऊँचा पूरा भर दिया। फिर शेखतकी हाथ-मुँह धोकर सिकंदर लौधी के पास गया तथा कहा कि राजा कर दिया तेरे शेर को समाप्त। उसके ऊपर इतनी मिट्टी डाल दी है कि अब किसी भी प्रकार बाहर नहीं आ सकता। सिकंदर लौधी ने पूछा पीर जी आप किसकी बात कर रहे हो? शेखतकी बोला कि तेरे गुरुदेव कबीर की। उसको आज हमने समाप्त कर दिया है। सिकंदर ने कहा कि पीर जी पूज्य कबीर साहेब जी तो अंदर कमरे में बैठे हैं, वे तो कहीं पर गये ही नहीं। शेखतकी ने अंदर जाकर देखा तो पूज्य कबीर साहेब अंदर कमरे में आसन पर आराम से बैठे थे। शेखतकी को तो और ज्यादा ईष्र्या हो गई कि यह कबीर तो मारे से मर नहीं रहा। अब क्या किया जाए? अन्य समझदार व्यक्ति तो मान गये, हजारों ने उपदेश लिया, प्रभु कबीर जी के शिष्य बने, परन्तु वह शेखतकी दुष्ट नहीं माना। शाहतकी नहीं लखी, निरंजन चाल रे। इस परचे तै आगे माँगे जवाल रे।।
शेखतकी बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर की महिमा को नहीं समझ पाया। उसको चाहिए था भगवान के चरणों में गिरकर क्षमा याचना करता तथा अपना आत्म कल्याण करवाता, परन्तु मान-बड़ाई वश होकर साहेब का दुश्मन बन गया। शेखतकी ने और भी बहुत से जुल्म किए। कबीर साहेब काशी लौट गए।
कबीर साहेब के काशी आने के बाद शेखतकी ने सोचा कि यह कबीर तो किसी भी प्रकार नहीं मर रहा। वह कबीर साहेब को मारने के लिए रात्री के समय कुछ गुंडों को साथ लेकर कबीर साहेब की झोपड़ी पर गया। कबीर साहेब सो रहे थे। शेखतकी ने गुंडों से कहा कि इसके टुकड़े-टुकड़े कर दो। गुंडों ने तलवार से पूज्य कबीर साहेब जी के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और अपनी तरफ से मरा हुआ जानकर चल पड़े। जब वे झोपड़ी से बाहर निकले तो पीछे से कबीर साहेब ने उठकर कहा कि पीर जी, दूध पीकर जाना। ऐसे थोड़े ही जाते हैं। शेखतकी व उसके गुंडों ने सोचा कि यह भूत है। वहाँ से भाग गये। उन गुंडों को तो बुखार हो गया। कई दिन तक बुखार नहीं उतरा। कबीर साहेब उनके पास गये और उनको ठीक किया तथा कहा कि यह पीर तुम्हें मरवा कर छोड़ेगा, यह तुम्हें गुमराह कर रहा है। तब उन्होंने कबीर साहेब से क्षमा याचना की।
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