राबिया की कथा

राबिया की कथा

शेखतकी द्वारा कबीर जी की अन्य परीक्षाएँ

कमाली के पहले के जन्म

(पूर्ण मुक्ति पूर्ण संत बिना असंभव)

सतयुग में कमाली वाला जीव विद्याधार पंण्डित की पत्नी दीपिका थी। फिर त्रोतायुग में ऋषि वेदविज्ञ (जो विद्याधार वाली ही आत्मा थी) की पत्नी सूर्या थी। सत्ययुग तथा त्रोता में परमात्मा कबीर जी बालक रूप में इन्हीं को प्राप्त हुए थे। तत्पश्चात् अन्य जीवन धारण किए तथा कलयुग में मुस्लमान धर्म में राबी लड़की का जन्म हुआ। उसके पश्चात् एक जीवन वैश्या रूप में जीया। फिर बंसुरी नामक लड़की का जन्म हुआ। फिर कमाली नामक शेखतकी की लड़की हुई। राबिया के प्रमाण में साखियाँ संत गरीबदास साहेब द्वारा रचित गं्रथ साहेब से पारख के अंग की वाणी नं. 56 से 59:-

गरीब, सुलतानी मक्के गये, मक्का नहीं मुकाम।
गया रांड के लेन कूं, कहै अधम सुलतान।।56।।
गरीब, राबिया परसी रबस्यूं, मक्कै की असवारि।
तीन मंजिल मक्का गया, बीबी कै दीदार।।57।।
गरीब, फिर राबिया बंसरी बनी, मक्कै चढाया शीश।
सुलतान अधम चरणौं लगे, धनि सतगुरु जगदीश।।58।।
गरीब, बंसरी सैं बेश्वा बनी, शब्द सुनाया राग।
बहुरि कमाली पु़त्री, जुग जुग त्याग बैराग।।59।।

प्रमाण के लिए संत गरीबदास साहेब द्वारा रचित गं्रथ साहेब से अचला के अंग की वाणी नं. 363 से 368 तक:-

गरीब राबी कुं सतगुरु मिले, दीना अपना तेज।
ब्याही एक सहाब सैं, बीबी चढ़ी न सेज।।363।।
गरीब, राबी मक्के कूं चली, धर्या अल्लाह का ध्यान।
कुत्ती एक प्यासी खड़ी, छुटे जात हैं प्राण।।364।।
गरीब, केश उपारे शीश के, बाटी रस्सी बीन।
जाकै बस्त्रा बांधि कर, जल काढ्या प्रबीन।।365।।
गरीब, सुनहीं कूं पानी पीया, उतरी अरस अवाज।
तीन मंजिल मक्का गया, बीबी तुम्हरे काज।।366।।
गरीब, बीबी मक्के पर चढ़ी, राबी रंग अपार।
एक लाख अस्सी जहाँ, देखै सब संसार।।367।।
गरीब, राबी पटरा घालि कर, किया जहाँ स्नान।
एक लाख अस्सी बहे, मंगर मल्या सुलतान।।368।।

{उपरोक्त वाणियों में निम्न कथा का संक्षिप्त वर्णन है।}

एक राबी नाम की लड़की मुसलमान धर्म में उत्पन्न हुई। जब उसकी आयु 16 वर्ष की थी तो उसे पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब मिले। प्रभु में बहुत प्रेम था। रोजा रखना, नमाज करना, ईद मनाना जो परम्परागत साधना धर्म अनुसार थी, वह पूरी लगन से किया करती थी। तब कबीर साहेब ने बताया बेटी यह साधना प्रभु पाने की नहीं है। सारी सृष्टि रचना सुनाई तथा सत भक्ति का मार्ग बताया। उस लड़की राबिया ने उपदेश ले लिया। फिर चार वर्ष सत साधना करके समाज के दबाव से लोक-लाज के कारण सतमार्ग छोड़ दिया तथा वही परम्परागत साधना पुनः शुरू कर दी। उस लड़की की आस्था प्रभु में इतनी प्रबल थी कि शादी से मना कर दिया। माता-पिता रोने लग गए कि जवान लड़की को घर पर कैसे रखें? माता-पिता को आवश्यकता से अधिक परेशान देखकर राबिया ने शादी की स्वीकृती दे दी। उस लड़की राबिया की शादी एक बहुत बड़े साहेब (अधिकारी) से हुई। परन्तु अपने पति से स्पष्ट कह दिया कि मैं सन्तान उत्पत्ति नहीं करूँगी। मैंने तो मेरे माता-पिता के विशेष दबाव तथा समाज शर्म के कारण शादी की है। यदि आप मेरी बात स्वीकार नहीं करोगे तो मैं आत्महत्या कर लूंगी। यह मेरा अन्तिम फैसला समझो। मैं केवल प्रभु भक्ति करके आत्म कल्याण चाहती हूँ।

राबिया के पति ने सोचा क्यों मैं इस भक्तात्मा को दुःखी करूं और पाप का भागी बनूं। सोच विचार करके कहा कि राबिया जिस प्रकार आपने समाज से डर था ऐसे ही मेरा भी अपना एक समाज है। आपको समाज की दृष्टि में मेरी पत्नी के रूप में रहना पड़ेगा। मेरी दृष्टि में आप मेरी बहन होंगी। तुझे घर से बाहर नहीं जाने दूँगा। आप भजन(भक्ति) करो। कहो तो आपके लिए दो नौकरानी छोड़ देता हूँ। राबिया बहुत प्रसन्न हुई तथा कहा कि हे प्रभु ! आपने मेरी बड़ी सुनी। उस दिन के बाद राबिया मुसलमान धर्म में प्रचलित साधना करती रही।

मुसलमान धर्म में जन्म था। ईद और बकरीद, रोजे आदि श्रद्धा से करती थी। जब पचास वर्ष से ऊपर की आयु हो गई, तब अपने पति से कहा कि कहते हैं कि मक्का में जाना अति आवश्यक होता है। अब न जाने प्राण कब निकल जाऐं। एक बार मैं हज करना चाहती हूँ। उसके पति ने कहा कि आप जा सकती हो। कहो तो आपके लिए कोई ऊँट की व्यवस्था करवा देता हूँ। राबिया ने कहा कि मैं पैदल यात्रा करूँगी। अन्य भी बहुत यात्री जा रहे हैं। उसके पति ने कहा कि आप जा सकती हो।

राबिया ने मक्के में हज के लिए प्रस्थान किया। रास्ते में देखा एक कुत्तिया बहुत प्यासी थी। वह कुत्तिया कभी राबिया के पैरों की ओर दौड़ कर आ रही थी, कभी कुएँ की ओर जा रही थी। राबिया समझ गई कि यह कुत्तिया बहुत प्यासी है। साथ में इसके छोटे-छोटे बच्चे भी नजर आ रहे थे। इसको जल प्राप्त नहीं हुआ तो ये प्राण त्याग जाएगी, इसके बच्चे भी मर जाएँगे। भक्तात्मा में दया बहुत होती है। राबिया कुएँ पर गई। वहाँ देखा न वहाँ बाल्टी थी और न ही कोई रस्सा था। आसपास कोई गाँव भी नजर नहीं आ रहा था।

राबिया ने आव देखा न ताव, अपने सिर के बालों को उखाड़ कर एक लम्बी रस्सी बनाई। अपने ही कपड़े (क्योंकि उस समय मोटे खादी के कपड़े पहना करते थे।) उतार कर रस्सी से बाँध कर कुएँ में जल से भिगोकर बाहर निकाले और एक मटके का टूटा हुआ आधा हिस्सा वही पर रखा था उसको भर दिया।

कुत्तिया ने बहुत शीघ्रता से पानी पीया। राबिया का सारा शरीर लहु-लुहान हो गया। अपने कपड़ों से सारे शरीर को पोंछ कर और उन कपड़ो को धोकर कर पहन लिया तथा जैसे ही चलने के लिए तैयार हुई इतने में वह मक्का ज्यों का त्यों मकान (पवित्र मस्जिद) वहाँ से उठकर राबिया के लिए उस कुएँ के पास आ गया। आकाश वाणी हुई कि ‘‘हे भक्तमति तेरे लिए वह मक्का तीन मंजिल अर्थात् 60 मील से उड़ कर आया है। आप इस में प्रवेश करो। राबिया ने उसमें प्रवेश किया। मक्का वहाँ से उठा। वायुयान की तरह उड़ कर वापिस यथा स्थान पर आ गया। इस लीला को देख कर समाज में एक विशेष चर्चा हो गई कि भक्ति हो तो राबिया जैसी मुसलमान समाज में (मीरा बाई की तरह) राबिया का नाम आदर के साथ लिया जाने लगा। सभी उसका विशेष सत्कार करने लगे।

कुछ समय पश्चात् राबिया ने प्राण त्याग दिए। दूसरा जन्म मुसलमान धर्म में एक बंसुरी नाम की लड़की का हुआ। क्योंकि जहाँ जीव के संस्कार होते हैं वहीं उसकी उत्पत्ति होती रहती है। इतनी अच्छी धार्मिक वृत्ति की लड़की बहुत अच्छे प्रभु के गुण-गान करती थी और अपनी धार्मिक पूजा मुसलमान धर्म के अनुसार पूरी आयु करती रही। उस लड़की ने भी लोकवेद के आधार से यही सुना था कि यदि मक्का में प्राण निकल जाएँ तो उसके लिए जन्नत का द्वार खुल जाता है यानि वह जीव सीधा स्वर्ग (बहिस्त) जाता है।

वृद्ध होने पर हज करने मक्का में गई। सोचा कि इससे अच्छा सुअवसर और क्या होगा? यदि मक्का में प्राण निकल जाएं और स्वर्ग प्राप्ति हो जाए। लड़की ने अपना सिर काट कर मक्के में चढ़ा दिया। सारे मुसलमान समाज में इस बात की विशेष चर्चा हो गई कि कुर्बानी प्रभु के नाम पर ऐसे होती है। बंसुरी तो जन्नत में जाएगी।

(अब यहाँ नादान व्यक्तियों को सोचना चाहिए कि कुर्बानी अपनी करनी चाहिए। प्रभु के नाम पर बकरे और गाय या मुर्गे की नहीं। वास्तव में कुर्बानी प्रभु चरणों में समर्पण तथा सत्य भक्ति होती है। शीश काट देने तथा अविधि पूर्वक साधना करने से मुक्ति नहीं होती। यह तो काल की भूल भुलैया है। कुर्बानी गर्दन काटने से नहीं होती, समर्पण से होती है। प्रभु के निमित्त हृदय से समर्पण कर दे कि हे प्रभु तन भी तेरा, धन भी तेरा, यह दास या दासी भी तेरी, यह कुर्बानी प्रभु को पसंद है। हिंसा, हत्या प्रभु कभी पसंद नहीं करता।)

उसके बाद उसी लड़की राबिया का तीसरा जन्म अन्य समाज में हुआ। कर्म आधार पर वैश्या बनी। पूर्ण परमेश्वर (सतपुरूष कबीर साहेब) ही जीव के पाप कर्म काट सकता है अन्य नहीं काट सकते। जैसे हिन्दूस्त्तान का राष्ट्रपति फांसी की सजा को भी क्षमा कर सकता है, अन्य सजाएं तो कहना ही क्या है? अन्य कोई भी फांसी की सजा को क्षमा नहीं कर सकता। इसी प्रकार (पूर्ण परमात्मा) परम शक्तियुक्त कबीर साहेब हमारे सर्व दुःखों का निवारण कर सकते हैं। अन्य कोई खुदा किस्मत में लिखे कष्ट को समाप्त नहीं कर सकता।

(शेष कथा)

राबिया वाली आत्मा ने वैश्या का जीवन पूर्ण करके प्राण त्याग दिए। उसी राबिया का चैथा मानव जन्म शेखतकी, पीर के यहाँ लड़की के रूप में हुआ। जो सिकंदर लौधी का धार्मिक गुरु दिल्ली में था बारह वर्ष की आयु पूरी करके वह लड़की शरीर त्याग गई। उसको कब्र में दबा दिया गया। कबीर साहेब कहते हैं कि:-

गरीब, जो जन मेरी शरण है, ताका हूँ मैं दास। गैल गैल लाग्या रहंू, जब लग धरणी आकाश।।
गरीब ज्यों बछा गऊ की नजर मंे, यों साई ने संत। भक्तों के पीछे फीरे, वो भक्त वत्सल भगवंत।।

उस पूर्ण परमात्मा की भक्ति अर्थात् कविर्देव अपनी भक्ति जो स्वयं सन्त रूप में आकर बताता है उस सतगुरु रूप में प्रकट कबीर साहेब के बताए अनुसार सत भक्ति इस लड़की ने चार-पाँच वर्ष की थी। उसके बाद त्याग दी थी। उस भक्ति के परिणाम स्वरूप इसको लगातार तीन मनुष्य शरीर प्राप्त हुए। उसका आगे मनुष्य जीवन का संस्कार शेष नहीं था। अब इस आत्मा ने चैरासी लाख योनियों में कष्ट पर कष्ट उठाना था। कबीर प्रभु दयालु हैं। कारण बनाया, उस लड़की को वहाँ कब्र से जीवित करके अपने चरणों में ले करके कमाली नाम रखा और इस प्यारी बिटिया को उपदेश दिया और मुक्ति प्रदान की। इसी प्रकार हमने यह सोचना होगा कि हम जड़ों मंे पानी डालेंगे तो पौधा हरा-भरा होगा। हम पत्ते और टहनियों की पूजा कर रहे हैं ये गलत है।

कबीर, अक्षर पुरूष एक पेड़ है, निरंजन वाकी डार।
तीनों देवा शाखा हैं, पात रूप संसार।।

उल्टा लटका हुआ संसार रूपी वृक्ष है। इसकी ऊपर को जड़ें परम अक्षर पुरूष सतपुरूष पूर्ण ब्रह्म हैं और जमीन से बाहर जो तना दिखाई देता है वह अक्षर पुरूष (परब्रह्म) समझो। उसके बाद तने के एक मोटी डार होती है। उस डाल को ज्योति निरंजन (ब्रह्म) समझो। उस डार की फिर तीन शाखाएँ ब्रह्मा, विष्णु, महेश समझो और फिर इनके ये टहनियाँ देवी देवता और पत्ते संसार समझो। ऐसा कबीर साहेब ने पूरी सृष्टि रचना को एक ही दोहे मंे सुना दिया।

शेखतकी की मृत लड़की कमाली को जीवित करना

शेखतकी ने देखा कि यह कबीर तो किसी प्रकार भी काबू नहीं आ रहा है। तब शेखतकी ने जनता से कहा कि यह कबीर तो जादूगर है। ऐसे ही जन्त्र-मन्त्र दिखाकर इसने बादशाह सिकंदर की बुद्धि भ्रष्ट कर रखी है। सारे मुसलमानों से कहा कि तुम मेरा साथ दो, वरना बात बिगड़ जाएगी। भोले मुसलमानों ने कहा पीर जी हम तेरे साथ हैं, जैसे तू कहेगा ऐसे ही करेंगे। शेखतकी ने कहा इस कबीर को तब प्रभु मानेंगे जब मेरी लड़की को जीवित कर देगा जो कब्र में दबी हुई है।

पूज्य कबीर साहेब से प्रार्थना हुई। कबीर साहेब ने सोचा यह नादान आत्मा ऐसे ही मान जाए। {क्योंकि ये सभी जीवात्माऐं कबीर साहेब के बच्चे हैं। यह तो काल ने (मजहब) धर्म का हमारे ऊपर कवर चढ़ा रखा है। एक-दूसरे के दुश्मन बना रखे हैं।} शेखतकी की लड़की का शव कब्र में दबा रखा था। शेखतकी ने कहा कि यदि मेरी लड़की को जीवित कर दे तो हम इस कबीर को अल्लाह स्वीकार कर लेंगे और सभी जगह ढिंढ़ोरा पिटवा दूँगा कि यह कबीर जी भगवान है। कबीर साहेब ने कहा कि ठीक है। वह दिन निश्चित हुआ। कबीर साहेब ने कहा कि सभी जगह सूचना दे दो, कहीं फिर किसी को शंका न रह जाए। हजारों की संख्या में वहाँ पर भक्त आत्मा दर्शनार्थ एकत्रित हुई। कबीर साहेब ने कब्र खुदवाई। उसमें एक बारह-तेरह वर्ष की लड़की का शव रखा हुआ था। कबीर साहेब ने शेखतकी से कहा कि पहले आप जीवित कर लो। सभी उपस्थित जनों ने कहा है कि महाराज जी यदि इसके पास कोई ऐसी शक्ति होती तो अपने बच्चे को कौन मरने देता है? अपने बच्चे की जान के लिए व्यक्ति अपना तन मन धन लगा देता है। हे दीन दयाल आप कृपा करो। पूज्य कबीर परमेश्वर ने कहा कि हे शेखतकी की लड़की जीवित हो जा। तीन बार कहा लेकिन लड़की जीवित नहीं हुई। शेखतकी ने तो भंगड़ा पा दिया। नाचे-कूदे कि देखा न पाखण्ड़ी का पाखंड पकड़ा गया। कबीर साहेब उसको नचाना चाहते थे कि इसको नाचने दे।

कबीर, राज तजना सहज है, सहज त्रिया का नेह। मान बड़ाई ईष्र्या, दुर्लभ तजना ये।।

मान-बड़ाई, ईष्र्या की बीमारी बहुत भयानक है। अपनी लड़की के जीवित न होने का दुःख नहीं, कबीर साहेब की पराजय की खुशी मना रहा था। कबीर साहेब ने कहा कि बैठ जाओ महात्मा जी, शान्ति रखो। कबीर साहेब ने आदेश दिया कि हे जीवात्मा जहाँ भी है कबीर आदेश से इस शव में प्रवेश करो और बाहर आओ। कबीर साहेब का कहना ही था कि इतने में शव में कम्पन हुआ और वह लड़की जीवित होकर बाहर आई, कबीर साहेब के चरणों में दण्डवत् प्रणाम किया। (बोलो सतगुरु देव की जय।)

उस लड़की ने डेढ घण्टे तक कबीर साहेब की कृपा से प्रवचन किए। कहा हे भोली जनता ये भगवान आए हुए हैं। पूर्ण ब्रह्म अन्नत कोटि ब्रह्मण्ड के परमेश्वर हैं। क्या तुम इसको एक मामूली जुलाहा(धाणक) मान रहे हो। हे भूले-भटके प्राणियों ये आपके सामने स्वयं परमेश्वर आए हैं। इनके चरणों में गिरकर अपने जन्म-मरण का दीर्घ रोग कटवाओ और सत्यलोक चलो। जहाँ पर जाने के बाद जीवात्मा जन्म-मरण के चक्कर से बच जाती है। कमाली ने बताया कि इस काल के जाल से बन्दी छोड़ कबीर साहेब के बिना कोई नहीं छुटवा सकता। चाहे हिन्दू पद्धति से तीर्थ-व्रत, गीता-भागवत, रामायण, महाभारत, पुराण, उपनिषद्ध, वेदों का पाठ करना, राम, कृष्ण, ब्रह्मा-विष्णु-शिव, शेराँवाली(आदि माया, आदि भवानी, प्रकृति देवी), ज्योति निरंजन की उपासना भी क्यों न करें, जीव चैरासी लाख प्राणियों के शरीर में कष्ट से नहीं बच सकता और मुसलमान पद्धति से भी जीव काल के जाल से नहीं छूट सकता। जैसे रोजे रखना, ईद बकरीद मनाना, पाँच वक्त नमाज करना, मक्का-मदीना में जाना, मस्जिद में बंग देना आदि सर्व व्यर्थ है। कमाली ने सर्व उपस्थित जनों को सम्बोधित करते हुए अपने पिछले जन्मों की कथा सुनाई जो उसे कबीर साहेब की कृपा से याद हो आई थी। जो कि आप पूर्व पढ़ चुके हो।

कबीर साहेब ने कहा कि बेटी अपने पिता के साथ जाओ। वह लड़की बोली मेरे वास्तविक पिता तो आप हैं। यह तो नकली पिता है। इसने तो मैं मिट्टी में दबा दी थी। मेरा और इसका हिसाब बराबर हो चुका है। सभी उपस्थित व्यक्तियों ने कहा कि कबीर परमेश्वर ने कमाल कर दिया। कबीर साहेब ने लड़की का नाम कमाली रख दिया और अपनी बेटी की तरह रखा और नाम दिया। उपस्थित व्यक्तियों ने हजारों की संख्या में कबीर परमेश्वर से उपदेश ग्रहण किया। अब शेखतकी ने सोचा कि यह तो और भी बात बिगड़ गई। मेरी तो सारी प्रभुता गई।

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