प्रश्न:- क्या कब्रों में शव के अंदर जीवात्मा रहती है?
उत्तर:- हजरत आदम से हजरत मुहम्मद तक सब अनुयाई कहते हैं कि मरने के पश्चात् सबको कब्रों में दबाया जाएगा। जब कयामत आएगी, तब सबको जिलाया (जीवित किया) जाएगा। फिर वे अच्छे कर्मी जन्नत में तथा पाप कर्मी जहन्नम में सदा रहेंगे। यह सिद्धांत हजरत मुहम्मद जी की आसमानों की यात्रा (मेअराज) से ही खंडित हो जाता है जब वे बाबा आदम से लेकर हजरत ईशा तक को जन्नत में देखते हैं। वास्तव में वह पित्तर लोक है जो जन्नत तथा जहन्नम के मध्य में है। वहाँ पर पृथ्वी जैसा ही सुख तथा दुःख है।
शिव पुराण में एक प्रसंग आता है कि एक समय शिव जी अपनी पत्नी पार्वती को नाम-दीक्षा देने के लिए एकांत स्थान पर ले जाता है। एक सूखे वृक्ष के पास बैठ जाते हैं। नाम-दीक्षा मंत्र अधिकारी को सुनाना होता है। शिव जी ने हाथों से तीन बार ताली बजाई। उसकी भयंकर आवाज हुई जिसके भय से सब पशु व पक्षी दूर चले गए। उस सूखे वृक्ष के तने में बिलनुमा सुराख बने थे जो अधिक आयु के पेड़ों के तने में अमूमन हो जाते हैं जो दीमक आदि के लगने से होते हैं। उस वृक्ष के तने की खोगर (सुराख) में एक मादा तोते ने अंडे पैदा कर रखे थे। जो अंडे स्वस्थ थे, उनमें तोते पक्षी बनकर उड़ गए। एक अंडा गंदा हो गया था, वह वहीं रह गया। प्रत्येक अंडे में जीव थे। गंदे अंडे वाला जीव उसी में था। जब शिव जी को विश्वास हो गया कि आस-पास कोई प्राणी हमारी बातें सुनने वाला नहीं है, तब अपनी पत्नी पार्वती को पूर्ण परमात्मा की महिमा सुनानी प्रारंभ की तथा कमलों के (जो शरीर में बने कमल चक्र हैं, उनके) विषय में बताने लगे। प्रत्येक कमल को खोलने का मंत्र जाप भी बताने लगे। पार्वती जी मंत्र सुन-सुनकर प्रत्येक बात को स्वीकार करने का संकेत हाँ-हूँ करके करती थी। कुछ समय पश्चात् पार्वती जी को निंद्रा की झपकी आई। उस समय वृक्ष के बिल से हाँ-हूँ की आवाज आने लगी क्योंकि परमात्मा की कथा अधिकारी से सुनने से अधिक प्रभाव करती है। जिस कारण से तोते का गंदा अंडा स्वस्थ होकर उसमें पक्षी बन गया। तोता पक्षी हुँकारा भरने लगा था। शिव जी ने देखा पार्वती नहीं बोल रही। फिर हाँ-हूँ कौन कर रहा है? किसी ने मेरा अमर मंत्र सुन लिया। इसे मार देना चाहिए। शिव जी को उठते देख तोता पक्षी उड़ गया जो तोते का शरीर त्यागकर ऋषि वेद व्यास जी की पत्नी के पेट में चला गया। उस समय व्यास जी की पत्नी ने जम्बाही (उबासी) लेने के लिए मुख खोला था। मुख मार्ग से तोते का जीव पेट में गया था। बारह वर्ष गर्भ में रहा। फिर सुखदेव ऋषि रूप में जन्मा। यह लंबी कथा है। अब प्रसंग पर आता हूँ। बात ’’कब्रों में जीव रहता है या नहीं‘‘ चल रही है।
जिसको मानव (स्त्री-पुरूष) का शरीर मिला है। यदि वह सतगुरू की शरण में जाकर धर्म-कर्म भक्ति करता है, नेक काम करता है तो वह मृत्यु के पश्चात् शरीर त्यागकर कर्मों के अनुसार ऊपर के लोकों में चला जाता है। कबीर जी का भक्त व भक्तमति सतलोक चला जाता है। अन्य जो भक्ति नहीं करते हैं या गलत भक्ति करते हैं, मृत्यु के पश्चात् वे भी अपने कर्मों अनुसार नरक में या अन्य प्राणियों के शरीरों में चले जाते हैं। कुछ जीव ऐसे कर्महीन (खराब कर्मों वाले) होते हैं जिनको शीघ्र कोई शरीर नहीं मिलता। वे प्रेत योनि को प्राप्त करते हैं। जिन प्राणियों को अगला शरीर नहीं मिलता, वे अपने पुराने शरीर के मोह में फंसकर उसी के पास रहते हैं। जैसे जिस शरीर में जीव रहता है, उसको वह बहुत प्यारा लगता है। इस भाव से वे प्राणी कब्रों में दबे शरीर के साथ रहते हैं। उस कब्र के ऊपर रहते हैं। यदि कोई सुराख चींटी कर देती है तो उसमें से शरीर के साथ चिपक जाते हैं। कभी बाहर निकल आते हैं। जब तक उनको नया शरीर नहीं मिलता, तब तक पुराने शरीर के मोहवश उसी से चिपके रहते हैं। हिन्दू धर्म में शव (मृत शरीर को) जलाने के पश्चात् बचे हुए हड्डियों के टुकड़ों को (जिसको फूल उठाना कहते हैं) उठाकर दरिया के गहरे जल में प्रवाह कर देते हैं कि जो घर का सदस्य मरा है, वह यदि प्रेत बना होगा तो उस शरीर के टुकड़ों (हड्डियों के अवशेषों) के साथ चिपका दूर चला जाएगा। हमको परेशान नहीं करेगा। विषय कब्रों में जीव रहता है या नहीं, चला था। उसको स्पष्ट किया है कि कब्रों मंे केवल वही जीव रहते हैं जिनको प्रेत या जिन्न योनि मिली है। जिस कारण से आगे शरीर नहीं मिला है। प्रमाण के लिए तोते का जीव गंदे अंडे से चिपका था। उसे अपना मान रहा था। यही दशा कब्रों वाले जीवों की है। प्रेत योनि में कब्रों पर रहते हैं। नया शरीर मिलने के पश्चात् कब्रों में उस शव वाला जीव नहीं रहता।
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