प्रश्न:- चलने-फिरने में, खाना खाने-बनाने में, खेती करने में आदि-आदि में भी जीव मरते हैं। तो भक्त कैसे मोक्ष पा सकते हैं? उनसे भी पाप लगता है। पापी जन्नत में नहीं जा सकते तो वे कैसे जाएँगे? गाय, बकरी, मुर्गी तथा मानव व अन्य सूक्ष्म जीवों में आत्मा तो एक ही जैसी है।
उत्तर:- कादर अल्लाह ने विधान बनाया है। बताया है कि:-
कबीर इच्छा कर मारे नहीं, बिन इच्छा मर जाय।
कह कबीर तास का पाप नहीं लगाय।।
अर्थात् पैदल चलते समय, खेती-मजदूरी करते समय जमीन खोदने में, खाना पकाने आदि में जीव मारना उद्देश्य नहीं होता। वे जिस कारण से उनके मरने का पाप नहीं लगता। यह पाप उसको तो लगता है जिसने कबीर अल्लाह की शरण नहीं ले रखी यानि उसके द्वारा भेजे नबी (संत) से जिसने दीक्षा नहीं ले रखी। कबीर जी की शरण में नाम-दीक्षा लेने वाले को अनजाने में हुए पाप नहीं लगते। अन्य को लगेंगे चाहे वे किसी संत से उपदेश भी लिए हुए हैं। कबीर जी के भक्त को पूर्ण ज्ञान होता है। वह जान-बूझकर पाप नहीं कर सकता। अनजाने में हुए पाप का उसे दंड नहीं भोगना पड़ता।
उदाहरण:- जैसे ड्राइविंग (चालक) लाइसेंस (प्रमाण पत्र) उसी को मिलता है जो गाड़ी चलाना पूर्ण रूप से जानता है। फिर यदि उससे दुर्घटना हो जाती है और उसमें कोई मर जाता है तो उसमें उसे हत्या का दोषी नहीं माना जाता क्योंकि उसके पास चालक प्रमाण पत्र है। इसी प्रकार जिसने दास (रामपाल दास) से दीक्षा ले रखी है, उसको अनजाने में हुए पाप का दंड भोगना नहीं पड़ता।
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