यह कैसे माना जाए कि कुरआन मजीद का ज्ञान देने वाला काल ज्योति निरंजन है

यह कैसे माना जाए कि कुरआन मजीद का ज्ञान देने वाला काल ज्योति निरंजन है

प्रश्न:- यह कैसे माना जाए कि कुरआन मजीद का ज्ञान देने वाला काल ज्योति निरंजन है?

(रामपाल दास) उत्तर:- प्रमाण पवित्र पुस्तक कुरआन मजीद में ही पर्याप्त हैं। आप जी को यह तो ज्ञान है कि हजरत आदम से लेकर हजरत मुहम्मद तक का खुदा एक ही है। हजरत मूसा जी को भी पवित्र पुस्तक तौरेत उसी ने प्रदान (नाजिल) की थी।

कुरआन मजीद सूरः अल-कसस-28 आयत नं. 29-32 में तथा सूरः ता.हा.-20 आयत नं. 9. 23 में लिखा है कि हजरत मूसा ने तुर (कातुर) पर्वत के ऊपर आग जलती (ज्योति) देखी। उसने अपने परिवार के लोगों से कहा ‘‘तुम सब यहीं ठहरो। मैं उस आग से तुम्हारे लिए अँगार ले आता हूँ।’’ जब मूसा उस आग के निकट पहुँचा तो देखा कि वह लकड़ी से जलने वाली आग नहीं है। वह तो अलौकिक प्रकाश है। उस रोशनी से आवाज आई कि हे मूसा! मैं तेरा रब हूँ। तू जूती उतारकर नंगे पैरों से इस पर्वत पर चढ़। जब मूसा कुछ दूरी पर रह गया तो उस ज्योति में से आवाज फिर आई कि मूसा! तू अपनी लाठी मेरी ओर फैंक दो। मूसा ने लाठी फैंक दी जो एक साँप बनकर चलने लगी। फिर कहा कि मैं तेरे को अपना रसूल बनाता हूँ। तेरे को किताब की निशानी देता हूँ, आदि-आदि कहा।

इससे सिद्ध हुआ कि ज्योति निरंजन जिसे काल कहा जाता है, उसी ने मूसा को तौरेत किताब उतारी (नाजिल की)। वही हजरत आदम से हरजत मुहम्मद तक का रब है। इसने प्रतिज्ञा कर रखी (कसम खा रखी) है कि मैं अपने वास्तविक स्वरूप में किसी को दर्शन नहीं दूँगा। सब कार्य करूँगा। कसम किसलिए खा रखी है? यह आप इसी पुस्तक के पृष्ठ 263 से 321 तक अध्याय ’’सृष्टि रचना‘‘ में पढ़ें।

श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान भी इसी ज्योति निरंजन यानि काल ब्रह्म ने श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके अर्जुन को बताया था। गीता अध्याय 7 श्लोक 24-25 में काल ब्रह्म ने कहा है कि:-

श्लोक 24:- बुद्धिहीन व्यक्ति मेरे (अनुत्तम) घटिया (अव्ययम्) अटल नियम को नहीं जानते। इसलिए मुझे (श्री कृष्ण) व्यक्ति रूप में आया (कृष्ण) मानते हैं।

श्लोक 25:- मैं अपनी योग माया से (शक्ति से) छिपा रहता हूँ। किसी के प्रत्यक्ष नहीं होता। यह अज्ञानी जन समुदाय कभी मनुष्य की तरह जन्म न लेने वाले को नहीं जानता।

अर्थात् ज्योति निरंजन (काल) ने स्पष्ट कर दिया कि मेरा अटल नियम है कि मैं छिपा रहता हूँ। सबके सामने कभी भी प्रत्यक्ष नहीं होता। सब कार्य छुपकर करता रहता हूँ। गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में स्पष्ट किया है कि ‘‘मैं काल हूँ।’’ सबका नाश करने के लिए अब (श्री कृष्ण में) आया हूँ यानि कृष्ण के शरीर में प्रवेश हुआ हूँ। श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान बोला था।

ऐसे ही चारों किताबों (जबूर, तौरेत, इंजिल तथा कुरआन) का ज्ञान गुप्त रहकर बताया है। यह कादर सृष्टि की उत्पत्ति करने वाला अल्लाह नहीं है। कबीर खुदा ने इसको काल कराल (शैतान) कहा है।

अन्य प्रमाण:- कुरआन मजीद की सूरः अल बकरा-2 आयत नं. 35-38 तक कुरआन का ज्ञान देने वाला अल्लाह कह रहा है कि:-

आयत नं. 35:- फिर हमने आदम से कहा ‘‘तुम और तुम्हारी पत्नी दोनों जन्नत (स्वर्ग) में रहो और यहाँ जी भरकर जो चाहो खाओ, किन्तु इस पेड़ के निकट न जाना नहीं तो जालिमों में गिने जाओगे।’’
आयत नं. 36:- अन्ततः शैतान ने उन दोनों को उस पेड़ की ओर प्रेरित करके हमारे आदेश की अवहेलना करवा दी। हमने हुकम दिया कि अब तुम सब यहाँ से उतर जाओ। एक-दूसरे के दुश्मन बन जाओ। (साँप और इंसान एक-दूसरे के शत्रु हो गए) और तुम्हें एक समय तक धरती पर ठहरना है। वहीं गुजर-बसर करना है।
आयत नं. 37:- उस समय आदम ने अपने रब से कुछ शब्द सीखकर तौबा (क्षमा याचना) की जिसको उसके रब ने स्वीकार कर लिया क्योंकि वह बड़ा क्षमा करने वाला और दया करने वाला है।
आयत नं. 38:- हमने कहा कि ‘‘तुम अब यहाँ से उतर जाओ।’’ फिर मेरी ओर से जो मार्गदर्शन तुम्हारे पास पहुँचे, उस अनुसार (चलना)। जो मेरे मार्गदर्शन के अनुसार चलेंगे, उनके लिए किसी भय और दुःख का मौका न होगा। (कुरआन मजीद से लेख समाप्त)।

पवित्र बाईबल में (तौरेत किताब में) लिखा है कि परमेश्वर ने छः दिन में सृष्टि की जिसमें छठे दिन मनुष्यों को अपने जैसे रूप का उत्पन्न किया। आदम तथा हव्वा आदि को उत्पन्न करके सातवें दिन आसमान में तख्त पर जा बैठा। उसके पश्चात् ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) ने बागडोर संभाल ली। अपने पुत्रों ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव के माध्यम से सब कार्य करने लगा।

उपरोक्त कुरआन मजीद वाला प्रकरण बाईबल ग्रन्थ में विस्तारपूर्वक है जो इस प्रकार है:-

काल (ज्योति निरंजन) ने अपने तीन पुत्रों द्वारा अपनी व्यवस्था करवा रखी है। ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव ये तीन पुत्र काल के हैं। आदम जी ब्रह्मा के लोक से आई आत्मा हैं। इसलिए ब्रह्मा ने आदम को वाटिका में संभाला।

प्रभु काल के पुत्र ब्रह्मा ने हजरत आदम तथा हजरत हव्वा (जो श्री आदम जी की पत्नी थी) को कहा कि इस वाटिका में लगे हुए पेड़ों के फलों को तुम खा सकते हो। लेकिन ये जो बीच वाले पेड़ों के फल नहीं खाना, अगर खाओगे तो मर जाओगे। परमेश्वर ऐसा कह कर चला गया।

उसके बाद सर्प आया और कहा कि तुम ये बीच वाले पेड़ों के फल क्यों नहीं खा रहे हो? हव्वा जी ने कहा कि भगवान (अल्लाह) ने हमें मना किया है कि अगर तुम इनको खाओगे तो मर जाओगे, इन्हें मत खाना। सर्प ने फिर कहा कि भगवान ने आपको बहकाया हुआ है। वह नहीं चाहता है कि तुम प्रभु के सदृश ज्ञानवान हो जाओ। यदि तुम इन फलों को खा लोगे तो तुम्हें अच्छे और बुरे का ज्ञान हो जाएगा। आपकी आँखों पर से अज्ञानता का पर्दा हट जाएगा जो प्रभु ने आपके ऊपर डाल रखा है। यह बात सर्प ने आदम की पत्नी हव्वा से कही थी। हव्वा ने अपने पति हजरत आदम से कहा कि हम ये फल खायेंगे तो हमें भले-बुरे का ज्ञान हो जाएगा। ऐसा ही हुआ। उन्होंने वह फल खा लिया तो उनकी आँखें खुल गई तथा वह अंधेरा हट गया जो भगवान ने उनके ऊपर अज्ञानता का पर्दा डाल रखा था। जब उन्होंने देखा कि हम दोनों निवस्त्र हैं तो शर्म आई और अंजीर के पत्तों को तोड़कर लंगोट बनाकर गुप्तांगों पर बांधा।

यह उपरोक्त प्रकरण पवित्र बाईबल से उत्पत्ति अध्याय से लिया है। सृष्टि रचने वाला कादर अल्लाह तो ऊपर आसमान में तख्त पर जा बैठा और जो आदम तथा हव्वा को जन्नत में रखता है। उनको एक पेड़ के फल खाने से मना करता है। शैतान के बहकावे में आकर आदम जी तथा हव्वा जी उस भले-बुरे का ज्ञान करवाने वाले पेड़ का फल खा लेते हैं। फिर अल्लाह आया और पता चला तो कहा कि आदम तथा हव्वा ने भले-बुरे का ज्ञान करवाने वाले पेड़ का फल खा लिया है। जिस कारण से मनुष्य हममें से एक के समान हो गए हैं। इसलिए ऐसा न हो कि यह जीवन के वृक्ष का फल भी तोड़कर खा ले और सदा जीवित रहे। इसलिए जन्नत (भ्मंअमद) से निकाल दिया।

सृष्टि रचने वाला अल्लाह ताला है। वह तो ऊपर चला गया है। आदम व हव्वा के साथ अल्लाह ताला नहीं था। अन्य अल्लाह सिद्ध हुआ। वह उपरोक्त कुरआन मजीद की सूरः अल बकरा-2 की आयत 35-38 में कुरआन मजीद का ज्ञान देने वाला स्वीकार कर रहा है कि मैंने आदम व हव्वा को जन्नत में रखा और गलती करने पर जन्नत (स्वर्ग) से निकाल दिया। धरती पर छोड़ दिया। इससे सिद्ध हुआ कि कुरआन मजीद का ज्ञान देने वाला यानि हजरत आदम से हजरत मुहम्मद तक का रब कादर अल्लाह सृष्टि रचने वाला नहीं है। वे एक से अधिक हैं। यह सब प्रपंच ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) का है। यह स्वयं किसी के सामने नहीं आता। कहीं स्वयं आग रूप में प्रकट होकर मानव को भ्रमित करता है, कभी अपने तीनों पुत्रों द्वारा भ्रमित करता है। कभी अपने तीनों पुत्रों में से एक में प्रवेश करके ज्ञान बताता है। कभी सीधा मानव में प्रवेश करके बोलता है। कुछ सत्य ज्ञान, कुछ असत्य तथा अधूरा ज्ञान बताकर अपने जाल में फँसाकर रखता है।

असत्य कथन का प्रमाण:- पवित्र कुरआन मजीद में सूरः अल बकरा-2 आयत नं. 38 में (ज्योति निरंजन) कुरआन मजीद का ज्ञान देने वाले ने कहा है कि हे आदम तथा हव्वा! तुम धरती पर उतर जाओ। मैं तुम्हें मार्गदर्शन करूँगा यानि किताब नाजिल करूँगा। उसमें धर्म-कर्म की जानकारी बताऊँगा तथा परहेज (मर्यादा) बताऊँगा। जो मेरे मार्गदर्शन के अनुसार चलेंगे, उनके लिए किसी भय और दुःख का मौका नहीं होगा। जब हम हजरत मुहम्मद जी की जीवनी पढ़ते हैं तो रोना आता है कि जिस महान आत्मा ने कुरआन मजीद का ज्ञान देने वाले अल्लाह की प्रत्येक आज्ञा का पालन तन-मन-धन से किया। उसी के मार्गदर्शन में अंतिम श्वांस तक चले। फिर भी हजरत मुहम्मद (सल्ल. वसल्लम) जी का जीवन दुःखों से भरा था जिसको उसी अल्लाह ने अपना रसूल बनाकर भेजा था।

जब नबी मुहम्मद जी माता के गर्भ में थे तो पिता जी का देहांत हो गया। जब छः वर्ष के हुए तो माता जी मर गई। जब आठ वर्ष के हुए तो दादा जी चल बसे जो बालक मुहम्मद की परवरिश कर रहे थे। फिर चाचा ने पाला। यतीमी का जीवन जीया।

यदि विचार किया जाए तो पता चलता है कि जिस बच्चे के माता-पिता मर जाते हैं, उसकी क्या दशा होती है? कोई माता-पिता जैसा प्यार नहीं देगा, कोई धमकाएगा। किसी के बच्चे अच्छे वस्त्र पहनते हैं। यतीम को फटे-पुराने वस्त्र दिए जाते हैं। अधिक कार्य लिया जाता है। अपनी समस्या किसके आगे कहे? अन्य बच्चे मेले में रूपये लेकर जाते हैं। यतीम उनको देखकर किस्मत को कोसता है। त्यौहार के दिन सब अच्छा भोजन खाते हैं। यतीम को लूखा-सूखा, बासी भोजन खाने को दिया जाता है, आदि-आदि घोर कष्ट भोगता है।

पच्चीस वर्ष की आयु तक विवाह नहीं हुआ। फिर चालीस वर्षीय खदीजा नाम की विधवा से विवाह हुआ। खदीजा पहले दो बार विधवा हो चुकी थी। हजरत खदीजा जी से आप जी को तीन पुत्र तथा चार पुत्री संतान उत्पन्न हुई। आपकी आँखों के सामने तीनों पुत्र आँखों के तारे मृत्यु को प्राप्त हुए। काल यानि ज्योति निरंजन के बताए कुरआन मजीद के ज्ञान का प्रचार करने में घोर संकट का सामना करना पड़ा। अनेकों लड़ाई लड़ी। विरोधियों द्वारा तीन वर्ष बहिष्कार किया गया। उस दौरान आप (सल्ल.) का सारा खानदान महादुःखी रहा। बच्चों ने पत्ते खाकर विलख-विलखकर जीवन जीया। हजरत मुहम्मद जी का तरेसठ वर्ष की आयु में महाकष्ट भोगकर इंतकाल (देहांत) हुआ।

कुरआन ज्ञान दाता ने ऊपर सूरः अल बकरा-2 की आयत नं. 38 में कहा है कि जो मेरे बताए अनुसार कार्य करेगा, उसको कोई दुःख नहीं होगा। यह खरा नहीं उतरा। कादर अल्लाह कबीर है। वह अपने भक्त/भक्तमति व रसूल को कोई कष्ट नहीं आने देता तथा पूर्ण मोक्ष प्रदान करता है। सीधा सतलोक ले जाता है। समर्थ परमेश्वर का डर काल ज्योति निरंजन को भी है। इसलिए काल ब्रह्म अपना बचाव करते हुए उस कादर खुदा जो कबीर है, की इबादत बिना किसी के शरीक किए करने को कहता है। फिर अपनी इबादत करने को भी अधिक जोर देता है। उसमें भी कहता है कि मेरे अतिरिक्त किसी को शरीक (मेरे समान न मानकर) न करके मेरी पूजा (इबादत) करो।

इसी प्रकार इसी काल ब्रह्म ने गीता का ज्ञान दिया। उसमें अध्याय 8 श्लोक 1 में अर्जुन ने प्रश्न किया कि हे प्रभु! आपने गीता अध्याय 7 श्लोक 29 में जो तत् ब्रह्म बताया है, वह कौन है? इसका उत्तर काल ब्रह्म ने गीता अध्याय 8 के श्लोक 3 में दिया है। बताया है कि वह ‘‘परम अक्षर ब्रह्म है।’’

फिर अध्याय 8 के श्लोक 5 तथा 7 में अपनी पूजा करने को कहा है तथा श्लोक 8.9.10 में अपने से अन्य परम अक्षर ब्रह्म की पूजा करने को कहा है। स्पष्ट किया है कि मेरी भक्ति करेगा तो मेरे पास मेरे लोक में रहेगा। यदि उस परम अक्षर ब्रह्म (समर्थ परमेश्वर) की भक्ति करेगा तो उसको प्राप्त हो जाएगा। उसके सतलोक में जाएगा।

अपने विषय में गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5, अध्याय 10 श्लोक 2 में स्पष्ट किया है कि जन्म तथा मृत्यु तेरी भी होती रहेगी तथा मेरी भी।

गीता अध्याय 18 श्लोक 46, 61 में उस समर्थ परमेश्वर के विषय में कहा है किः- परम अक्षर ब्रह्म (कादर सृष्टि की उत्पत्ति व पालनकर्ता परमेश्वर) वह है जिसने इस संसार की रचना की है। वही इसको सहारा देकर अपनी शक्ति से रोके हुए है तथा सब जीवों को उनके कर्मों अनुसार अन्य प्राणियों के शरीरों में स्वर्ग, नरक व फिर मानव के शरीरों में भ्रमण करवाता है यानि समर्थ परमेश्वर ने विधान बना रखा है कि जो जैसे कर्म करेगा, उसका फल अवश्य मिलेगा।

गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है कि हे अर्जुन! तू सर्वभाव से उस परमेश्वर की शरण में जा। उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शांति को तथा सनातन परम धाम (अमर लोक) को प्राप्त होगा।

गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्त्वज्ञान (बाखबर) तत्त्वदर्शी संत से प्राप्त करके उसके पश्चात् उस (उपरोक्त) परमेश्वर के उस परम पद (सतलोक) की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात् साधक लौटकर संसार में कभी नहीं आता। उसकी पूजा करो।

गीता अध्याय 15 श्लोक 16 में बताया है कि क्षर पुरूष (काल ब्रह्म) तथा अक्षर पुरूष ये दो प्रभु इस नाशवान लोक में हैं। ये दोनों तथा इनके अंतर्गत जितने प्राणी हैं, सब नाशवान हैं। आत्मा सबकी अमर हैं।

गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि उत्तम प्रभु यानि पुरूषोत्तम तो उपरोक्त दोनों से भिन्न है जो वास्तव में परमात्मा कहा जाता है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है। वह अविनाशी परमेश्वर है।

गीता में यह भी स्पष्ट किया है कि उस परमेश्वर की भक्ति अनन्य भाव से करो यानि उसके अतिरिक्त किसी अन्य देव को उसके साथ न पूजो। अपने विषय में भी यही कहा है कि मेरी भक्ति करो। किसी अन्य देवता को मेरे समान मानकर न पूजो।

इसी प्रकार कुरआन ज्ञान देने वाले ने सूरः अंबिया-21 आयत नं. 92, 30, 31, 32 में अपनी इबादत करने को कहा है तथा अपनी महिमा बताई है। सूरः बकरा-2 आयत नं. 255 में अपने से अन्य परमेश्वर की महिमा बताई है तथा सूरः फातिर-1 आयत नं. 1-7 में समर्थ रहमान की इबादत करने को कहा है।

उपरोक्त प्रमाणों से सिद्ध हुआ कि कुरआन मजीद (शरीफ) का ज्ञान देने वाला काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) है जो सबको धोखा देकर रखता है। अधूरा ज्ञान बताकर अपने जाल में फँसाकर रखता है। पाप कर्म करने की भी प्रेरणा करता है। युद्ध (लड़ाई-झगड़े) करवाता रहता है ताकि सब जीव दुःखी रहें, भक्ति न करें। करें तो गलत भक्ति (इबादत) करें।

अन्य प्रमाण:- कुरआन मजीद सूरः सजदा-32 आयत नं. 13:- कुरआन का ज्ञान देने वाले अल्लाह ने कहा है कि मेरी ओर से यह बात करार पा चुकी है कि मैं जिन्नों और मनुष्यों से दोजख को भर दूँगा। हम चाहते तो हर शख्स को हिदायत दे देते, लेकिन मैंने जिन्नों तथा मनुष्यों से दोजख (नरक) को भरना है। साधना अधूरी बताता है। माँस खाने की छूट देता है। जिस कारण से नरक ही भरेगा, जन्नत में तो जा ही नहीं सकते। कुरआन का ज्ञान देने वाला लड़ाई करने के लिए प्रेरित करता है।

प्रमाण के लिए सूरः अन् निशा-4 आयत नं. 71-84 तक:-

आयत नं. 71:- ऐ लोगो! जो ईमान लाए हो, मुकाबले के लिए हर समय तैयार रहो। फिर जैसा अवसर हो, अलग-अलग टुकड़ियों के रूप में निकलो या इकठ्ठे होकर।
आयत नं. 72:- हाँ, तुम में कोई-कोई आदमी ऐसा भी है जो लड़ाई से जी चुराता है।
आयत नं. 74-84:- अतः ऐ नबी! तुम अल्लाह की राह में लड़ो।

इस प्रकार की वह्य (संदेश) भेज-भेजकर हजरत मुहम्मद जी को आजीवन लड़ाई करने में लगाए रखा। उनका जीवन नरक बना रहा। परिवार के अंदर मृत्यु का कहर, दुश्मनों से लड़ा-लड़ाकर कर्म खराब करवाए और उस भक्त आत्मा को यथार्थ ज्ञान भी नहीं बताया, न यथार्थ भक्ति की विधि बताई। इसका प्रमाण इस बात से है कि सूरःफुरकान-25 आयत नं. 52-59 में कहा है कि कादर अल्लाह कबीर है जिसने सब रचना की है। उसकी खबर किसी बाखबर से जानों। इससे स्वसिद्ध है कि कुरआन का ज्ञान अधूरा है।

सूरः अश् शूरा-42 आयत नं. 1-2 में सांकेतिक शब्द (code words) बताए हैं:-

हा. मीम
अैन, सीन, काफ। ये मोक्ष मंत्र हैं। परंतु अधूरे हैं। इनका ज्ञान न हजरत मुहम्मद जी को था, न किसी मुसलमान श्रद्धालु को। फिर मुक्ति कैसे मिलेगी? यदि कोई यह कहे कि नबी मुहम्मद जी को तो इनका ज्ञान होगा? यदि नबी जी को ज्ञान होता तो क्या अपने साथियों को नहीं बताता? एक-एक शब्द मुसलमानों से शेयर किया करते।

इसी अल्लाह ने हजरत मूसा जी को तौरेत किताब का ज्ञान दिया था जो एक ही बार में उतारी थी। उस ‘‘तौरेत’’ पुस्तक के ज्ञान के आधार से मूसा जी सत्संग फरमा रहे थे। एक सत्संगी ने पूछा हे मूसा! वर्तमान में सबसे बड़ा इल्मी (विद्वान) कौन है? हजरत मूसा ने कहा कि मैं विश्व में सबसे बड़ा इल्मी हूँ। इस बात से नाराज होकर अल्लाह ने मूसा से कहा कि तेरा ज्ञान तो अल-खिज्र के ज्ञान के सामने कुछ भी नहीं है। उस ज्ञान को प्राप्त करने मूसा अल-खिज्र के पास जाता है। बिना ज्ञान लिए वापिस आ जाता है। मूसा जी को तो यह विश्वास था कि मेरे को ज्ञान कादर अल्लाह का दिया हुआ है। इसलिए अपने को सबसे विद्वान कहा। फिर वह अल्लाह (ज्योति निरंजन काल) कहता है कि तेरा ज्ञान कुछ भी नहीं है। यदि तौरेत का ज्ञान यथार्थ ज्ञान के (जो अल-खिज्र के पास था, उसके) सामने कुछ भी नहीं था। तो उसे हजरत मूसा को किसलिए बताया? जब मूसा जी अल-खिज्र के पास ज्ञान लेने गया और खाली लौट आया तो उसे वह यथार्थ ज्ञान बता देना चाहिए था। वह ज्ञान हजरत मुहम्मद जी को भी नहीं बताया। उसे भी कह दिया कि कादर सृष्टि की उत्पत्ति करने वाले कादर अल्लाह के विषय में यथार्थ ज्ञान किसी बाखबर (तत्त्वदर्शी संत) से पूछो।

इससे स्पष्ट है कि हजरत आदम से हजरत मुहम्मद जी तक को अधूरा ज्ञान देने वाला तथा माँस खाने व लड़ने की प्रेरणा करके पाप करवाने वाला ज्योति निरंजन काल है। इसी काल ब्रह्म ने श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान अर्जुन को दिया। जिस समय चचेरे व ताऊ के भाईयों कौरवों तथा पांडवों के बीच राज्य के बंटवारे के लिए युद्ध होने वाला था। दोनों की सेनाएँ लड़ने के लिए आमने-सामने खड़ी थी। पांडव योद्धा अर्जुन ने अपने चचेरे भाईयों व भतीजों को देखा जो लड़ने के लिए मैदान में खड़े थे। तब दया उत्पन्न हो गई कि जिन भाईयों के बच्चों को गोद में लेकर प्यार किया करते, आज उनको मारने के लिए तैयार हूँ। विचार किया कि लड़ाई में अनेकों सैनिक मारे जाएँगे, उनकी पत्नियाँ विधवा होंगी। अनेकों बच्चे यतीम हो जाएँगे। मेरे को घोर पाप लगेगा। इसलिए युद्ध न करने का निर्णय लेकर हथियार डालकर रथ के पिछले भाग में बैठ गया। अर्जुन के युद्ध से मना कर देने पर युद्ध नहीं होना था।

जब काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) ने देखा कि युद्ध नहीं होगा। तब अपने पुत्र श्री विष्णु उर्फ श्री कृष्ण के (जिसको अपना नबी बनाकर उस समय भेज रखा था, उसके) शरीर में प्रेतवत् प्रवेश करके गीता पुस्तक का ज्ञान कहा तथा कहा कि अर्जुन तू युद्ध कर। तेरे को तो केवल निमित मात्र बनना है। इन सबको मैंने मार रखा है। परंतु अर्जुन मानने को तैयार नहीं था। कह रहा था कि हे कृष्ण! भाईयों/रिश्तेदारों को मारकर राज प्राप्त करने से अच्छा तो हम भिक्षा का अन्न खाना पंसद करेंगे। मैं युद्ध नहीं करूँगा।

काल ने गीता अध्याय 2 के श्लोक 37 में अर्जुन को बहकाया कि हे अर्जुन! तेरे दोनों हाथों में लड्डू हैं। यदि तू युद्ध में मारा गया तो स्वर्ग (जन्नत) प्राप्त करेगा। यदि युद्ध जीत गया तो पृथ्वी का राज प्राप्त करके राज का सुख भोगेगा।

गीता अध्याय 2 के श्लोक 38 में कहा कि जय और पराजय, लाभ और हानि और सुख-दुःख को समान समझकर युद्ध के लिए तैयार हो जा। इस प्रकार युद्ध करने से तू पाप को प्राप्त नहीं होगा।

जब अर्जुन युद्ध करने के लिए तैयार नहीं हुआ तो अर्जुन को डराने के लिए अपना विराट विकराल काल रूप दिखाया। उसे देखकर अर्जुन डरकर काँपने लगा और युद्ध के लिए मान गया। महाभारत नाम से युद्ध हुआ जो एक प्रकार का विश्व युद्ध था। उसमें लाखों सैनिक मारे गए। पांडव जीत गए। पांडवों में से बड़े युधिष्ठिर थे जो राजा बने। युधिष्ठिर को स्वपन में बिन सिर के मानव के धड़ दिखाई देने लेगे। युद्ध में विधवा हुई सैनिकों की पत्नियाँ विलाप करती दिखाई देने लगी। युधिष्ठिर भयभीत होकर जाग जाता। फिर नींद नहीं आती थी। खाना-पीना भी छूट गया। आँखें फटी-फटी रहने लगी। युधिष्ठिर के अन्य चारों भाईयों (अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव) ने भाई की यह दशा देखी। युधिष्ठिर से कारण जाना तो बताया मुझे रात्रि में नींद नहीं आती। नींद आती है तो भयंकर स्वपन देखकर डरकर बैठ जाता हूँ। पांडवों के गुरू श्री कृष्ण जी थे जिसके शरीर में प्रवेश करके काल प्रभु ने गीता का ज्ञान अर्जुन पर उतारा था। अर्जुन मान रहा था कि गीता पुस्तक का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने बताया है। अपने गुरू जी के पास पाँचों भाई गए तथा युधिष्ठिर की समस्या बताई। तब श्री कृष्ण ने कहा कि तुमने युद्ध में बंधुओं (भाईयों, भतीजों आदि) को मारा है। उस पाप के कारण यह संकट राजा पद पर विराजमान होने से युधिष्ठिर को हुआ है। इसके समाधान के लिए एक अश्वमेघ यज्ञ करो। उसमें पूरी पृथ्वी के साधु, संत, ऋषि-मुनि व रिश्तेदार तथा स्वर्ग के देवता आदि-आदि को उस यज्ञ में भोजन खाने के लिए निमंत्रण दो।

यह बात श्री कृष्ण के मुख से सुनकर अर्जुन पांडव को ध्यान आया कि जब दोनों सेनाएं युद्ध के लिए खड़ी थी। मैं युद्ध न करने के लिए कह रहा था। श्री कृष्ण ने कहा था कि युद्ध कर ले, तेरे को पाप नहीं लगेगा। मेरे लाख बार मना करने पर भी नहीं माना। युद्ध करने के लिए प्रेरित किया। कितने मानव मारे। अब कह रहा है कि तुमको युद्ध में मानव मारने के पाप के कारण यह संकट आया है। जिसके समाधान में उस समय के अरबों रूपये खर्च होने थे। भाई की जान संकट में थी। इसलिए सब्र किया। यज्ञ की गई, युधिष्ठिर स्वस्थ हुआ।

फिर श्री कृष्ण जी के पूरे कुल का (सब बालक, वृद्ध, युवा, कृष्ण समेत सब परिजन व भाई-बंधुओं का) दुर्वासा द्वारा श्राप दिलाकर काल ज्योति निरंजन ने नाश करवाया। छप्पन करोड़ यादव (श्री कृष्ण जी के कुल के व्यक्ति) थे। आपस में लड़कर मर गए। श्री कृष्ण को भी एक शिकारी ने मारा। काल ने अपने नबी श्री कृष्ण को भी नहीं बख्शा। उनकी आँखों के सामने उनका सर्वनाश हो गया। पांडवों को राज्य भी पूरी आयु नहीं करने दिया। जब श्री कृष्ण जी मरने लगे तो पाँचों पांडवों से कहा कि तुम्हारे सिर पर युद्ध किए पापों का दंड बहुत अधिक है। तुम पाँचों हिमालय पर्वत के ऊपर जाकर तप करो, वहीं मरो। युद्ध में किए पाप समाप्त हो जाएँगे। पाँचों पांडवों राज्य त्यागकर हिमालय पर्वत में बर्फ में गलकर मरे। फिर उन्हें युद्ध के पापों के कारण नरक में डाला गया।

नरक में पापों को भोगकर पुण्यों का फल स्वर्ग में प्राप्त करते हैं। यह इसका भयंकर जाल है। काल ज्योति निरंजन झूठ बोलकर जीव को भ्रमित करके अपने जाल में फँसाकर रखता है। कोई सुख इसके लोक में जीव को नहीं हो सकता। इसी प्रकार हजरत आदम से हजरत मुहम्मद तक की दुर्गति इसी ने की थी, जिसे कादर अल्लाह कबीर जी ने कसाई की संज्ञा दी है जो सब जीवों को भ्रमित करके अपने जाल में फँसाकर रखे हुए हैं। इसके जाल से निकलने के लिए समर्थ कबीर अल्लाह की शरण में सबको आना पड़ेगा।

वर्तमान में मुझ दास (रामपाल दास) को उस कबीर अल्लाह ने अपना अंतिम नबी बनाकर भेजा है। मेरे पास यथार्थ भक्ति विधि तथा यथार्थ ज्ञान है। आप विश्व के सब मानव मेरे द्वारा बताई इबादत करके करो जिससे कादर अल्लाह कबीर जी के सतलोक चले जाओगे। वहाँ सदा सुखी रहोगे। कभी मृत्यु नहीं होगी। जब तक काल के लोक में जीवन है, सुख से जीओगे। अकाल मृत्यु नहीं होगी। रोग, शोक से पूर्ण बचाव होगा।

उपरोक्त प्रमाणों से सिद्ध है कि जिसने बाईबल, कुरआन, गीता का ज्ञान दिया, वह काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) है। कादर अल्लाह कबीर है। वह सच्चा ज्ञान बताता है।

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